बदायूं जिले में भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष को लेकर कई तरह के कयास लगाये जा रहे थे, जिन पर अब पूरी तरह विराम लग गया है। राजनैतिक हालात बदल गये हैं। अब जिसके हाथ में झंडा रहेगा, उसक चेहरा धुंधला हो गया है। शीर्ष नेतृत्व ने कई नये नियम बनाये हैं, जिससे अधिकांश दावेदार जिलाध्यक्ष बनने की दौड़ से ही बाहर हो गये हैं।
जिले के अधिकांश कार्यकर्ता, पदाधिकारी और नेता युवा व जुझारू हरीश शाक्य को ही पुनः जिलाध्यक्ष घोषित करने के पक्ष में हैं। हरीश शाक्य का सबसे बड़ा गुण यही है कि वे विवादित नहीं हैं, गुटबंदी नहीं है, साथ ही उनके कार्यकाल में भाजपा ने निरंतर प्रगति की है लेकिन, संघमित्रा मौर्य के सांसद चुन जाने से उनका हटना तय माना जा रहा है। शीर्ष नेतृत्व अलग जाति के व्यक्ति को जिलाध्यक्ष बनाने का निर्णय कर चुका है।
शीर्ष नेतृत्व की मंशा के बारे में पार्टी के स्थानीय लोगों को पता चला तो, कार्यकर्ता कई नेताओं को दावेदार मानने लगे। कुछेक लोग इतने ज्यादा आश्वस्त नजर आ रहे थे कि स्वयं को जिलाध्यक्ष मानने भी लगे थे, इस बीच मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया और सदर विधायक महेश चंद्र गुप्ता को नगर विकास राज्यमंत्री का दायित्व मिल गया तो, वैश्य वर्ग के दावेदार जिलाध्यक्ष बनने की दौड़ से बाहर हो गये।
वीएल वर्मा प्रांतीय उपाध्यक्ष के साथ दर्जा राज्यमंत्री भी हैं, जिससे लोधी राजपूत भी दौड़ से बाहर बताये जाते हैं, इसके बाद जिलाध्यक्ष बनने की प्रतियोगिता ब्राह्मण, ठाकुर और कुर्मी वर्ग के नेताओं के बीच सिमट गई। पिछले दिनों प्रांतीय महामंत्री (संगठन) सुनील बंसल बरेली आये थे, उनकी बैठक में और भी कई बातें स्पष्ट हो गईं, जिसके बाद दावेदार माने जा रहे ब्राह्मण और ठाकुर नेता भी दौड़ से लगभग बाहर ही माने जाने रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि भाजपा ने बरेली महानगर और बरेली ग्रामीण के साथ चार विधान सभा क्षेत्रों को जोड़ कर आंवला जिला बनाया है, इसमें दातागंज विधान सभा क्षेत्र को भी शामिल किया गया है। स्पष्ट है कि दातागंज विधान सभा क्षेत्र के दावेदार बदायूं का जिलाध्यक्ष बनने की दौड़ से बाहर गये हैं, वे अब आंवला क्षेत्र में दावेदारी कर सकते हैं, इसी तरह एक नियम यह भी बनाया गया है कि 50 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति जिलाध्यक्ष नहीं बनाया जायेगा, इस नियम के कारण युवा नेता स्वतः दौड़ से निकल गये हैं। सूत्रों का कहना है कि 46 वर्षीय एक युवक ने जिलाध्यक्ष बनने की आस में अपनी उम्र 52 वर्ष की दर्शाई है, उसे लगता है कि शीर्ष नेतृत्व उसके लिखे को ही सत्य मान लेगा।
इसके अलावा एक नियम यह भी बनाया गया है कि जिस व्यक्ति का किसी भी विभाग में ठेकेदार के रूप में पंजीकरण होगा, उसे भी जिलाध्यक्ष नहीं बनाया जायेगा। एक बड़े नेता ने बताया कि यह नियम अक्षरशः लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि अधिकांश कार्यकर्ता ठेकेदार के रूप में पंजीकरण करा चुके हैं, ऐसे में कोई दावेदार ही नहीं बचेगा, इस नियम को दरकिनार कर दिया जाये तो, हाल-फिलहाल सर्वाधिक सशक्त दावेदारी कुर्मी वर्ग के नेताओं की बचती है। बाकी अंतिम निर्णय शीर्ष नेतृत्व को ही करना है, वह हरीश शाक्य का ही कार्यकाल बढ़ा सकता है अथवा, अन्य किसी जुझारू और कर्मठ कार्यकर्ता को दायित्व सौंप सकता है, फिलहाल जिन नामों को लेकर कयास लगाये जा रहे थे, वे चर्चायें पूरी तरह थम गई हैं, अब सबकी नजरें शीर्ष नेतृत्व पर ही टिकी हुई हैं।
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