बदायूं जिले में भारतीय जनता पार्टी ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के प्रत्याशी की अभी तक विधिवत घोषणा नहीं की है लेकिन, उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पूर्व एमएलसी जितेन्द्र यादव की पत्नी वर्षा यादव को हरी झंडी दे दी गई है। जितेन्द्र यादव लंबे अर्से से पार्टी की सेवा कर रहे हैं, जिससे माना जा रहा है कि उन्हें सेवा का फल मिल गया है लेकिन, राजनीति में भावनाओं से कुछ नहीं होता। राजनीति में राजनैतिक हित-लाभ के आधार पर ही निर्णय लिए जाते हैं। वर्षा यादव का चयन करने में भी भाजपा की गंभीर कूटनैतिक चाल दिखाई दे रही है।
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भाजपा में जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए टिकट के सीधे तौर पर दो दावेदार थे। पूर्व एमएलसी जितेन्द्र यादव की पत्नी वर्षा यादव और पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष हरीश शाक्य की पत्नी रेखा शाक्य। जितेन्द्र यादव लंबे समय से जूझ रहे हैं। पिछले विधान सभा चुनाव में सहसवान से भाजपा ने टिकट दिया था लेकिन, सामने चाची और डीपी यादव की पत्नी उमलेश यादव ने ताल ठोंक दी तो, जितेन्द्र यादव ने उनके सम्मान में टिकट वापस कर दिया था, इससे उनकी पार्टी में छवि खराब हुई पर, आम जनता के बीच सम्मान बढ़ गया था, इसलिए आम जनता की राय थी कि टिकट जितेन्द्र यादव की पत्नी को ही मिले।
हरीश शाक्य ने संगठन का प्रबंधन बेहतर तरीके से किया था, इसलिए कार्यकर्ताओं की भावना हरीश शाक्य की पत्नी रेखा शाक्य के साथ थी, इसी आधार पर राज्यमंत्री महेश चंद्र गुप्ता रेखा शाक्य की जमकर पैरवी कर रहे थे लेकिन, उन्हें पंचायत चुनाव का प्रभारी बना दिया गया, इससे कयास लगाये जाने लगे कि अब टिकट की दौड़ में रेखा शाक्य पिछड़ गई हैं, क्योंकि राजनैतिक निर्णय भावनाओं के आधार पर नहीं लिए जाते हैं, सो वर्षा यादव का चयन गहन मंथन के बाद किया गया है। हालाँकि घोषणा अभी तक नहीं की गई पर, उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि वर्षा यादव का ही नाम फाइनल है और जिले के प्रमुख लोगों को मोबाइल कॉल द्वारा अवगत करा दिया गया है पर, मोबाइल कॉल की भी पुष्टि कोई नहीं कर रहा है, जिससे अभी भी शंका और आशंका के बीच ही बात अटकी है, इसलिए मुख्यालय से सूची जारी होने की प्रतीक्षा करना पड़ेगी।
खैर, वर्षा यादव के नाम को प्रमुखता मिलने के पीछे सबसे बड़ा कारण सांसद डॉ. संघमित्रा मौर्य हैं। सांसद मौर्य हैं, इसलिए जिले का दूसरा बड़ा राजनैतिक पद मौर्य को न देने का आसान कारण बन गया, इसके अलावा जिला यादव बाहुल्य है और समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है, इसलिए यादव को एक बड़ा राजनैतिक पद देने का वर्षा यादव का मजबूत आधार बन गया। गत लोकसभा चुनाव में डॉ. संघमित्रा मौर्य को यादव मतदाता बड़ी संख्या में मिले थे, इसलिए डॉ. संघमित्रा मौर्य अपना बदला चुकाने को आतुर थीं और वे मजबूती के साथ वर्षा यादव की पैरवी कर रही थीं, इसी आधार पर कई विधायक और संगठन के कई लोग वर्षा यादव की पैरवी कर रहे थे। प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व को समाजवादी पार्टी के गढ़ में बड़ा पद यादव जाति को देने की बात तर्क पूर्ण लगी होगी। संभवतः इसी एक कारण से वर्षा यादव टिकट की बाजी मार गईं लगती हैं।
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