चर्चित महेंद्र सिंह भाटी हत्या कांड में आज बाहुबलि व धनबलि के रूप में कुख्यात डीपी यादव सहित चार लोगों को देहरादून स्थित सीबीआई न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। न्यायालय ने डीपी यादव सहित पाल सिंह उर्फ लक्कड़पाला, करन यादव और प्रनीत भाटी को इस मामले में 28 फरवरी को दोषी करार दिया था एवं डीपी यादव ने सोमवार को आत्मसमर्पण किया था।
उल्लेखनीय है कि महेंद्र सिंह भाटी की 13 सितंबर 1992 को दुस्साहसिक अंदाज़ में हत्या कर दी गई थी। गाजियाबाद क्षेत्र के भंगेल रोड पर विधायक महेंद्र सिंह भाटी अपने समर्थकों के साथ बंद फाटक के खुलने का इंतजार कर रहे थे, तभी एक वाहन में सवार हथियारबंद बदमाशों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी, जिससे महेंद्र सिंह भाटी व उनके साथी उदय प्रकाश की मौत हो गई थी व कई अन्य घायल हुए थे। इस चर्चित हत्या कांड की सीबीआई जांच हुई और कुख्यात डीपी यादव सहित आठ लोग आरोपी बनाये गये। सीबीआई न्यायालय ने 28 फरवरी को डीपी यादव समेत चार लोगों को दोषी करार दिया था। डीपी यादव अस्वस्थ होने के कारण उस दिन न्यायालय में पेश नहीं हो पाये थे, लेकिन न्यायालय ने उन्हें पेश होने के लिए सोमवार तक का समय दिया था।
न्यायालय के आदेश के चलते डीपी यादव सोमवार सुबह साढ़े दस बजे के करीब तीन एम्बुलेंस के साथ न्यायालय में पहुंचे। स्पेशल जज अमित कुमार सिरोई की अदालत में पेश हुए, तो आत्म समर्पण के प्रार्थना पत्र को स्वीकार कर न्यायालय ने डीपी यादव को जेल भेज दिया था। डीपी यादव की ओर से न्यायालय में तीन प्रार्थना पत्र दिए गये, जिनमें कहा गया कि उनका इलाज चल रहा है, इसलिए जेल में दवा ले जाने की अनुमति दी जाये। पूर्व सांसद होने के कारण उन्हें जेल में अलग बैरक व विशेष सुरक्षा दी जाये और हवालात में न भेज कर सीधे जेल भेजा जाए। न्यायालय ने तीनों प्रार्थना पत्रों को स्वीकार कर लिया। बता दें कि दोषी करार दिये जा चुके करन यादव, प्रनीत भाटी और पाल सिंह उर्फ लक्कड़पाला पहले से जेल में बंद हैं।
बाहुबलि व धनबलि के रूप में कुख्यात डीपी यादव के काले अतीत की बात करें, तो जिला गाजियाबाद में नोएडा सेक्टर-18 के पास एक गाँव शरफाबाद में धर्मपाल यादव नाम का एक आम आदमी था, जो जगदीश नगर में डेयरी चलाता था और रोजाना साइकिल से दूध दिल्ली ले जाता था। अति महत्वाकांक्षी धर्मपाल यादव 1970 के दशक में शराब माफिया किंग बाबू किशन लाल के संपर्क में आ गया और यही शख्स धर्मपाल यादव से धीरे-धीरे डीपी यादव के रूप में कुख्यात होता चला गया। शराब माफिया किशन लाल डीपी यादव को एक दबंग गुंडे की तरह इस्तेमाल करता था और डीपी शराब की तस्करी में अहम भूमिका निभाता था। डीपी यादव कुछ समय बाद ही किशन लाल का पार्टनर बन गया। इन दोनों का गिरोह जोधपुर से कच्ची शराब लाता था और पेकिंग के बाद अपना लेबल लगा कर उस शराब को आसपास के राज्यों में बेचता था। जगदीश पहलवान, कालू मेंटल, परमानंद यादव, श्याम सिंह, प्रकाश पहलवान, शूटर चुन्ना पंडित, सत्यवीर यादव, मुकेश पंडित और स्वराज यादव वगैरह डीपी के गिरोह के खास गुर्गे थे। 