बदायूं जिले की पुलिस फर्जी नामजदगी को लेकर अभियान चला रही है, जिसको लेकर जिले भर में चर्चा की जा रही है। गौतम संदेश ने सर्व प्रथम अभियान पर सवाल खड़ा किया तो, बड़ी संख्या में लोग सवाल के साथ खड़े नजर आये। सवाल एसएसपी अशोक कुमार की सोच पर नहीं, बल्कि अभियान पर खड़ा किया गया है, पुलिस पर किये जा रहे अति के विश्वास पर सवाल खड़ा किया गया है, जिसको लेकर प्रकरण सामने भी आने लगे हैं।
बिसौली कोतवाली में मुकदमा अपराध संख्या- 183/18 दर्ज कराया गया था। धारा- 498ए, 323, 504, 313, 307 आईपीसी के साथ 3/4 दहेज अधिनियम लगाया गया था, इसकी विवेचना की गई तो, बिसौली निवासी रामाधर के बेटे अनुभव पाराशरी एवं बेटी प्रतिमा को दोष मुक्त करार दे दिया गया, कोतवाली में नोटिस बोर्ड पर दोनों को दोष मुक्त करार देते हुए नोटिस चस्पा कर दिया गया, साथ ही दोष मुक्त करार दिए गये लोगों की सूची में दोनों के नाम देकर पुलिस ने उस समय जमकर वाह-वाही भी लूटी।
इसके बाद दूसरा पक्ष सक्रिय हुआ, उसने उच्चाधिकारियों से शिकायत की। उच्चाधिकारियों के निर्देश पर पुनः दोनों को विवेचना में शामिल कर लिया गया है। बताया जा रहा है कि पुलिस ने अब अनुभव और प्रतिमा के विरुद्ध साक्ष्य जुटाने शुरू कर दिए हैं। सवाल वादी-प्रतिवादी पर नहीं है। अनुभव और प्रतिमा सही हो सकते हैं, गलत भी हो सकते हैं, इसका निर्णय न्यायालय करेगा, लेकिन जो सवाल पुलिस की कार्यप्रणाली पर उठाया गया था, वह और मजबूती से खड़ा हो गया है, क्योंकि गाँव की गरीब जनता पैरवी नहीं कर सकती, वह अफसरों के सामने नहीं जा सकती, उसे नियम-कानून का उतना ज्ञान भी नहीं होता, जो विरोध करे, उसके अधिकारों की रक्षा कौन करेगा?
खैर, अनुभव और प्रतिमा को निर्दोष करार क्यों दिया गया और उसके बाद दोषी क्यों माना जा रहा है?, दोनों ही सवालों पर पुलिस ही कठघरे में खड़ी दिख रही है, यहाँ सवाल यह है कि निर्दोष करार देने वाले अफसर को एसएसपी ने बर्खास्त करने की कार्रवाई क्यों नहीं की?, वे इस प्रकरण में कड़ी कार्रवाई करते तो, और भी विवेचनाधिकारी सतर्क हो जाते, गलत विवेचना करने से पहले कई बार सोचते लेकिन, ऐसा कुछ नहीं किया गया और न ही निर्दोषों को पुनः दोषी देने की बात प्रचारित की गई, जिससे सभी सवालों के घेरे में ही नजर आ रहे हैं।
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