बदायूं जिले में भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी के लिए निराशाजनक परिणाम रहे हैं। संगठन की मजबूती की दृष्टि से देखा जाये तो, भाजपा और सपा को खुशी देने वाले परिणाम नहीं कहे जा सकते। भाजपा के कुल 16 सदस्य जीते हैं, सपा के 12 सदस्य विजयी हुए हैं। बसपा का संगठन मजबूत नहीं है, इसलिए उसके 5 सदस्य भी काफी कहे जायेंगे, इस सबके बीच महान दल ने 2 सदस्य जीत कर अपनी धमक कायम कर दी है। कांग्रेस का भी 1 सदस्य जीता है, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। परिणामों की गहनता से समीक्षा की जाये तो, भाजपा-सपा के बीच ही सीधा मुकाबला था पर, भाजपा को कार्यकर्ताओं की अनदेखी का दुष्परिणाम मिला है, वहीं सपा को मुस्लिमों ने नकार दिया, जिससे वह पिछड़ गई।
भारतीय जनता पार्टी के 51 सदस्यों में 16 विजयी हुए हैं। हालाँकि पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम यादव को भाजपा ने समर्थन नहीं दिया था लेकिन, संगठन ने उन्हें जिताने में शक्ति झोंक दी थी, जिससे उन्हें भाजपा का ही माना जा रहा है। चुनाव पूर्व माना जा रहा था कि भाजपा के 30 से अधिक सदस्य जीत सकते हैं पर, 16 सदस्य जीतने से भाजपा की जमकर फजीहत हो रही है। हालाँकि भाजपा गुटबंदी और भितरघात का भी शिकार हुई है। जैसे रजनी सिंह भाजपा की पदाधिकारी हैं पर, उन्हें समर्थन नहीं दिया लेकिन, वे चुनाव जीत गई हैं।
परिणामों को लेकर कहा जा रहा है कि जनप्रतिनिधि कार्यकर्ताओं से बहुत दूर चले गये हैं, जिससे कार्यकर्ताओं ने अपेक्षित रूचि नहीं ली। कार्यकर्ताओं की मायूसी के चलते निर्दलीय हावी हो गये। विधान सभा चुनाव से पहले का रिहर्सल माना जाये तो, परिणाम भाजपा विधायकों को चिंता में डालने वाले कहे जा सकते हैं। विधानसभा वार देखा जाये तो, बिल्सी विधान सभा क्षेत्र में भाजपा का सम्मान बचा है। अन्य सभी विधान सभा क्षेत्रों में भाजपा की स्थिति निराशाजनक ही कही जायेगी, इसके अलावा भाजपा ने 50 क्षेत्रों में समर्थन दिया था, जिसके अनुसार जीत का प्रतिशत भी घटिया कहा जायेगा। पूनम यादव और तारावती शाक्य के नाम अलग कर दिए जायें तो, भाजपा के 14 सदस्य ही विजयी हुए हैं।
समाजवादी पार्टी ने 31 वार्डों में समर्थन दिया था, उसके 12 प्रत्याशी विजयी हुए हैं। समाजवादी पार्टी की जीत का प्रतिशत भाजपा की तुलना में बेहतर है लेकिन, इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद और कन्नौज की तुलना में बदायूं समाजवादी पार्टी का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है, यहाँ अखिलेश यादव के अनुज धर्मेन्द्र यादव सक्रिय हैं। हाल ही में विशाल जिला कार्यकारिणी गठित की गई है, इस सबका असर चुनाव में दिखाई नहीं दिया, इसके उलट तमाम बड़े पदाधिकारी स्वयं चुनाव हार गये। सवाल यह है कि जो पदाधिकारी स्वयं चुनाव हार गये, उनसे पार्टी को हानि है या, लाभ?
समाजवादी पार्टी ने खेड़ा बुजुर्ग से साबरा खातून, रमजानपुर से शायरा बी., मेल्हापुर से साविस्ता बेगम और हुसैनपुर करौतिया से इसरार अहमद को समर्थन दिया था लेकिन, इनमें से कोई भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत पाया, इससे भी बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि सपा समर्थित मुस्लिम प्रत्याशी को वोट देने की जगह मुस्लिम मतदाताओं ने बसपा और निर्दलीय मुस्लिम प्रत्याशी को वोट देना ज्यादा पसंद किया, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाता पूरी तरह सपा के साथ थे, ऐसे में सपा के लिए यह मंथन करने वाली बात है कि उससे मुस्लिम मतदाता दूर क्यों हो गये?
इसके अलावा ग्रामीण मतदाता समाजवादी पार्टी के माने जाते हैं। पंचायत चुनाव ग्रामीण क्षेत्र में ही होता है। ग्रामीण क्षेत्र में सपा का कमजोर पड़ जाना भी चिंता का विषय है। समाजवादी पार्टी के पास अब 12 योद्धा हैं लेकिन, सेनापति बनने लायक एक भी नजर नहीं आ रहा। सपा का अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाना और जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए प्रत्याशी न होना चिंता की बड़ी बात है। सपा के गढ़ में सपा अध्यक्ष पद के लिए प्रत्याशी खोजने को मशक्कत करेगी, यह सम्मानजनक अवस्था नहीं कही जा सकती। चार साल से विपक्ष में होने के बावजूद गुटबंदी खत्म नहीं कर पाई, इसका दुष्परिणाम भी सपा को झेलना पड़ा है। गढ़ में सपा की ऐसी हालत किसके कारण हुई है, इसकी खोज करना चाहिए और उस कमी को दूर करना चाहिए।
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