बदायूं निवासी उद्योगपति और आबकारी आयुक्त की हरकत से लोग आंदोलन करने पर मजबूर हो गये। शराब कंपनी को आबकारी आयुक्त ने महाराणा नाम से शराब बेचने की अनुमति दे दी। मामला बिगड़ता देख कंपनी ने पुलिस को लिख कर दे दिया है कि भविष्य में महाराणा नाम से शराब नहीं बनाई जायेगी।
प्रकरण सहारनपुर जिले का है, यहाँ यूसुफपुर रोड पर टपरी गाँव में को-ऑपरेटिव कंपनी लिमिटेड है, यह लहग ग्रुप की कंपनी है, इसका स्वामी बदायूं शहर का निवासी है। को-ऑपरेटिव कंपनी लिमिटेड ने देशी शराब महाराणा के नाम से रजिस्ट्रेशन के लिए आबकारी आयुक्त- प्रयागराज के समक्ष आवेदन किया था, जिस पर आबकारी आयुक्त ने संस्तुति प्रदान कर दी।
महाराणा के नाम से देशी शराब का क्वार्टर बाजार में आया तो, लोग देख कर चौंक गये। महाराणा की छवि धूमिल करने को लेकर कंपनी के प्रति लोगों में आक्रोश फैलने लगा। तमाम संगठन और आम जनता आंदोलन करने लगी और मैनेजमेंट के विरुद्ध त्वरित कड़ी कार्रवाई की मांग करने लगी तो, पुलिस-प्रशासन में हड़कंप मच गया। आनन-फानन में कंपनी की ओर से कोतवाली देहात में यह लिख कर दे दिया गया कि कंपनी महाराणा के नाम से शराब नहीं बनायेगी। हाल-फिलहाल प्रकरण थम गया है पर, सवाल यह है कि आबकारी आयुक्त ने महाराणा नाम के ब्रांड पर अपनी सहमति कैसे दे दी?
चूंकि कंपनी ने महाराणा नाम का रजिस्ट्रेशन करने का आवेदन दिया था और आवेदन विधिवत स्वीकृत होने के बाद महाराणा नाम से शराब बनाई गई थी, इसलिए कंपनी दोषी नहीं है। दोष आबकारी आयुक्त का है कि उन्होंने महाराणा नाम के ब्रांड को रजिस्टर्ड क्यों किया, ऐसे तो कोई किसी देवी-देवता के नाम से भी रजिस्ट्रेशन कराने का आवेदन कर देगा और वे उस नाम का महत्व समझे बिना ही नाम को रजिस्टर्ड कर देंगे। शासन को आबकारी आयुक्त के विरुद्ध त्वरित कड़ी कार्रवाई करना चाहिए ताकि, भविष्य में ऐसा भयावह अपराध न दोहराया जा सके।
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