बदायूं जिले में पुलिस न्यायालय का भी काम खुलेआम करती नजर आ रही है। मुकदमा लिख कर विवेचना न्यायालय में प्रेषित करने की जगह पुलिस स्वयं ही फैसला सुनाने लगी है। आरोपी से कह देती है कि जाओ मौज करो और पीड़ित से कह देती है कि तुम झूठे हो। यौन उत्पीड़न के प्रकरण में भी पुलिस ने ऐसा ही कुछ कर दिया है। चर्चा है कि पुलिस ने यौन उत्पीड़न के आरोपियों से मोटी रकम वसूली है।
सदर कोतवाली में पिछले सप्ताह एक यौन उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया गया था। कादरचौक थाना क्षेत्र की महिला ने आरोप लगाया था कि कचहरी से एक लेखपाल उसे अपने घर ले गया और फिर उसका यौन उत्पीड़न किया। पूरे प्रकरण में एक और लेखपाल की भूमिका दर्शाई गई थी। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया, इस मुकदमे का खुलासा नहीं किया गया, जबकि पुलिस के वाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पेज में हर दिन की कार्रवाई से अवगत कराया जाता है लेकिन, इस प्रकरण में कोई कार्रवाई नहीं की गई।
पुलिस को पहले से ही पता था कि मुकदमा फर्जी है तो, पुलिस ने मुकदमा दर्ज ही क्यों किया और जब दर्ज कर लिया तो, विधिवत जांच करना चाहिए थी, पक्ष-विपक्ष की ओर से साक्ष्य जुटाने चाहिए थे और विवेचना पूरी कर न्यायालय को प्रेषित करनी चाहिए थी लेकिन, पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं किया।
पुलिस आरोपियों के साथ बैठ कर बतियाती देखी जा सकती है, आरोपी कभी भी पुलिस के आवास में घुस जाते हैं और वहां बैठ कर चाय-नाश्ता करते देखे जा सकते हैं। यौन उत्पीड़न के आरोपियों के साथ इस तरह पेश आने से पुलिस की छवि खराब हो रही है। चर्चा है कि यौन उत्पीड़न का मुकदमा समाप्त करने के बदले पुलिस ने आरोपियों से मोटी रकम ली है पर, हाल-फिलहाल चर्चाओं को पुष्ट करने का साक्ष्य नहीं है, इस प्रकरण में उच्च स्तरीय जांच हुई तो, पुलिस की भूमिका स्पष्ट हो जायेगी और दोषी कार्रवाई से बच नहीं पायेंगे।
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