1990 के आसपास डीपी की कच्ची शराब पीने से हरियाणा में लगभग साढ़े तीन सौ लोग मर गए। इस मामले में जांच के बाद दोषी मानते हुये हरियाणा पुलिस ने डीपी यादव के विरुद्ध चार्जशीट भी दाखिल की थी। पैसा, पहुँच और दबंगई के बल पर धीरे-धीरे डीपी यादव अपराध की दुनिया का स्वयं-भू बादशाह हो गया। दो दर्जन से अधिक आपराधिक मुकदमों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध होने लगा, तो 1991 में इस पर एनएसए के तहत भी कार्रवाई हुई। इसके बावजूद इसने 1992 में अपने राजनैतिक गुरु दादरी क्षेत्र के विधायक महेंद्र सिंह भाटी की हत्या करा दी, जिसमें इसके विरुद्ध सीबीआई ने आरोप पत्र दाखिल किया। इस हत्या के बाद गैंगवार शुरू हुआ, जिसमें डीपी के गुर्गों ने कई लोगों को मारा, वहीं डीपी के पारिवारिक सदस्यों के साथ उसके कई खास लोगों की बलि चढ़ गई। कहा जाता है कि ताबड़तोड़ हत्याओं से जब डीपी और उसके दुश्मन तंग आ गए और हर समय भय से परेशान हो उठे, तो दोनों ने गोपनीय समझौता कर लिया कि दोनों शांति से जीवन जीयें। डीपी पर नौ हत्या, तीन हत्या के प्रयास, दो डकैती के साथ तमाम मुकदमे अपहरण और फिरौती वसूलने के भी लिखे जा चुके हैं एवं एनएसए के साथ टाडा और गैंगस्टर एक्ट के तहत भी कार्रवाई हो चुकी है। इस पर हत्या का पहला मुकदमा गाजियाबाद के कवि नगर थाने में दर्ज किया गया। अधिकांश मुकदमे हरियाणा के अलावा उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, बुलंदशहर और बदायूं जिले में दर्ज हैं। बहुचर्चित केस जेसिका लाल हत्याकांड में भी इसका नाम उछला था और मनु शर्मा के साथ इसका बेटा विकास यादव दोषी सिद्ध हो चुका है।
अकूत संपत्ति अर्जित करने बाद भी डीपी यादव की छवि एक गुंडे और माफिया वाली ही थी, जिससे निजात पाने के लिए यह छटपटा रहा था। 80 के दशक में कांग्रेस के बलराम सिंह यादव ने इसे कांग्रेस पिछड़ा वर्ग का जिला गाजियाबाद का जिला अध्यक्ष बना दिया, तो डीपी ने नवयुग मार्केट में कार्यालय खोल कर उस पर विशाल बोर्ड लगाया। मतलब नेता बनने की चाह इसके अंदर पहले से ही गहरे तक थी। इसी बीच यह महेंद्र सिंह भाटी के संपर्क में आ गया और वह ही इसे राजनीति में लाये। पहली बार डीपी यादव विसरख से ब्लाक प्रमुख चुना गया। इसके बाद मुलायम सिंह यादव के संपर्क में आ गया। कहा जाता है कि पार्टी गठन करने के बाद मुलायम सिंह यादव को धनाढ्य लोगों की जरूरत थी। डीपी को मंच चाहिए था और मुलायम सिंह यादव को पैसा, सो दोनों का आसानी से मिलन हो गया। मुलायम सिंह यादव ने इसे बुलंदशहर से टिकट दिया और यह धनबल व बाहुबल का दुरुपयोग कर आसानी से