बदायूं जिले के मर्द गे को मान्यता देने को तैयार नहीं दिख रहे हैं, जबकि न्यायालय ने गे को वैधानिक रूप से मान्यता दे दी है। शक्ति का समर्थन मिलने से गे गद्गद है लेकिन, मर्द भाव तक देने को तैयार नहीं है, सो बदायूं बड़ा राजनैतिक अखाड़ा बनता जा रहा है। अखाड़े में गे को विजय मिलेगी या, मर्द की जय-जयकार होगी, इसको लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
जी हाँ, पढ़ने में अजीब लग रहा होगा पर, सब कुछ अक्षरशः सच है। गे और मर्द की अपरोक्ष जंग के चलते राजनैतिक बवंडर खड़ा हो गया है। बदलते राजनैतिक घटना क्रम पर मुस्लिम ही नहीं बल्कि, हिन्दुओं के साथ हर जाति-धर्म के लोगों की नजरें टिकी हुई हैं। सूत्रों का कहना है कि मर्द स्वाभिमान की बात करते हुए गे को मान्यता देने को तैयार नहीं है। चूंकि गे को संपूर्ण समाज ही सामान्य नागरिक नहीं मानता सो, मर्द के साथ बड़ा तबका खड़ा नजर आ रहा है, वहीं शक्ति का समर्थन मिलने से गे भी मर्दांगी दिखाने का प्रयास कर रहा है पर, गे को समाज का समर्थन नहीं मिल पा रहा है। कानूनी मान्यता मिलने के बावजूद गे को सामाजिक समर्थन और सम्मान नहीं मिल पा रहा है, इसको लेकर गे चिंतित है और न्यायालय का हवाला देते हुए निरंतर मेहनत भी करता दिख रहा है।
उधर मर्द का मानना है कि कागजी मान्यता मिलने से कुछ नहीं होता। समाज की मान्यता मिलना बड़ी बात होती है। मर्द ने जिद ठान ली है कि समाज में वह रहेगा या, गे। स्वाभिमानी तबका मर्द के तर्कों के साथ है, वहीं शौकीन गे के साथ हैं, क्योंकि बिना कुछ किये पद, कद और आनंद मिल जाये तो, वह किसे बुरा लगता है, इसी सोच के विरुद्ध मर्द ने अखाड़ा खोद दिया है। कुश्ती तय है पर, समाज में मर्द रहेंगे या, गे, इस बारे में अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है। फिलहाल होने वाली कुश्ती पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं।
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