बदायूं जिले में जिलाधिकारी की भूमिका में ईमानदार अफसर भी आते रहे हैं और बेईमान अफसर भी आते रहे हैं। ईमानदार अफसरों की आज भी प्रशंसा की जाती है, वहीं पद को कलंकित करने वाले भी नहीं भुलाए जा सकते। नियम और कानून का अक्षरशः पालन कराने वाले अफसर भी आते रहे हैं लेकिन, डीएम आईएएस दीपा रंजन ने अब तक के इतिहास में पहली बार ऐसा कार्य किया है कि अधिकारी और कर्मचारी भी स्तब्ध नजर आ रहे हैं।
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जी हाँ, नगर निकायों की कार्य योजना को लेकर जिलाधिकारी की अध्यक्षता में बैठक आयोजित की जाती है, इस बैठक में कार्य योजना का प्रस्ताव रखा जाता है, जिसे चर्चा के बाद अनुमोदित कर दिया जाता है लेकिन, ऐसा औपचारिक रूप में ही होता रहा है। अधिशासी अधिकारी कार्य योजना तैयार कर के ले आते हैं और फिर बैठक में चाय-नाश्ते के बीच हस्ताक्षर हो जाते हैं, जिसके बाद बैठक समाप्त हो जाती है लेकिन, डीएम आईएएस दीपा रंजन ऐसा नहीं किया।
डीएम दीपा रंजन द्वारा अधिशासी अधिकारियों द्वारा तैयार कर के लाई गई पन्द्रहवें वित्त आयोग की कार्य योजना को समझा गया, वे कार्य योजना में दर्शाए गये कार्यों की गंभीरता को समझ गईं, साथ ही उन्होंने माहमारी काल को भी ध्यान में रखा और प्रस्तावित कार्य योजना में से पचास प्रतिशत कार्य योजना को स्वीकृति प्रदान की, साथ ही शेष पचास प्रतिशत कार्य योजना की स्वीकृति तब दी जायेगी जब संबंधित निकाय कार्य पूर्ति प्रमाण पत्र देंगे, ऐसा करने से अब निकाय धन की बर्बादी नहीं कर पायेंगे, साथ ही गुणवत्ता का भी ध्यान रखेंगे। पचास प्रतिशत कार्य योजना को स्वीकृति देने और डीएम द्वारा उसमें शर्त जोड़ देने से अधिकारी-कर्मचारी स्तब्ध नजर आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि ऐसा बदायूं जिले में ही नहीं बल्कि, प्रदेश में पहली बार हुआ होगा।
खैर, अब डीएम दीपा रंजन को कई महीने बीत चुके हैं, उनकी कार्य प्रणाली से सिद्ध हो गया है कि वे बेहद ईमानदार हैं और उनकी कार्य पद्धति भी पारदर्शी है लेकिन, भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात नगर पंचायत उसहैत की जाँच न होने और कार्रवाई न होने से जिले भर में सवाल भी उठाये जा रहे हैं। उसहैत में व्याप्त वित्तीय अनियमितताओं की जाँच करा कर दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करा दी गई तो, दीपा रंजन का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो जायेगा।
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