बदायूं जिले में भगवा फहराने का क्रम जारी है। भारतीय जनता पार्टी ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद आसानी से कब्जा लिया। जीत का मुकुट पूर्व एमएलसी एवं भाजपा प्रदेश कार्य समिति में सदस्य जितेन्द्र यादव की पत्नी वर्षा यादव के सिर पर रखा दिखाई दे रहा है लेकिन, इस जीत के पीछे तमाम धुरंधरों की कड़ी मेहनत है। भाजपा के चाणक्यों की सामूहिक रणनीति और कूटनीति ने नामुकिन दिखाई दे रही जीत को बड़ा ही आसान बना दिया। डीपी यादव परिवार को लंबे समय बाद बड़ी खुशी मिली है, जिससे जीत की सूचना मिलते ही बहू को आशीर्वाद देने को डीपी यादव भी दौड़े चले आये।
बदायूं जिला समाजवादी पार्टी का इटावा और मैनपुरी से भी ज्यादा मजबूत गढ़ माना जाता रहा है, यहाँ अधिकांश राजनैतिक पदों पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा है। बदायूं के गढ़ होने का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि वर्ष- 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में धर्मेन्द्र यादव रिकॉर्ड मतों से विजयी हुये थे, इस अहंकार के कारण अथवा, समाजवादी पार्टी से लोग ऊब गये अथवा, स्थानीय नेताओं की कार्य प्रणाली से तंग आ गये अथवा, भारतीय जनता पार्टी की रणनीति ज्यादा असरदार साबित हुई, जो भी कारण हों पर, भारतीय जनता पार्टी ने सपा को हर जगह से उखाड़ना शुरू कर दिया। विधान सभा चुनाव में पांच विधायक झटक लिए। लोकसभा चुनाव में डॉ. संघमित्रा मौर्य आसानी से जीत गईं। सहकारी विभाग से जुड़े समस्त पद कब्जा लिए। जिला पंचायत पर अविश्वास प्रस्ताव लाकर भाजपा ने ही कब्जा कर लिया था, इस कब्जे को बरकरार रखने का भाजपा पर भी दबाव था। भाजपा ने हर बिंदु पर विचार कर पूर्व एमएलसी एवं भाजपा प्रदेश कार्य समिति में सदस्य जितेन्द्र यादव की पत्नी वर्षा यादव को टिकट दिया, जो आज 28 मत पाकर आसानी से जीत गईं। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अभेद किला माने जाने वाले गढ़ में समाजवादी पार्टी के पास टक्कर देने लायक प्रत्याशी तक नहीं था। जुझारू, संघर्षशील, लोकप्रिय और युवा नेता पूर्व विधायक सिनोद कुमार शाक्य “दीपू भैया” को सपा लुभाने में कामयाब हो गई तो, उनकी पत्नी सुनीता शाक्य ने चुनाव को रोचक बनाने का प्रयास कर दिया।
खैर, भाजपा की वर्षा यादव जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हो गई हैं। बाहर से आसान दिख रही जीत के पीछे भाजपा के रणनीतिकारों की कड़ी मेहनत है, इस जीत ने भाजपा का मनोबल भी बढ़ा दिया है। जिलाध्यक्ष अशोक भारती के नेतृत्व में हुए पंचायत चुनाव में भाजपा बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई लेकिन, वर्षा यादव के जीतने से अब वे भी मुस्करा सकते हैं, गर्व कर सकते हैं। राज्यमंत्री महेश चंद्र गुप्ता चुनाव के प्रभारी बनाये गये, इसलिए जीत का श्रेय उनको ही जायेगा, उनके नेतृत्व में भाजपा प्रत्याशी विजयी हुई हैं, इसलिए नेतृत्व की दृष्टि में उनके नंबर बढ़ने स्वाभाविक ही हैं, साथ ही भाजपा पिछड़ा वर्ग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं राज्यसभा सदस्य बीएल वर्मा, विधायक राजीव कुमार सिंह “बब्बू भैया”, विधायक धर्मेन्द्र कुमार शाक्य “पप्पू भैया” विधायक आरके शर्मा और विधायक कुशाग्र सागर ने अपनी भूमिका को बड़े ही अच्छे ढंग से निभाया, इसलिए जीत में उनका भी बराबर का योगदान माना जायेगा।
सूत्रों का कहना है कि टिकट से लेकर जीतने तक की रणनीति सांसद डॉ. संघमित्रा मौर्य स्वयं बना रही थीं, वे पल-पल की रिपोर्ट ले रही थीं, उन्हें जहाँ भी कमजोरी दिखाई दे रही थी, वहां स्वयं न सिर्फ बात कर रही थीं बल्कि, बढ़-चढ़ कर रूचि ले रही थीं। भाजपा ने जिला पंचायत सदस्यों को उत्तराखंड के रामनगर में ठहराया था, जहाँ सांसद डॉ. संघमित्रा मौर्य गईं और सदस्यों से वार्ता कर उनका मनोबल बढ़ाया, उन्हें प्रेरित किया, जिससे सदस्य बेहद प्रभावित हुए। आज सदस्यों को बरेली लेने स्वयं गईं और वहां से सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ सदस्यों को लेकर आईं, साथ ही मतदान से लेकर मतगणना तक डटी रहीं, इसके अलावा शासन और प्रशासन के स्तर पर भी उन्होंने ही मोर्चा संभाला।
इन सबके अलावा पर्दे के पीछे भी कई चाणक्य रात-दिन कड़ी मेहनत करते दिखाई दिए। भाजपा के महामंत्री पंडित शारदाकांत “सीकू भैया” की अकाट्य चाल का किसी के पास कोई तोड़ नहीं होता, उन्होंने भाजपा को बहुमत से ज्यादा सदस्य जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वे अगर चाणक्य की भूमिका में नहीं होते तो, आसानी से जीत गई भाजपा प्रत्याशी को कड़ा संघर्ष करना पड़ सकता था। डीसीडीएफ के चेयरमैन रवेन्द्र पाल सिंह ने भी रात-दिन कड़ी मेहनत की है, इसके अलावा पूर्व जिलाध्यक्ष हरीश कुमार शाक्य, महामंत्री सुधीर श्रीवास्तव, युवा नेता विश्वजीत गुप्ता, कस्बा वजीरगंज के युवा नेता दीपेश वार्ष्णेय, अंकित मौर्य और आशीष शाक्य के अलावा ग्रामीण क्षेत्र के ऐसे तमाम लोग हैं, जिन्होंने निर्दलीय सदस्यों को चुनाव जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, वे निर्दलीय सदस्यों को दबाव बना कर भाजपा के पक्ष में लाये, इन सब योद्धाओं के बीच में जितेन्द्र यादव स्वयं में बड़े नेता हैं, असरदार हैं, उनकी पत्नी चुनाव लड़ रही थीं। स्पष्ट है कि उन्होंने सब कुछ दांव पर लगा दिया होगा तब जाकर भाजपा प्रत्याशी वर्षा यादव जीत पाई हैं।
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