घोटाला: प्रतिदिन हजारों रूपये की रोटियां कबाड़ी को बेच देता है जेल प्रशासन

घोटाला: प्रतिदिन हजारों रूपये की रोटियां कबाड़ी को बेच देता है जेल प्रशासन

बदायूं में वो भी हो जाता है, जिसकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता। गाय रोटी के लिए तरस रही हैं। भूख से सूखने के बाद गाय मर जाती हैं, साथ ही लोग तक रोटी के लिए तरस रहे हैं, जो अन्न के अभाव में दम तोड़ देते हैं, ऐसे देश में हर दिन कई कुंतल रोटी कबाड़ियों को बेच दी जाती हैं और किसी को कोई अंतर नहीं पड़ता।

जी हाँ, जिला कारागार के कर्मचारी हर दिन गोपी चौकी के निकट दुकानों पर लगभग दो कुंतल रोटियां बेचते हैं। हजारों रूपये की रोटियों का कोई लेखा-जोखा नहीं है, यह सब अवैध तरीके से हो रहा है। रोटियां बेच कर होने वाली आमदनी जेल के खाते में नहीं जाती है। सवाल यह है कि दो कुंतल रोटी प्रतिदिन अतिरिक्त क्यों बनाई जाती हैं? जिला कारागार के प्रशासन को यह अनुमान क्यों नहीं हो पा रहा है कि प्रतिदिन कितनी रोटियों की खपत होती है? खपत के अनुसार ही रोटियां पकाई जायें तो, दस किग्रा का अंतर आ सकता है पर, प्रतिदिन दो कुंतल रोटियों की बर्बादी को लेकर जेल प्रशासन चिंतित और गंभीर क्यों नहीं है?

संभवतः जवाब यही है कि दो कुंतल रोटियां 10 रूपये प्रति किग्रा की दर से 2000 रूपये की बेची जाती हैं, मतलब 60 हजार रूपया प्रति माह एवं 7 लाख 20 हजार रुपया सालाना की आमदनी का ऐसा स्रोत हैं, जिस पर कभी किसी की नजर तक नहीं जा सकती। बताते हैं कि प्रतिदिन सुबह 11 बजे जेल के कर्मचारी गोपी चौक पर कट्टों में भरी रोटियां लेकर पहुंचते हैं। दुकानदार 10 रूपये किग्रा की दर से रोटियां खरीदते हैं और 13 रूपये प्रति किग्रा की दर से बेचते हैं, यहाँ से डेयरी संचालक रोटियां खरीद कर ले जाते हैं।

उक्त घपले के संबंध में जेलर आदित्य कुमार से बात हुई तो, पहले तो वे अनिभिज्ञता सी जताते नजर आये लेकिन, बाद में कहा कि जूठन बच जाती होगी, जिसे स्वीपर बेच आते होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि प्रति कैदी के हिसाब से 8 रोटी बनती हैं, 8 रोटी कोई नहीं खा पाता, वे ही बचती होंगी। जेल से बाहर रोटी जाने और रोटी बेचने से हुई आमदनी के बारे में कुछ नहीं कह पाये। जेलर की बात को भी सही माना जाये तो, वे जूठन गोशालाओं को भी दिला सकते हैं, जहाँ भूख से तड़पती गाय को बहुत बड़ी राहत मिल सकती है पर, 2000 रूपये प्रतिदिन की आमदनी को कोई क्यों बंद करना चाहेगा। गाय, पुण्य वगैरह पिछड़े और गरीबों की सोच है, ऐसा अफसर और एलीट क्लास के लोग नहीं सोचते। अब देखते हैं कि वरिष्ठ अफसर क्या कार्रवाई करते हैं?

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