बदायूं जिले में ई-गवर्नेंस को फेल करने वाले काम खुलेआम किये जा रहे हैं। पीड़ित शिकायत करने के बाद साइट खोलते हैं, तो उनकी शिकायत को निस्तारित करने का संदेश मिलता है, यही संदेश उनके मोबाईल पर भी आ जाता है, लेकिन वास्तव में शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं होती। कर्मचारियों की शातिर चाल के शिकार पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
सरकार आम जनता की सुविधा के लिए ई-गवर्नेंस को बढ़ावा दे रही है। आम जनता से जुड़े अधिकांश कार्यों का समाधान सरकार इंटरनेट से ही कराना चाहती है। सरकार का उद्देश्य है कि ई-गवर्नेंस से जनता को बार-बार कार्यालयों में नहीं दौड़ना पड़ेगा, साथ ही भ्रष्टाचार पर भी रोक लगेगी, लेकिन शातिर कर्मचारियों ने ई-गवर्नेंस को फेल करने के फार्मूले खोज लिए हैं। रोज ऐसे प्रकरण सामने आ रहे हैं, जिनकी शिकायत पर जांच तक नहीं हुई, लेकिन मोबाईल और साइट पर निस्तारण का संदेश दिखाई दे रहा है।
नियमानुसार आईजीआरएस, अथवा जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत होने के बाद संबंधित जांच अफसर को सर्व प्रथम शिकायतकर्ता से संपर्क करना चाहिए एवं जाँच के बाद आख्या संबंधित पोर्टल पर अपलोड करना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। पोर्टल पर की गई शिकायत की निरंतर समीक्षा होती है, जिससे जाँच अफसर शिकायत मिलते ही निस्तारण शब्द लिख देते हैं और आख्या की जगह कोरा कागज अपलोड कर देते हैं। शिकायतकर्ता को लगता है कि इंटरनेट की समस्या के चलते आख्या नहीं दिख रही है, लेकिन ऐसा तमाम लोगों के साथ होने लगा, तो कर्मचारियों की शातिर चाल लोगों की समझ में आने लगी। अब पीड़ित शिकायत का फर्जी निस्तारण करने की भी शिकायतें कर रहे हैं, जिन्हें अफसर गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
जाति प्रमाण पत्र, मूल निवास प्रमाण पत्र और आय प्रमाण पत्रों के प्रकरणों में भी ऐसा ही हो रहा है। संबंधित कर्मचारी चाहते हैं कि आवेदक उनसे आकर मिले और उन्हें रिश्वत दे। आवेदक नहीं मिलता, तो कुछ भी अधूरा दर्शा कर आवेदन निरस्त कर दिया जाता है। एक-दो बार के बाद आवेदक मिलता है, रिश्वत देता है, उसके बाद उसका प्रमाण पत्र बनता है। शिकायतों का फर्जी निस्तारण करने वालों के साथ प्रमाण पत्र बनाने में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक आम जनता को ई-गवर्नेंस का लाभ नहीं मिल सकेगा।
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