धर्म, पंथ, संप्रदाय चाहे कोई हो, पर एक बात सभी में समान है और वह है प्रार्थना। प्रार्थना क्या है और क्यों की जाती है? इसलिए यह जानना अति आवश्यक हो जाता है।
प्रार्थना का अर्थ : बहुत से लोग पूजा और प्रार्थना में अंतर नहीं कर पाते। विधिपूर्वक, कर्मकांड के साथ अपने ईष्ट को प्रसन्न करना पूजा है, जबकि प्रार्थना एक मानसिक क्रिया है, जो बिना किसी कर्मकांड या विधि के कहीं भी, कभी भी की जा सकती है। अपने ईष्ट का स्मरण प्रार्थना है। उनकी अपार शक्ति का चिंतन प्रार्थना है।
प्रार्थना का महत्व : आपने अपने कमरे में लगे पंखे या बल्ब को तो देखा ही होगा। कैसे काम करते हैं ये उपकरण? जब तक बिजली का प्रवाह इनमें न हो, तब तक ये काम नहीं कर सकते। उस प्रवाह के लिए आप इन्हें तार से जोड़ते हैं। जैसे ही आप ऐसा करते हैं, ये उपकरण काम करने लगते हैं। इसके अलावा कुछ उपकरण बैटरी पर चलते हैं और आपको समय-समय पर इन्हें चार्ज करना पड़ता है। ऊर्जा का प्रवाह ही इन्हें चालित रखता है। इसी प्रकार प्राणी मात्र भी ऊर्जा से संचालित है। हम मानते हैं कि हम सब परमपिता परमेश्वर का अंश हैं। अर्थात हम उस अपरिमित ऊर्जा केंद्र से ऊर्जा ग्रहण करते हैं। यह ऊर्जा हमें तभी प्राप्त होती है, जब हमारे तार उस स्रोत से जुड़े हों और प्रार्थना वह तार जोड़ने का ही काम करती है। जब हम अपने ईष्ट को याद करते हैं, तो उनसे जुड़ जाते हैं और हममें सकारात्मक ईश्वरीय ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है। हमारे चारों ओर ऊर्जा का प्रवाह है। प्रार्थना इस व्याप्त ऊर्जा को केन्द्रित कर देती है। व्याप्त ऊर्जा और केन्द्रित ऊर्जा की शक्ति में बहुत अंतर होता है। वर्षा में मुंह खोलकर खड़े होने से प्यास नहीं बुझती। प्यास बुझाने के लिए जल को पात्र में या अंजुली में लेकर पीना पड़ता है। ठीक ऐसे ही व्याप्त ऊर्जा का लाभ लेने के लिए उसे केन्द्रित करना आवश्यक है।
प्रार्थना का प्रभाव : प्रार्थना का हमारे मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जब हम प्रार्थना करते हैं, तो ईश्वर को परमशक्ति मानते हैं और अपने को उसका एक अंश। इस प्रकार हम उस शक्ति के आगे अपने अहम का पूर्णरूपेण त्याग कर कर देते हैं। प्रार्थना केवल हमारे अहं को ही नष्ट नहीं करती, बल्कि यह हममें आत्मविश्वास को भी बढ़ाती है। जिसे हम याद कर रहे हैं, जिसे हम समर्पित हैं, वह कोई दूसरा व्यक्ति नहीं, बल्कि वह शक्ति है, जिसका हम अंश हैं, जब यह भाव प्रबल होता है, तो व्यक्ति अपने को अधिक शक्तिवान और विश्वास से भरा अनुभव करने लगता है। प्रार्थना धैर्य भी देती है। जब व्यक्ति कतिपय कारणों से घबरा जाता है, तो प्रार्थना उसमें धैर्य का संचार करती है। एक बालक जैसे माँ की गोद में आकर अपने सब दुख भूल जाता है, ऐसे ही मनुष्य को भी लगता है कि कोई है, जो उसकी हर स्थिति में रक्षा करेगा और यह विचार उसका धैर्य छूटने नहीं देता। प्रार्थना से चित्त भी शांत होता है। यह अधीरता को कम करके व्यक्ति को स्थिर भाव देती है।
कैसे करें प्रार्थना? : प्रार्थना कैसे करें, यह एक जटिल प्रश्न है, क्योंकि अनेक प्रकार की विधियों को देखकर व्यक्ति सोच में पड़ जाता है कि प्रार्थना कैसे करे। यह प्रश्न जितना जटिल है, इसका उत्तर उतना ही सरल है और वह है, जैसे जी चाहे वैसे करें। आपको जो स्रोत अच्छा लगे, उसका पाठ करें। संस्कृत जटिल लगती है, तो अपनी मातृभाषा में करें। बस एक बात का ध्यान रखें कि एकाग्रचित होकर करें। ईश्वर के जिस रूप में आपकी श्रद्धा हो उस रूप का चिंतन करें और अपने को समर्पित कर दें। एक और बात का ध्यान रखें, ‘भगवान नौकरी दिलवा दो, बेटी का विवाह करवा दो’ प्रार्थना नहीं है। यह याचना है। हम ईश्वर से याचना कर सकते हैं, पर उसे प्रार्थना मानकर नहीं करना चाहिए। प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर को याद करना, उनकी स्तुति करना, उनका चिंतन करना।
प्रार्थना और नियम : यूं तो प्रार्थना जब की जाये, तब फल देती है, पर नियम का महत्व भी नकारा नहीं जा सकता। जो भी प्रार्थना करें, जितनी भी देर करें एक नियम बांधकर करें। एक दिन ढेर सा भोजन करके क्या हम एक माह बिना खाये रह सकते हैं? नहीं न? हम कितना भी भोजन क्यों न कर लें, वह क्षुधा एक दिन की ही बुझाएगा। ठीक वैसे ही एक दिन बहुत देर तक प्रार्थना कर लेना कोई विशेष फलदायी नहीं होता। नियमपूर्वक प्रार्थना आपकी शक्तियों को जागृत करेगी और आपके गुणों में निरंतरता आएगी।
निषेध कर्म : यदि आप कर्म से हीन हैं, तो प्रार्थना आपको लाभ नहीं पहुंचा सकती। आप दिन भर झूठ बोलते हैं, पाप कर्मों में लिप्त रहते हैं, तो आप कितनी भी प्रार्थना कर लें आपको उसका लाभ नहीं मिलेगा। छलनी में कहीं बहती नदी का जल भरा जा सकता है? उसके लिए तो पात्र चाहिए। ठीक इसी प्रकार आपको अपने को सुपात्र बनाना होगा। पात्रता धारण करने पर ही आप प्रार्थना का पूरा फल प्राप्त कर पाएंगे। पात्रता देने का काम भी प्रार्थना ही करेगी। प्रार्थना आपको सहयोग करेगी और आपको अपने को उसकी मदद से हर दिन साधना होगा।
सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामयः
सर्वे भद्राणी पश्यंतु, मा कश्चिद दु:ख भाग्भवेद॥
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