सैद्धांतिक राजनीति के एक मात्र वाहक कुन्नू बाबू नहीं रहे

सैद्धांतिक राजनीति के एक मात्र वाहक कुन्नू बाबू नहीं रहे
योगेन्द्र कुमार "कून्नू बाबू"
योगेन्द्र कुमार “कून्नू बाबू”

बदायूं जिले की राजनीति में एक मात्र बचे सैद्धांतिक वाहक कुन्नू बाबू नाम से विख्यात योगेन्द्र कुमार गर्ग नाम का सूरज हमेशा के लिए अस्त हो गया। बिसौली विधान सभा क्षेत्र की राजनिति के वे ध्रुव थे। उनके पारदर्शी राजनैतिक जीवन और स्पष्टवादिता का विपक्षियों के पास भी कोई तोड़ नहीं था। उनके निधन की सूचना पर हर आँख न सिर्फ नम है, बल्कि लोग स्तब्ध भी नजर आ रहे हैं। जिसने भी आज हृदय विदारक खबर सुनी, वह अवाक रह गया।

कुन्नू बाबू को राजनीति विरासत में मिली थी। बिसौली विधान सभा क्षेत्र से विधायक रहने वाले व जिले के दबंग नेता ब्रजबल्लभ अग्रवाल की मृत्यु के बाद उनके बेटे योगेन्द्र कुमार “कून्नू बाबू” ने राजनीति में कदम रखा, लेकिन कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया, तो वे निदर्लीय प्रत्याशी के रूप में पहला चुनाव लड़े और कांग्रेस के उत्कृष्ट काल में कांग्रेस प्रत्याशी को रिकॉर्ड मतों से धराशाई कर दिया। इसके बाद वे कांग्रेस में आ गये, तो 1990 में जनता दल की प्रचंड लहर में भी वे विजयी रहे। वर्ष-  1996 मे पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष स्वर्गीय राजेश्वर सिह यादव के प्रयास से वे सपा में शामिल हुए। इसके बाद वे 1996 और 2002 के चुनाव में सपा के टिकिट पर विधायक चुने गये। वर्ष- 2007 में डीपी यादव की पत्नी व रापद प्रत्याशी उमलेश यादव से हार गये, लेकिन उन्होंने उमलेश यादव पर अनैतिक तरीकों से चुनाव प्रभावित करने का आरोप लगाया और उमलेश यादव की सदस्यता समाप्त करा कर देश भर में एक नई मिसाल कायम की, जो सदियों तक उदाहरण बनी रहेगी।

कुन्नू बाबू के राजनैतिक जीवन की बड़ी ही यादगार और प्रेरणा दायक यादें हैं, जो अब कहानी बन चुकी हैं। वे कहानियों में भी हमेशा याद किये जाते रहेंगे और सैद्धांतिक राजनीति करने की प्रेरणा देते रहेंगे, लेकिन उनकी खाली जगह शायद ही कोई भर पायेगा।

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