उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। सत्तारूढ़ कांग्रेस के नौ विधायकों ने मुख्यमंत्री हरीश रावत के विरुद्ध न सिर्फ बगावत कर दी, बल्कि भाजपा के पाले में जा बैठे, जिससे उत्तराखंड की सरकार अल्पमत में आ गई, इस सब पर वैधानिक कार्रवाई चल ही रही थी, इस बीच नई दिल्ली में बागी विधायकों की ओर से प्रेस वार्ता कर एक वीडियो जारी किया गया, जिसको लेकर बागी विधायक हरक सिंह रावत द्वारा दावा किया जा रहा है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत विधायकों को खरीदने का प्रयास कर रहे हैं और धमका रहे हैं, इस आरोप का खंडन करते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत कह रहे हैं कि स्टिंग फर्जी है।
हाल-फिलहाल स्टिंग ऑपरेशन को सच ही माना जाये, तो भी कई ऐसे सवाल हैं, जो बागी विधायकों और बागी विधायकों को संरक्षण देने वाली भाजपा, साथ ही कथित स्टिंग ऑपरेशन करने वाले उमेश शर्मा की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। सबसे पहला सवाल तो बागी विधायकों पर यही है कि उन्हें हरीश रावत से समस्या थी, तो हरीश रावत के विरोध में जाते, लेकिन वे हरीश रावत के विरोध के साथ ही भाजपा के पाले में क्यूं गये? भाजपा के पाले में जाने से ही उन सभी के व्यक्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लग गया, जिसका सटीक जवाब वे दे ही नहीं सकते। नैतिकता के पैमाने से सभी बागी विधायक बाहर ही नजर आ रहे हैं।
अब भाजपा की बात करते हैं, तो भाजपा स्वयं को “पार्टी विद डिफरेंस” कहती है। अगर, भूतकाल में कांग्रेस द्वारा किये गये क्रिया-कलापों को आधार बना कर वह स्वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास करती है, तो फिर “पार्टी विद डिफरेंस” कहाँ हुई? कांग्रेस का आंतरिक मामला कह कर भाजपा को पूरी तरह बागी विधायकों से दूर रहना चाहिए था, लेकिन भाजपा बागी विधायकों की संरक्षक बन गई और उनके साथ मिल कर हरीश रावत की सरकार गिराने में सहयोग करने लगी, जिससे नैतिकता के पैमाने से भाजपा भी पूरी तरह बाहर ही नजर आ रही है।
कथित स्टिंग ऑपरेशन करने वाले उमेश शर्मा स्वयं को नायक दर्शाने का प्रयास करते दिख रहे हैं, लेकिन उनकी भूमिका और भी बड़े सवालों के घेरे में है। बताया जा रहा है कि उन्होंने 23 मार्च को जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर स्टिंग किया, तो सबसे पहला सवाल तो यही है कि उमेश शर्मा ने स्टिंग ऑपरेशन अपने “समाचार प्लस” चैनल पर क्यूं नहीं दिखाया? उन्होंने कथित स्टिंग ऑपरेशन की सीडी बागी विधायकों को क्यूं दी? क्या उमेश शर्मा ने भाजपा के कहने पर कथित स्टिंग किया था? क्या उमेश शर्मा ने बागी विधायकों के कहने पर कथित स्टिंग किया था? देहरादून से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक, उनकी सामाजिक छवि बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती, ऐसे में उन पर उठ रहे सवालों को लेकर संशय के बादल बहुत गहरे नजर आ रहे हैं, वे हरीश रावत से इस तरह की बातें, अर्थात डील पहले भी करते रहे होंगे, तभी उत्तराखंड की राजनीति का सर्वाधिक सशक्त नेता और चाणक्य कहा जाने वाला व्यक्ति उनसे इस तरह की बात करने को तैयार हो गया।
खैर, उत्तर प्रदेश में चुनावी बादल मंडराने लगे हैं, ऐसे में भाजपा घृणित राजनीति का हिस्सा बनेगी, तो उसे उत्तराखंड के साथ उत्तर प्रदेश में भी बड़ा नुकसान हो सकता है, इसलिए भाजपा की केंद्र सरकार को उच्च स्तरीय कमेटी गठित कर सर्व प्रथम कथित स्टिंग ऑपरेशन करने वाले उमेश शर्मा और उनके ध्येय की जाँच करनी चाहिए, वरना यह समझा जायेगा कि उमेश शर्मा भाजपा और केंद्र सरकार के षड्यंत्र के ही एक मोहरे हैं।