बदायूं लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेन्द्र यादव ने शुक्रवार को संसद के शीतकालीन सत्र में राफेल डील के मुद्दे पर बोलते हुये कहा कि कारगिल युद्ध के पश्चात् वर्ष- 2002 से भारतीय वायुसेना फाइटर विमानों की मांग करती रही है। वर्ष- 2007 में यूपीए सरकार द्वारा फैसला लिया गया कि 126 विमान खरीदे जायेगें परन्तु, यूपीए सरकार उसको अमली जामा नहीं पहना पाई। वर्ष- 2016 में जिस प्रकार यह समझौता हुआ और जिस तरह से देश के सामने सवाल खड़े हुये, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है।
सांसद ने कहा कि नेता जी (मुलायम सिंह यादव) जब देश के रक्षामंत्री थे तब, 30 सुखोई विमान वायु सेना के लिए खरीदे गये, जो अब तक का सबसे मजबूत विमान है तथा भारतीय सेना की शान है, जब सुखोई- 30 का समझौता हुआ, उस समय सदन के अन्दर नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेई ने तत्कालीन रक्षामंत्री नेता जी (मुलायम सिंह यादव) को बधाई दी थी, आपके माध्यम से सरकार से कहना चाहता हूँ कि राष्ट्रहित में ऐसे समझौते किये जायें कि विपक्ष भी उस पर उंगली न उठा सके। समाजवादियों के लिए यह गर्व की बात है कि यूनाईटेड रशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने हिन्दुस्तान के रक्षामंत्री को रिसीव किया था, उस समय हिन्दुस्तान की यह साख थी, वर्तमान समय में देश को सरकार द्वारा कहां लाकर खड़ा दिया है।
उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान सरकार के लोग पारदर्शी व्यवस्था की बात कर रहे थे, देश की मान-सम्मान की बात कर रहे थे तथा 56 इंच के सीने की दुहाई दे रहे थे, उन्होंने 526 करोड़ रूपये के विमान को 1600 करोड़ रूपये में खरीदा है, इसमें कोई शक नहीं है कि राफेल विमान बहुत अच्छा विमान है तथा भारतीय वायु सेना को इसकी अत्यन्त आवश्यकता है परन्तु, जिस प्रकार एचएएल जैसी सार्वजनिक संस्था के साथ अनुबन्ध न कर के निजी कम्पनियों के साथ अनुबन्ध किया है, इसमें जितनी शंकाये उत्पन्न हुई हैं, उनका समाधान होना आवश्यक है। वित्त मंत्री के अनुसार यूपीए द्वारा जो विमान लिया जा रहा था, वह लोडेड नहीं था परन्तु, एनडीए द्वारा लिया जा रहा विमान लोडेड है। मैं बड़ी जिम्मेदारी से कहना चाहता हूँ कि केवल टेक्नोलाॅजी को सार्वजनिक नहीं करने का अनुबन्ध है परन्तु, कीमत को सार्वजनिक नहीं करने के नाम पर कोई बहाना नहीं चल सकता है। केन्द्र की भाजपा सरकार चाहे तो, कीमत को सार्वजनिक कर सकती है, देश के जन-मानस के सामने राफेल डील का समझौता कहीं न कहीं शंका के दायरे में रहेगा।
सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिये कि समझौते के समय रक्षामंत्री तथा रक्षा सचिव क्या दोनों फ्रांस में थे अथवा, नहीं। एचएएल जैसी सार्वजनिक उद्यम जैसी संस्था को नजर अंदाज कर राफेल डील के लिए निजी संस्था के साथ अनुबन्ध क्यों किया गया? इन सभी तथ्यों को केन्द्र सरकार द्वारा सार्वजनिक रूप से उजागर करना अत्यन्त आवश्यक है। आज प्रधानमंत्री सहित पूरी केन्द्र सरकार आरोपों के दायरे में है, मैं समाजवादी पार्टी की ओर से इस विषय पर संयुक्त संसदीय कमेटी की बैठक की मांग करता हूँ।
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