जीत गया। सरकार बनने पर मुलायम सिंह यादव ने इसे मंत्रि मंडल में शामिल किया और पंचायती राज मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी, लेकिन जिस पैसे के लिए मुलायम सिंह यादव ने डीपी यादव को हाथों-हाथ लिया था, उसी पैसे के कारण मुलायम सिंह यादव ने डीपी यादव से दूरी बना ली। कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव के करीबियों और पार्टी के खास नेताओं को डीपी यादव आए दिन कीमती तोहफे भेजता था। डीपी यादव पार्टी पर हावी होता, उससे पहले मुलायम सिंह यादव ने डीपी से ही किनारा कर लिया, तब से मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार से डीपी लगातार टकरा रहा है। खुद मुलायम सिंह यादव को संभल लोकसभा क्षेत्र से चुनौती दे चुका है, पर हार गया था, इसके बाद प्रो. रामगोपाल यादव के विरुद्ध भी चुनाव लड़ा, पर कामयाबी नहीं मिली। पिछले लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेन्द्र यादव के विरुद्ध बदायूं लोक सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और इस चुनाव में भी हार गया। इसके बाद यह भाजपा और बसपा में भी रहा और एक-एक कर जब सबने किनारा कर लिया, तो अपनी राष्ट्रीय परिवर्तन दल नाम की पार्टी गठित कर ली, जो बदायूं और संभल क्षेत्र में पहचान बना चुकी है। डीपी यादव संभल लोकसभा क्षेत्र से सांसद एवं राज्यसभा सदस्य के साथ बदायूं के सहसवान क्षेत्र से विधायक रह चुका है। पिछली बार पूर्ण बहुमत की बसपा सरकार आने पर इसने अपने दल का बसपा में विलय कर लिया था और धनबल व बाहुबल के साथ सत्ता का दुरुपयोग कर अपने भतीजे जितेंद्र यादव को एमएलसी बना दिया। अपने साले भारत सिंह यादव की पत्नी पूनम यादव को जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन करा दिया।
डीपी यादव को उसके गुर्गे मंत्री जी कह कर पुकारते हैं। मंत्री जी कहलाना उसे पसंद भी है। डीपी के गुर्गे आम जनता के बीच दावा करते हैं कि मंत्री जी सिद्धांतवादी हैं, इसलिए बड़े नेताओं ने उनके विरुद्ध फर्जी मुकदमे दर्ज करा दिये हैं, जबकि मंत्री जी नैतिकता के दायरे में रहने वाले बड़े ही सभ्य और शालीन व्यक्ति हैं। उनके गुर्गे हैं, तो वह तो कुछ भी दावा करेंगे ही, लेकिन गाजियाबाद पुलिस डीपी यादव को ऐसा अपराधी मानती है, जो कभी नहीं सुधर सकता, तभी गाजियाबाद पुलिस इसकी हिस्ट्रीशीट खोल चुकी है। गाजियाबाद पुलिस सही भी लगती है, क्योंकि जो डीपी यादव कभी हथियारों के बल पर लूट करता था, वह आज कानून का सहारा लेकर लूट रहा है। डीपी आज अरबों रुपए की हैसियत वाला शख्स है, लेकिन आज भी धोखाधड़ी करने से बाज नहीं आ रहा। कस्बा बिसौली के पास रानेट चौराहे पर उसने यदु शुगर मिल नाम से फैक्ट्री खोली है, इस जमीन को डीपी ने धोखाधड़ी कर के ही हड़पा है।
