बदायूं जिले की पुलिस की कार्य प्रणाली चौंकाने वाली है। मानवाधिकारों को ताक पर रख कर कार्य कर रही पुलिस ने अब मासूम बच्ची के यौन उत्पीड़न के प्रकरण में पीड़ित पक्ष को डरा-धमका कर स्टांप पर लिखित में फैसला करा दिया और आरोपी को छोड़ दिया। पीड़ित पक्ष पुलिस की कार्य प्रणाली को लेकर मायूस नजर आ रहा है।
जघन्य वारदात रेलवे कॉलोनी की है, यहाँ छः वर्षीय और पांच वर्षीय बहनों को पड़ोस का ही एक बहशी बहाने से अपने घर बुला ले गया। छः वर्षीय बच्ची का यौन उत्पीड़न करने लगा, वह रोई तो, छोटी बहन ने छोड़ने को कहा तो, बहशी ने उससे कहा कि इसके बाद तेरे साथ भी ऐसे ही करेगा, इसलिए चुप बैठी रहे। बच्ची जोर से चीखी तो, बहशी उन्हें छोड़ कर भाग गया। बच्चियों को लेकर पीड़ित परिवार महिला थाने पहुंचा तो, महिला थानाध्यक्ष ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया लेकिन, कार्रवाई करने की जगह पीड़ित परिवार को ही डराया-धमका कर फैसला करने को मजबूर कर दिया।
महिला थानाध्यक्ष ने पीड़ित परिवार से कहा कि आरोपी दबंग हैं, रोज मारपीट करेगा, कार्रवाई करने में रुपया खर्च होगा, समय बर्बाद होगा, बहुत भाग-दौड़ करनी पड़ेगी, जिसके बाद पीड़ित परिवार से दस रूपये के स्टांप पर जबरन दस्तखत करा लिए, साथ ही फैसले की छायाप्रति तक नहीं दी। फैसले में लिखा है कि आरोपी कॉलोनी में नहीं रहेगा, इस शर्त के साथ आरोपी को छोड़ दिया मतलब, महिला थानाध्यक्ष स्वयं ही जज बन गई। यौन उत्पीड़न की जघन्य वारदात को दबाने का घृणित कार्य उस थानाध्यक्ष ने किया है, जो स्वयं महिला है। चर्चा है कि यौन उत्पीड़न की वारदात को दबाने के बदले आरोपी पक्ष से मोटी रिश्वत वसूली गई है।
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