बदायूं विधान सभा क्षेत्र के पूर्व विधायक एवं पूर्व मंत्री आबिद रजा राजनीति में हाशिये पर जाने के बाद एक बार पुनः राजनीति के शिखर की ओर बढ़ने लगे हैं। एक समय विरोधी ही नहीं बल्कि, समर्थक भी मानने लगे थे कि आबिद रजा का राजनैतिक कैरियर अब समाप्त हो गया है पर, उन्होंने आलोचनाओं को गंभीरता से लिया, आत्ममंथन किया और उनके अंदर जो कमियां थीं, उन्हें दूर करने का प्रयास किया। कमियां दूर होते ही आम जनता उन्हें पुनः प्रेम करने लगी। हारे हुये, हताश और निराश लोगों को आबिद रजा से सबक भी लेना चाहिये।
आबिद रजा ने जिला पंचायत सदस्य से राजनैतिक यात्रा शुरू की थी, इसके बाद वे पालिकाध्यक्ष बने और इतने अच्छे पालिकाध्यक्ष साबित हुये कि आम जनता ने आबिद रजा को पहले ही प्रयास में विधायक चुन लिया। आजम खान का निकटस्थ होने के कारण अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में आबिद रजा की तू-ती बोलती थी। कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी की सरकार में जब वे मंत्री थे तो, उस ग्लैमर को वे आत्मसात नहीं कर पाये, उस दौरान उनका अहंकार चरम सीमा पर पहुंच गया था। अहंकार उनके व्यक्तित्व में स्पष्ट झलकने लगा था, जिससे लोग उनसे किनारा करने लगे थे। चाणक्य नीति में कहा गया है कि नास्त्यहंकार समः शत्रु अर्थात, अहंकार के समान कोई अन्य शत्रु नहीं है। अहंकारी व्यक्ति किसी और का नहीं बल्कि, स्वयं का ही नुकसान करता है, सो उनके सर्वाधिक प्रिय लोगों ने भी उन्हें छोड़ दिया। अहंकार के ही कारण धर्मेन्द्र यादव से विवाद हुआ, जिसके बाद कई उतार-चढ़ाव आये। विवाद के चलते वे एक चुनाव हार गये और पिछले चुनाव में उन्हें टिकट ही नहीं मिला, इतना सब होने के बाद समर्थक भी कहने लगे थे कि आबिद रजा का राजनैतिक कैरियर अब समाप्त हो गया है।
राजनैतिक दृष्टि से हाशिये पर जाने के बाद लोगों ने उन्हें उनकी कमियों के बारे में अवगत कराया। आबिद रजा ने लोगों की बताई बातों को न सिर्फ गंभीरता से लिया बल्कि, कमियों को दूर करने का भी प्रयास किया। मुस्लिम नेता वाली छवि को साफ करने के लिये उन्होंने हिंदुओं से संपर्क बढ़ाया। लोगों के बीच जाना शुरू किया, उनसे संवाद किया तो, लोगों को भी लगा कि जैसा सुना था, वैसे नहीं हैं आबिद रजा। बदलाव और मेहनत का फल आबिद रजा को निकाय चुनाव में आम जनता ने दे दिया। निर्दलीय प्रत्याशी होते हुये उनकी पत्नी फात्मा रजा को पालिकाध्यक्ष के पद पर बड़े अंतर से आम जनता ने जिता दिया, इस सबके बीच उनके संबंध धर्मेन्द्र यादव से भी सामान्य हो गये। विधान सभा चुनाव के दौरान आबिद रजा ने स्वतंत्र रहते हुये बसपा प्रत्याशियों की मदद कर के सपा प्रत्याशियों का बड़ा नुकसान किया था, जिससे उन्होंने अपनी शक्ति और समझ का भी अहसास करा दिया। समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को भी अहसास हो गया कि बदायूं में आबिद रजा का विकल्प नहीं है।
आबिद रजा की शक्ति और समझ का अब समाजवादी पार्टी सदुपयोग करना चाहती है तभी, उन्हें राष्ट्रीय सचिव जैसा दायित्व दिया गया है। आबिद रजा के राष्ट्रीय सचिव नियुक्त होने की खबर जैसे ही आई, वैसे ही न सिर्फ शहर में बल्कि, दूर-दूर तक उनके समर्थक झूम उठे। कुछ ही मिनट बाद उनकी कोठी पर भीड़ जुटने लगी और एक-दूसरे को मिठाई खिला कर खुशियाँ मनाने लगी। मिलने और मिठाई बांटने का क्रम देर रात जारी रहा, इस दौरान महेश सक्सेना, मोह्तशाम सिद्दीकी, मोहमद मियां, फरहत अली, स्वाले चौधरी, कौशल कुमार एडवोकेट, अनवर खान, चेयरमैन पति अलापुर फहीम उद्दीन, हस्सान सिद्दीकी, परवेज उर्फ छोटू, डॉ. आशू, बब्लू रिजवान, अबरार, मनोज चंदेल, कौसर अली खान, फहीम खान, अनवर अंसारी, हारून खान, अली अल्वी, फैसल खान और प्रिंस मेंदीरत्ता सहित तमाम लोग उपस्थित रहे।
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