बदायूं के जिला समाज कल्याण अधिकारी पर लगा यौन उत्पीड़न का आरोप सुलझने की जगह और उलझता जा रहा है। पहले तो पुलिस को मुकदमा दर्ज कर विवेचना करना चाहिए थी लेकिन, पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया, साथ ही पीड़ित पक्ष कुछ कह रहा है और पुलिस जांच कुछ और ही कर रही है, जिससे पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में आने लगी है, इस प्रकरण में अब वरिष्ठ अफसरों को ही हस्तक्षेप करना होगा और किसी निष्पक्ष अधिकारी से उच्च स्तरीय जाँच करानी होगी।
उल्लेखनीय है कि दातागंज कोतवाली क्षेत्र के एक आश्रम पद्धति स्कूल में एक युवक की दो लड़कियाँ पढ़ती हैं। युवक का आरोप है कि 22 जनवरी 2023 को रविवार के दिन दोपहर लगभग 12:30 बजे प्रधानाचार्या के आवास पर जिला समाज कल्याण अधिकारी राम जनम ने उसकी पुत्रियों को बुलाया और उनका यौन उत्पीड़न किया मतलब, अश्लील हरकतें कीं।
युवक ने अफसरों और जन सुनवाई पोर्टल पर शिकायत करते हुए मुकदमा दर्ज करा कर कार्रवाई कराने की गुहार लगाई। प्रार्थना पत्र दातागंज कोतवाली में पहुंचा। पीड़ित युवक ने बताया कि पुलिस शुरुआत में कह रही थी कि प्रकरण अन्य थाने का है, वहां शिकायत कीजिये। पीड़ित ने जांच और कार्रवाई करने की मौखिक गुहार भी लगाई तो, कह दिया गया कि कोतवाली निरीक्षक जांच कर रहे हैं। अगले दिन पीड़िताओं के बयान दर्ज कराने को बोला गया लेकिन, पीड़िताओं के बयान दर्ज करने से पहले हल्का प्रभारी ने जांच रिपोर्ट प्रेषित कर दी, जिसमें लिखा है कि घटना वाले दिनाँक को जिला समाज कल्याण अधिकारी विद्यालय मे नहीं आये थे व सीसीटीवी फुटेज के अवलोकन से आरोपित किये गये अधिकारीगण के विरुद्ध कोई ठोस साक्ष्य प्राप्त नहीं हो सके, प्रथम दृष्टया लगाये गये सभी आरोप असत्य व निराधार पाये गये हैं, इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि पुलिस ने जाँच करने में गंभीरता नहीं बरती, क्योंकि प्रार्थना पत्र में स्पष्ट लिखा है कि घटना आवास की है, जबकि जाँच रिपोर्ट में विद्यालय का उल्लेख किया गया है।
हल्का इंचार्ज ने अपनी रिपोर्ट में प्रार्थना पत्र को फर्जी साबित कर दिया, इसके बाद प्रभारी निरीक्षक ने पीड़िताओं को बुलाया गया और उनके बयान दर्ज किये गये, इससे सवाल उठता है कि जांच पूर्ण होने के बाद पीड़िताओं के बयान क्यों लिये गये? सवाल यह भी उठता है कि यौन उत्पीड़न के प्रकरणों में उच्चतम न्यायालय का आदेश है कि तत्काल मुकदमा दर्ज होना चाहिये तो, पुलिस ने मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया? इसके अलावा प्रार्थना पत्र में कुछ लिखा है और हल्का इंचार्ज जांच कुछ और कर रहे हैं, जिससे प्रकरण सुलझने की जगह उलझ गया है, वहीं हल्का इंचार्ज की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई है। अब वरिष्ठ अफसरों को अपने स्तर से हस्तक्षेप करना होगा और उच्च स्तरीय जांच करानी होगी तभी सच सामने आ सकेगा।
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