बदायूं जिले में चापलूसों ने समाजवादी पार्टी बर्बाद कर दी। चापलूसों की कर्तव्यहीनता के चलते समाजवादी पार्टी हाशिये पर पहुंच गई है। जिले भर में भगवा लहरा रहा है। चापलूसों को किनारे करने की जगह शीर्ष नेतृत्व चापलूसों के दबाव में ही अब आत्मघाती कदम उठाने जा रहा है। शीर्ष नेतृत्व जिलाध्यक्ष बदलने की प्रक्रिया में जुट गया है। आशीष यादव की जगह चापलूस को ही जिलाध्यक्ष बनाने की तैयारी चल रही है।
समाजवादी पार्टी का गठन हुआ तो, समाजवादी पार्टी का इटावा और मैनपुरी से भी ज्यादा बड़ा गढ़ बदायूं माना जाने लगा। जिले के लोग आँख बंद कर हर चुनाव समाजवादी पार्टी को जिता देते थे। समाजवादी पार्टी का टिकट जीत की गारंटी माना जाता था। सांसद, विधायक, जिला पंचायत अध्यक्ष, सहकारिता की सभी संस्थाओं पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा है। चुनाव में अन्य दल अपना प्रत्याशी औपचारिकता पूरी करने भर को ही उतारते थे, ऐसा मजबूत किला समाजवादी पार्टी के हाथों से रेत की तरह खिसकता चला गया।
असलियत में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान चापलूस हावी हो गये थे, जिनके चलते जमीनी कार्यकर्ता पीछे छूट गये थे, जिसका दुष्परिणाम विधान सभा चुनाव में स्पष्ट दिख गया था। विधान सभा चुनाव में मात्र पूर्व राज्यमंत्री ओमकार सिंह यादव ही सहसवान क्षेत्र से चुनाव जीत पाये, अन्य सभी प्रत्याशी चुनाव हार गये, इसकी समीक्षा इसलिए नहीं की गई, क्योंकि सपा प्रदेश भर में ही पिछड़ गई थी, जबकि समीक्षा होना चाहिए थी। विधान सभा चुनाव की सही समीक्षा न होने के कारण चापलूस चिन्हित नहीं किये जा सके।
समाजवादी पार्टी में हावी चापलूसों ने विधान सभा चुनाव हारने का कारण जमीनी कार्यकर्ताओं पर थोप दिया, जिससे जमीनी कार्यकर्ताओं को पूरी तरह किनारे कर दिया गया। कर्मठ कार्यकर्ताओं के स्वाभिमान को चोट पहुँचाने का दुष्परिणाम लोकसभा चुनाव में सामने आ गया। जिस जिले में समाजवादी पार्टी के चिन्ह को जीत की गारंटी माना जाता था, उस जिले में मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेन्द्र यादव 15 दिन पहले चुनाव लड़ने आईं भाजपा की संघमित्रा मौर्य से हार गये।
लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित हार के बाद भी सपा नेताओं ने सबक नहीं लिया। चापलूसों ने हार का कारण एक बार फिर सपा के हितैषियों को ही बता दिया। चापलूसों ने एक राय होकर यह सिद्ध कर दिया कि पूर्व राज्यमंत्री ओमकार सिंह, पूर्व राज्यमंत्री विमल कृष्ण अग्रवाल, पूर्व विधायक रामखिलाड़ी सिंह यादव, पूर्व विधायक व जिलाध्यक्ष आशीष यादव और डीसीबी के पूर्व चेयरमैन ब्रजेश यादव को किनारे कर दिया जाये तो, समाजवादी पार्टी पुनः स्वर्णिम काल में पहुंच जायेगी।
हाल-फिलहाल जिला पंचायत अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित हो गया तो, चापलूसों ने मुहिम एक बार फिर तेज कर दी। शीर्ष नेतृत्व तक कर्मठ कार्यकर्ताओं की बात नहीं पहुंच पा रही है वरना, शीर्ष नेतृत्व को पता होता कि भाजपा से मिल कर जिला पंचायत में बड़ा खेल हो रहा था। चापलूसों की ही दलील शीर्ष नेतृत्व को संभवतः सही लग रही है।
सूत्रों का कहना है कि एक पूर्व विधायक ने जिलाध्यक्ष बनने के लिए आवेदन कर दिया है, उसी के साथी ने महासचिव के दायित्व पर दावेदारी ठोंक दी है। इतना सब होने के बावजूद भी आशीष यादव विचलित नहीं हैं, वे आम कार्यकर्ता की भांति काम करने को तैयार हैं, वे यही कहते हैं कि वे और उनका परिवार जो कुछ भी है, वह सपा के कारण है, सपा जिस तरह से उनका प्रयोग करे, उन्हें कभी कोई आपत्ति नहीं होगी।
यह भी बता दें कि चापलूसों के कारण ही सदर क्षेत्र के निवर्तमान विधायक व पूर्व दर्जा राज्यमंत्री आबिद रजा भी समाजवादी पार्टी में किनारे किये गये, उनके जाते ही सदर क्षेत्र में सपा हाशिये पर चली गई। आबिद रजा अब कांग्रेस में हैं, जिससे वे अब समाजवादी पार्टी की अंदरूनी गतिविधियों पर चर्चा नहीं करते।
खैर, समाजवादी पार्टी को अपने स्वर्णिम काल में लौटना है तो, सबसे पहले अपने जमीनी कार्यकर्ताओं को ही वापस लाना होगा, उन्हें यथा-योग्य सम्मान देना होगा। चापलूसों को पूरी तरह किनारे करना होगा वरना, यादवों और मुस्लिमों को किनारे करने के बाद समाजवादी पार्टी की जिले में खड़ा होने की भी अवस्था नहीं बचेगी।
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