सरकार आम जनता की सहूलियत के लिए ई-गवर्नेंस को बढ़ावा दे रही है। समय की बचत और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सरकार अधिक से अधिक कार्यों को इंटरनेट के द्वारा कराने के प्रयास में जुटी है, लेकिन कर्मचारियों की सोच में भ्रष्टाचार इस हद तक घुस गया है कि उनके द्वारा ई-गवर्नेंस को ही फेल करने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे आम जनता को और भी ज्यादा समस्या होने लगी है।
आम जनता को छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी तहसील मुख्यालय की दौड़ लगानी पड़ती थी। आय, जाति और मूल निवास जैसे प्रमाण पत्रों के लिए आम जनता को बार-बार तहसील मुख्यालय न आना पड़े, इसलिए सरकार ने एक पोर्टल बना दिया, जिस पर आवेदन करने के बाद प्रमाण पत्र बना कर अपलोड कर दिया जायेगा, फिर आवेदक उसका प्रिंट निकाल सकता है। व्यवस्था लागू होने के बाद जनता ने आवेदन शुरू किये, तो शुरुआत में लेखपाल बहुत दिनों तक अपनी रिपोर्ट ही नहीं लगाते थे। बात सरकार तक पहुंची, तो 15 दिन के अंदर प्रमाण पत्र बनाने का शासनादेश जारी कर दिया गया, पर लेखपालों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया है। आवेदक लेखपाल से न मिले, तो आवेदक की आवश्यकता के विपरीत रिपोर्ट लगाते हैं, जैसे किसी गरीब की आय इतनी दर्शा देते हैं कि उसे किसी योजना का लाभ ही न मिल पाये। किसी अमीर की आय इतनी कम दर्शा देते हैं कि उसके भी काम प्रमाण पत्र न आये। मूल निवास में भी ऐसा ही कुछ न कुछ लिख कर आवेदन निरस्त कर देते हैं, लेकिन जो आवेदक सीधे मिल कर रिश्वत दे देते हैं, उनकी रिपोर्ट सही लग जाती है।
ताजा प्रकरण बदायूं जिले की तहसील बिल्सी का है, यहाँ तैनात लेखपाल किशनलाल उल्टी रिपोर्ट लगाने के लिए कुख्यात हो चुका है, इसी तरह पीलीभीत जिले के बड़ेपुरा क्षेत्र में तैनात लेखपाल राधे किशन खुलेआम रिश्वत लेता है, ऑफिस हो, या क्षेत्र, वह बिना रिश्वत के जनता से बात तक नहीं करता। रिश्वत लेते हुए राधे किशन का वीडियो भी वायरल हो चुका है, लेकिन मुकदमा दर्ज कर इसे जेल नहीं भेजा जा रहा। भ्रष्ट लेखपालों की मनमानी के चलते जनता को अब दोगुनी समस्या हो रही है। आवेदक को पहले कैफे में रूपये देकर आवेदन कराना पड़ता है, फिर लेखपाल से मिल कर रिश्वत देनी पड़ती है। सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा सकती, तो पुरानी व्यवस्था ही बहाल कर दे, ताकि लेखपाल को सीधे रूपये देकर आम आदमी अपना प्रमाण पत्र बनवा ले।
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