शातिर दिमाग डीपी ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ अपने गुर्गों के नाम पट्टे आवंटित कराये और बाद में सभी पट्टों का श्रेणी परिवर्तन करा कर यदु शुगर मिल के नाम बैनामा करा लिया, जबकि नियमानुसार ऐसा नहीं कर सकते। कानून के जानकारों का कहना है कि पट्टे जिस उद्देश्य से दिये गये हैं, वह उद्देश्य पट्टाधारक पूरा नहीं कर रहा है, तो पट्टे नियमानुसार निरस्त कर दिये जाने चाहिए, साथ ही पट्टे गलत सूचना के आधार पर जारी किये हैं, क्योंकि समस्त पट्टाधारक पहले से ही धनाढ्य हैं और बड़े शहरों में निवास करते हैं, लेकिन सभी को बदायूं जिले की बिसौली तहसील क्षेत्र के गांव सुजानपुर का निवासी दर्शाया गया है। इसके अलावा संबंधित जमीन खतौनी में खार के रूप में दर्ज है, जिसका पट्टा ही नहीं किया जा सकता। डीपी यादव द्वारा कराये गये फर्जी पट्टे वर्ष- 1991 के बताये जाते हैं, लेकिन वर्षों तक इस बात को जानबूझ कर दबाया गया, क्योंकि सात वर्षों के बाद पट्टों का श्रेणी परिवर्तन कराया जा सकता है। श्रेणी परिवर्तन के बाद फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। इसके बाद मामला शासन-प्रशासन के संज्ञान में आया, तो छानबीन की गयी, लेकिन पट्टों से संबंधित कोई रिकॉर्ड कहीं नहीं मिला। राजस्व अभिलेखागार की ओर से 3० मई 2०11 को स्पष्ट रिपोर्ट लगाई गयी कि पट्टों से संबंधित कोई रिकॉर्ड उसके पास नहीं है, जबकि बाद में अचानक फाइल प्रकट हो गयी और इससे भी बड़े आश्चर्य की बात यह है कि संबंधित लेखपाल और तहसीलदार जीवित ही नहीं हैं, वहीं संबंधित एसडीएम सेवानिवृत हो गये हैं। सूत्रों का कहना है कि डीपी यादव ने सेटिंग के चलते फर्जी पत्रावली तैयार कराई है। लेखपाल रमेश और तहसीलदार चिंतामणी के कार्यकाल के पट्टे दर्शाये गये हैं, जिनका निधन हो चुका है, ऐसे में वह आकर गवाही नहीं दे सकते, साथ ही एसडीएम रामदीन हिन्दी के सरल हस्ताक्षर करते थे, उनके हस्ताक्षर फर्जी बनाये गये हैं। उक्त प्रकरण में शिकायत पर पिछली बसपा सरकार ने कार्रवाई के निर्देश भी दिये थे, लेकिन तत्कालीन डीएम अमित गुप्ता एवं एडीएम (प्रशासन) मनोज कुमार ने रुचि नहीं ली। पट्टेधारकों की सूची में डीपी यादव के बेटे के साथ उसके परिवार के अन्य सदस्यों, प्रतिनिधियों और नौकरों के ही नाम हैं, साथ ही अब पट्टाधारक छोटे बेटे कुनाल को मिल का डायरेक्टर बनाया गया है।
बदायूं जिले की तहसील बिसौली व वर्तमान में तहसील बिल्सी क्षेत्र के गाँव सुजानपुर (रानेट) में स्थित बंजर, खार, परती व सार्वजनिक उपयोग की सैकड़ों एकड़ भूमि के फर्जी पट्टे अभिषेक, अरुण कुमार, कुनाल, जयप्रकाश, जितेन्द्र, दीपक, धर्मेन्द्र, नरेश, नवरत्न, नरेश, विजय, विक्रांत, वीना, विवेक, विजय, विवेक, विकास, भारत, भूदेव, मंजीत, मनोज, राकेश, रमेश, राजेन्द्र, लोकेश, संजीव, सत्यपाल, सत्तार, सत्येन्द्र, ओमपाल, ब्रजभूषण, और केदार के नाम हैं, इन सबको गाँव सुजानपुर का मूल निवासी दर्शाया गया है, जबकि उक्त सभी डीपी यादव के बेटे, साले, भतीजे, प्रतिनिधि और नौकर हैं, जो बदायूं जिले तक के निवासी नहीं हैं, साथ ही सभी लोग धनाढ्य हैं, इनमें भारत सिंह यादव पूर्व एमएलसी हैं और पत्नी पूनम यादव बदायूं में जिला पंचायत अध्यक्ष हैं, इसके अलावा जितेन्द्र यादव वर्तमान में बदायूं में ही एमएलसी है।
