भीषण गर्मी और गंदगी की भरमार हो जाने के कारण इस मौसम में बीमारी भी चरम पर होती है। बच्चे बीमारी का बड़ी संख्या में शिकार होते हैं। बच्चों को लेकर हर वर्ग और हर परिवार बेहद चिंतित रहता है, जिससे बच्चों के बीमार होने के बाद रुपयों पर कोई ध्यान नहीं देता। अभिवावकों की चिंता को कुछेक डॉक्टर बड़ी चालाकी से भुनाते हुए अपनी जेबें भरने में जुटे रहते हैं। लापरवाही और रिश्वतखोरी को लेकर सरकारी अस्पताल सबके निशाने पर रहते हैं, लेकिन निजी चिकित्सक सरकारी अस्पताल की तुलना में आधी सेवा भी नहीं दे रहे हैं, पर उन पर अंकुश लगाने की कोई बात ही नहीं कर रहा।
बदायूं में असरार पेट्रोल पंप तिराहे के पास एक छोटी सी दुकान है, जिसमें चार बेंच पड़ी हैं। बेंचों से पूरी दुकान की जगह भर जाती है, इसके बावजूद दुकान में डॉक्टर का केबिन है, शौचालय है और मेडिकल स्टोर भी है, इस दुकान में इतनी सी व्यवस्था है कि डॉक्टर किसी सामान्य मरीज को देख ले और उसे सलाह दे दे, लेकिन यहाँ ऐसे-ऐसे गंभीर बच्चों को भर्ती किया जा रहा है, जिन्हें आईसीयू में होना चाहिए। बताते हैं कि डॉ. विवेक जौहरी प्रतिदिन लगभग तीन सौ बीमार बच्चों को देखते हैं। प्रत्येक बीमार बच्चे के साथ एक-दो तीमारदार भी रहते हैं, जिनकी संख्या जोड़ ली जाये, तो लगभग पांच सौ लोग रहते हैं। डॉक्टर नंबर से देखते हैं और जब तक नंबर नहीं आता, तब तक शेष लोग इंतजार करते हैं, लेकिन दुकान में बैठने की उनके लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, जिससे बीमार बच्चों को लिए तीमारदार पूरे मोहल्ले में दुकानों के सामने सीढ़ियों पर बैठे नजर आते हैं। दो-तीन घंटे के इंतजार के बाद बच्चों के साथ तीमारदार भी बीमार से हो जाते हैं। हालात इतने भयावह हैं कि दुकान में पीने के पानी तक की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हैं, कोई वार्ड नहीं है, इसके बावजूद डॉ. विवेक जौहरी गंभीर रोगियों को भर्ती कर लेते हैं। भर्ती मरीज को उसके अभिवावक गोद में लेकर बेंच पर बैठे रहते हैं, लेकिन उनसे भी मोटी फीस वसूली जाती है।
15 फुट लंबी-चौड़ी दुकान में बैठने वाले डॉ. विवेक जौहरी की फीस दिल्ली के किसी बड़े अस्पताल जैसी है। छोटी सी दुकान में बैठने के बावजूद ओपीडी चार्ज सौ रूपये और इमरजेंसी चार्ज पांच सौ रूपये वसूला जाता है, जबकि दुकान में इमरजेंसी चार्ज नहीं लिया जा सकता, लेकिन संसाधन विहीन डॉक्टर इमरजेंसी चार्ज रुटीन के अलावा देखने पर वसूलते हैं। हाल ही में अपने बच्चों का उपचार करा चुके कई लोगों ने बताया कि विवेक जौहरी प्रति बच्चा सात सौ रूपये से अधिक की दवा लिखते हैं, जो सिर्फ उनके अपने मेडिकल स्टोर पर ही मिलती है। मेडिकल स्टोर इतना बड़ा है कि फ्रिज की पेटी में आ जायेगा, लेकिन बीमार बच्चों के अभिवावकों को ठगने को काफी है।
चौंकाने वाली बात यह है कि डॉ. विवेक जौहरी कई तरह से रूपये वसूलते हैं, लेकिन रूपये लेने की किसी भी तरह की रसीद किसी को नहीं देते। न ओपीडी की रसीद देते हैं, न इमरजेंसी की और न ही मेडिकल स्टोर का बिल दिया जाता है, भर्ती मरीजों को भी बिल नहीं दिया जाता। जिस पर्चे पर दवा लिख कर दी जाती है, उस पर क्लीनिक का रजिस्ट्रेशन नंबर तक नहीं है, इससे स्पष्ट है कि लगभग तीन सौ मरीज प्रतिदिन देखने वाले विवेक जौहरी आय कर विभाग को भी सही जानकारी नहीं देते होंगे।
बदायूं में हाल ही में करोड़ों रूपये की लागात से सरकारी एयरकंडीशन भवन बना है, यहाँ बाल रोग विशेषज्ञ के रूप डॉ. राजीव कुमार रोहतगी इतने लोकप्रिय हैं कि उनके पास छोटे बच्चे आसपास के जनपदों से भी आते हैं, लेकिन कुछ लोगों की मानसिकता बन गई है कि सरकारी अस्पताल में अच्छा उपचार नहीं होता। कुछेक लोग सरकारी अस्पताल जाने में अपना अपमान महसूस करते हैं, ऐसे लोग ही निजी चिकित्सकों के जाल में फंसते हैं और फिर वहां जमकर लूटे जाते हैं। सीएमओ और प्रशासनिक अफसरों को निजी चिकित्सकों के यहाँ छापामार अभियान चलाना चाहिए, वरना किसी दिन बड़ी घटना हो गई, तो जवाब नहीं दे पायेंगे।
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