बदायूं जिले में भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष पद के लिए हरीश शाक्य का नाम पहले से ही निश्चित था। अन्य नेताओं की तुलना में संगठन को मजबूत करने में हरीश का योगदान भी अधिक है, साथ ही जातिगत आधार पर भी हरीश के जिलाध्यक्ष बनने से पार्टी को अधिक लाभ होने वाला था, सो हरीश के मुकाबले कोई आने को तैयार भी नहीं था।
इसके बावजूद सपा छोड़ कर भाजपा में आये दयासिंधु शंखधार ने जिलाध्यक्ष पद के लिए दावेदारी ठोंक दी, साथ ही हरीश को कमजोर करने की दृष्टि से अन्य कई दावेदार तैयार कर दिए, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने मेहनत करने वाले हरीश शाक्य को ही दायित्व दिया, जिससे विवाद उत्पन्न करने वाले नेताओं की बड़ी फजीहत हो रही है।
सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय महामंत्री रामलाल से अनुमति लेकर दयासिंधु शंखधार ने ताल ठोंकी थी, लेकिन रामलाल भी दागी दयासिंधु को जिलाध्यक्ष नहीं बनवा पाए। यहाँ बता दें कि बदायूं स्थित इस्लामियां इंटर कॉलेज के मैदान में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव के दौरान जनसभा को संबोधित कर रहे थे, उसी वक्त मंच से उतर कर दयासिंधु ने भाजपा की सदस्यता पुनः ग्रहण कर ली थी।
सूत्रों का कहना है कि दयासिंधु ने यह निर्णय रामलाल से फोन पर बात होने के चलते ही लिया था, उस अहसान के बदले दयासिंधु भाजपा जिलाध्यक्ष बनना चाहते थे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने दागी होने के चलते उनके नाम पर मोहर नहीं लगाई।