अरबों की संपत्ति अर्जित कर धर्मपाल यादव से डीपी यादव बनने वाले इंसान की सोच आज भी धर्मपाल यादव वाली ही है, फिर भी वह अपेक्षा करता है कि लोग उसे किसानों का मसीहा कहें। स्कूल और कॉलेज खोले हैं, इसलिए लोग उसे महापुरुष कहें। डीपी को यह ज्ञान नहीं है कि लोग लगातार डकैती डालने वाले व्यक्ति को बाल्मीकी जैसा सम्मान नहीं दे सकते। बाल्मीकि जैसा सम्मान लेने के लिए वास्तव में संपूर्ण व्यक्तित्व बदलना पड़ता है, जो कर पाना डीपी यादव के लिए असंभव है।
डीपी यादव कुख्यात अपराधी है, यह तो अधिकाँश लोग जानते हैं, लेकिन उसका दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है, यह कम लोग ही जानते हैं। उमलेश यादव को डीपी यादव की पत्नी के रूप में सभी जानते हैं, वे बदायूं जिले के बिसौली विधान सभा क्षेत्र से वर्ष- 2007 में विधायक भी चुनी गई थीं, लेकिन उमलेश यादव को पेड न्यूज के मामले में दोषी करार देते हुए चुनाव आयोग ने बर्खास्त कर दिया था। उनके प्रतिद्वंदी प्रत्याशी योगेन्द्र कुमार गर्ग उर्फ कुन्नू बाबू ने बिंदुवार शिकायत कर उनके निर्वाचन को आयोग में चुनौती दी थी, जिस पर लंबी सुनवाई के बाद उन्हें दोषी करार देते हुए बर्खास्त किया गया, जो ऐतिहासिक निर्णय है।
स्तब्ध कर देने वाली बात यह है कि उमलेश यादव कागजी प्रमाण के अनुसार डीपी यादव उर्फ धर्मपाल यादव की पत्नी नहीं हैं, क्योंकि वर्ष- 1989 में गाजियाबाद के सीजेएम न्यायालय से दोनों का तलाक हो चुका है। हालाँकि तलाक के बाद भी दोनों के रिश्ते में किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं आया है। उमलेश यादव का अपने पति डीपी यादव के प्रति पहले जैसा ही सम्मान है और डीपी यादव भी भारतीय पतियों की तरह ही उन्हें पत्नी के रूप में सम्मान देता नजर आता है, तो फिर तलाक क्यूं लिया गया?
इस सवाल का जवाब यह है कि आपराधिक मुकदमों के चलते वारंट व कुर्की आदि की कार्रवाई से परिवार को बचाने के उददेश्य से न्यायालय में जाकर दोनों ने विधिवत तलाक लिया, ताकि उमलेश यादव स्वयं को वैधानिक तौर पर अलग होने का तर्क दे सकें।
खैर, डीपी यादव की फर्श से अर्श तक की ज़िंदगी हकीकत से ज्यादा कहानी लगती है, लेकिन कहानी है नहीं, इसलिए आम आदमी का दिल दहलाने के लिए काफी है, फिलहाल सुकून की बात यह है कि 22 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद ही सही, पर अपने राजनैतिक गुरु महेंद्र सिंह भाटी को ठिकाने लगाने वाला डीपी यादव सलाखों के पीछे पहुंच गया है।