अन्याय के विरुद्ध सीना तान कर खड़े होने वाले लोग अब अँगुलियों पर गिनने लायक ही बचे हैं, जो बचे हैं, उनमें से एक हैं एडवोकेट प्रिंस लेनिन। जी हाँ, यह वही एडवोकेट प्रिंस लेनिन हैं, जिन्होंने उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में जगेन्द्र कांड पर जनहित याचिका दायर की थी। जगेन्द्र प्रकरण में गवाह व वादी आरोपियों के समर्थन में बयान दे चुके हैं, लेकिन एडवोकेट प्रिंस लेनिन निरंतर जूझ रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि जिला शाहजहाँपुर में थाना खुटार क्षेत्र के गाँव कोट निवासी दिवंगत पत्रकार जगेन्द्र सिंह के नाबालिग पुत्र राघवेन्द्र सिंह की ओर से 9 जून को दी तहरीर में कहा गया था कि उसके पिता पिछले दस वर्षों से जिला मुख्यालय पर निर्भीकता से पत्रकारिता कर रहे थे। लेखन के चलते अनेक राजनेता व अपराधी उनसे रंजिश मानते थे। पिछले दिनों एक महिला ने प्रदेश के राज्यमंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा सहित कई लोगों पर यौन शोषण का आरोप लगाया, इस प्रकरण को उसके पिता ने गंभीरता से उठाया एवं घटना के साक्षी होने के चलते पीड़ित के साथ खड़े हुए और गवाह बने, इसीलिए राममूर्ति सिंह वर्मा रंजिश मानने लगे।
राममूर्ति सिंह वर्मा के कहने पर 1 जून को उनके गुर्गों ने पुलिस वालों के साथ आवास विकास कालौनी स्थित घर पर धावा बोल दिया और मंत्री के विरुद्ध खड़े होने को लेकर गालियाँ देते हुए पेट्रोल डाल कर उसके पिता में आग लगी दी। आग लगने से उसके पिता गंभीर रूप से जल गये, जिसके बाद दबाव में पुलिस ने उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टर ने हालत गंभीर होने के कारण लखनऊ के लिए रेफर कर दिया, जहां उनका 8 जून को निधन हो गया।
उक्त मुकदमा दर्ज होने के बाद सरकार नामजदों का बचाव करने लगी, जिसके विरोध में देश भर में आंदोलन होने लगा, वहीं उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में एडवोकेट प्रिंस लेनिन ने 11 जून को जनहित याचिका दायर कर दी, जिसमें उन्होंने आशंका व्यक्ति की कि जगेन्द्र सिंह की हत्या में उत्तर प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री राममूर्ति सिंह वर्मा मुख्य आरोपी हैं एवं कोतवाल व पुलिस कर्मी भी आरोपी हैं, ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन कार्य करने वाली जांच एजेसियों से निष्पक्ष जांच की आशा नहीं की जा सकती, इसलिए समूचे प्रकरण की जाँच सीबीआई से कराई जाये, साथ ही उन्होंने मृतक के आश्रितों को मुआवजा दिलाने की भी मांग की थी।
उक्त प्रकरण में सरकार आश्रितों को आर्थिक सहायता, दो नौकरियां देने का आश्वासन व शस्त्र लाइसेंस दे चुकी है। गवाह व वादी आरोपियों के समर्थन में समर्पण कर चुके हैं, इसके अलावा उच्चतम न्यायालय- दिल्ली में एक और जनहित याचिका दायर की गई, जिसके बारे में कहा जाता है कि लखनऊ पीठ में चल रही कार्रवाई को रुकवाने के उददेश्य से ही दायर की गई थी और हुआ भी वही, उच्चतम न्यायालय में दायर की गई याचिका का हवाला देते हुए लखनऊ पीठ ने निर्णय टाल दिया, लेकिन एडवोकेट प्रिंस लेनिन ने न्याय के लिए संघर्ष करने का साहसिक निर्णय ले लिया, वे पैरवी करने उच्चतम न्यायालय में भी पहुंच गये। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से एडवोकेट कपिल सिब्बल ने पैरवी की, इसके बावजूद उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से तीन सप्ताह के अंदर जवाब देने को कहा है कि जगेन्द्र प्रकरण की सुनवाई उच्चतम न्यायालय में क्यूं न की जाये, वहीं राजनैतिक दृष्टि से कांग्रेस के लिए असहज करने वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है। जगेन्द्र प्रकरण में कांग्रेस सीबीआई जाँच की मांग करती रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ कांग्रेस नेता एडवोकेट कपिल सिब्बल सीबीआई जाँच के विरोध में तर्क गढ़ रहे हैं।
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