बदायूं का पुलिस-प्रशासन उच्चतम न्यायालय की नाराजगी के बाद हरकत में आ गया है। विश्व प्रसिद्ध बड़े सरकार की दरगाह पर पुलिस-प्रशासन के अफसरों ने पहुंच कर कथित विक्षिप्तों को जंजीरों से मुक्त तो करा दिया लेकिन, उन्हें मानसिक अस्पताल नहीं भिजवाया, जिससे कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
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उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता गौरव बंसल की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त करते हुए गुरुवार को कहा कि मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति जंजीर में बांधकर नहीं रखा जाना चाहिए, यह व्यक्ति के अधिकारों और सम्मान के विरुद्ध है, मानसिक रोगी भी इंसान है, उसकी भी अपनी गरिमा है।
न्यायालय ने कहा कि अगर, वो हिंसक भी हैं तो, उन्हें अलग और अकेले रखा जा सकता है लेकिन, जंजीर में बांधना समाधान नहीं है। न्यायालय ने प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए 7 जनवरी दिन सोमवार को अगली सुनवाई पर सरकार से जवाब-तलब किया था। याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य मेंटल हेल्थ केयर एक्ट पर अमल नहीं कर रहे हैं, जिस पर न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए घटनाओं पर जवाब देने और मेंटल हेल्थ केयर एक्ट पर अमल करने का निर्देश जारी किया है।
उच्चतम न्यायालय की नाराजगी के बाद सरकार के निर्देश पर जिला प्रशासन सक्रिय हो गया। एडीएम (प्रशासन) ने शाम को दरगाह के जिम्मेदार लोगों के साथ बैठक की, जिसके बाद पुलिस बल के साथ वे दरगाह पर पहुंचे और फिर जंजीरों में बंधे कथित विक्षिप्तों के ताले एवं जंजीर खुलवाये लेकिन, मुक्त कराने के बाद कथित विक्षिप्तों को मानसिक अस्पताल भिजवाने की व्यवस्था नहीं की गई। सवाल यह है कि उल्टी-सीधी हरकतें करने वाले कथित रोगी किसी के साथ कुछ कर दें तो, उसका दायित्व कौन लेगा?
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