भारतीय जनता पार्टी को नारे गढ़ने में महारत हासिल है। साइनिंग इंडिया के नारे के साथ अटल सरकार को ही जनता ने जमीन के अंदर गाड़ दिया था, ऐसा ही कुछ अब मोदी सरकार के साथ होता नजर आ रहा है। केंद्र जाने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है। उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले भाजपा का प्रमुख मुद्दा बेटियां ही थीं। “बेटियों के सम्मान में, भाजपा मैदान में”, यह नारा आम जनता को लुभावने में कामयाब रहा तभी, उत्तर प्रदेश में प्रंचड बहुमत मिला। सरकार बनने के बाद भाजपा भी नारा भूली नहीं और एंटी रोमियो दल बना दिया, जिसकी प्रशंसा भी हुई और विवाद भी हुए लेकिन, एक वर्ष गुजरते ही समूचा एजेंडा ही बदल गया।
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बेटी बचाओ का नारा अब चेतावनी के रूप में बदल चुका है, क्योंकि यौन उत्पीड़न की वारदातें निरंतर घटित हो रही हैं। जिला उन्नाव के प्रकरण में सरकार की भूमिका निंदा करने वाली ही है। पूरे प्रकरण से इतना तो स्पष्ट है ही कि विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की दबंगई के आगे पुलिस-प्रशासन नतमस्तक था। यौन उत्पीड़न के आरोप पर सवाल उठाया जा सकता है लेकिन, पूरे घटना क्रम पर विधायक और सरकार भी सवालों के घेरे में हैं।
विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की आड़ में उसका भाई अतुल सिंह सेंगर दबंगई नहीं कर रहा होता तो, घटना होती ही नहीं। घटना के बाद पुलिस की भूमिका बेहद खराब रही है। प्रकरण को लेकर जनसमूह निंदा करने लगा तो, पीड़िता के पिता से मारपीट करने के आरोप में अतुल सिंह सेंगर को गिरफ्तार कर लिया गया। पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया, यही शुरुआत में ही हो गया होता तो, सरकार फजीहत से बच सकती थी।
उक्त प्रकरण में त्वरित और सटीक कार्रवाई हो गई होती तो, पीड़ित भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर आरोप नहीं लगाती, क्योंकि पीड़ित ने जून 2017 के प्रकरण में विधायक को न्यायालय में प्रार्थना पत्र देकर आरोपी बनाया है, जबकि पूर्व में दिए गये बयानों में विधायक पर आरोप नहीं लगाया गया था। असलियत में विधायक की ताकत के चलते परिवार पिस रहा था तो, चरित्र दांव पर लगा दिया गया, यह सब समझ रहे हैं लेकिन, यह सब करने के लिए सरकार ने ही पीड़ित को मजबूर किया है। अब हालात ऐसे हैं कि स्वयं को तानाशाह समझ रहे मुख्यमंत्री विधायक को बचाने के कारण विधायक को और गहरे गड्ढे में डाल चुके हैं, जिसमें से निकल पाना आसान न होगा।
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उन्नाव जिले में स्थित माखी थाना क्षेत्र के गाँव सराय थोक निवासी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के राजनैतिक जीवन पर नजर डालें तो, वे प्रथम दृष्टया हरिश्चंद्र तो बिल्कुल भी नजर नहीं आते। कुलदीप सिंह सेंगर उत्तर प्रदेश युवक कांग्रेस के कार्यकर्ता थे, इसके बाद 2002 में बसपा से चुनाव लड़े और जीत गये। 2012 का चुनाव सपा के टिकट पर लड़े और फिर भगवंतनगर क्षेत्र से जीत गये। पिछले चुनाव से पहले भाजपा में चले गये और फिर जीतने में कामयाब हो गये। राजनैतिक कद की तरह ही इनकी संपत्ति भी बढ़ी है। 2007 में इन्होंने अपनी संपत्ति 36 लाख रूपये बताई थी, वहीं अब दो करोड़ रुपये पार कर गई है, इसके अलावा सपा के विरुद्ध जाकर अपनी पत्नी संगीता सेंगर को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा लिया था। भाई मनोज सेंगर भी ब्लॉक प्रमुख रह चुका है और हाल-फिलहाल कुलदीप सिंह सेंगर स्वयं लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, इसलिए पूरे प्रकरण में राजनीति भी हो रही होगी लेकिन, चिंगारी शोला बनी है और उसमें घी सरकार ने स्वयं डाला है।
बात हो रही थी बेटियों के सम्मान की तो, इससे भी भयावह कृत्य सरकार ने यौन उत्पीड़न के आरोपी चिन्मयानंद के प्रकरण में किया है। नागरिक की सुरक्षा करना राज्य का धर्म है, राज्य धर्म के पालन में असफल होता है तो, पीड़ित नागरिक को न्याय दिलाने में जुट जाता है, इसलिए सरकार बनाम आरोपी के रूप में मुकदमा चलता है। पीड़ित की ओर से राज्य पैरवी करता है, उसके लिए राज्य की ओर से प्रत्येक न्यायालय में पीड़ित की मदद के लिए अधिवक्ता तैनात किये जाते हैं लेकिन, इस प्रकरण में एक दम उल्टा हो गया। राज्य आरोपी के साथ खड़ा हो गया। सरकार के निर्देश पर सरकारी वकील ने शाहजहाँपुर स्थित न्यायालय में यह लिख कर दे दिया कि मुकदमा वापस लेने में उसे कोई आपत्ति नहीं है और जब सवाल उठाया गया तो, शर्मिंदा होने की जगह सरकारी प्रवक्ता द्वारा कह दिया गया कि मुकदमा सरकार ने भले ही वापस ले लिया पर, पीड़ित न्यायालय में आपत्ति कर सकता है मतलब, सरकार से पीड़ित लड़े और आरोपी मस्ती करे। एक वर्ष पूरे होने पर सरकार कह रही है कि “एक साल, नई मिसाल” और विधायक कुलदीप सिंह सेंगर एवं चिन्मयानंद के प्रकरण में सरकार की भूमिका को देखते हुए माना जा सकता है कि हाँ, नई मिसाल ही है।
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