उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आदर्श युवा नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं, लेकिन उनकी आदर्श सोच शासन और प्रशासन में नजर नहीं आ रही। उत्तर प्रदेश के हालातों से भी नहीं लगता कि यहाँ आदर्श युवा मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार चल रही है, इसके पीछे बताया जाता है कि सरकार में शक्ति के कई केंद्र हैं, जिनमें न सिर्फ संवादहीनता है, बल्कि स्वयं को बड़ा शक्तिशाली दर्शाने के उदेश्य से निर्णय लिए जा रहे हैं, जिससे मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव स्वयं की नीतियों को अक्षरशः लागू नहीं कर पा रहे हैं, इस तर्क पर अधिकाँश लोग विश्वास नहीं करते, क्योंकि “नेता जी” (मुलायम सिंह यादव) का विशाल परिवार राजनीति में आदर्श परिवार के रूप में पहचाना जाता है, ऐसे में अहम के टकराव का सवाल ही नहीं उठता, पर हाल ही में समाजवादी पार्टी से निलंबित किये गये कुछ युवाओं को लेकर टकराव स्पष्ट नजर आने लगा है, जो परिवार और पार्टी के लिए अच्छे संकेत नहीं कहे जा सकते।
बताया जा रहा है कि समाजवादी पार्टी के युवा नेता आनंद भदौरिया, सुनील यादव “साजन” और सुबोध यादव मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बेहद नजदीकी हैं, जिन्हें वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री और महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में पार्टी से निलंबित कर दिया, इस कार्रवाई से अधिकांश लोग स्तब्ध रह गये, क्योंकि निलंबित किये गये युवा पार्टी के नेता होने के साथ अखिलेश यादव के खास माने जाते हैं, जिससे कयास लगाये जाने लगे कि अखिलेश यादव से चर्चा किये बिना ही यह कार्रवाई की गई होगी। अगर, ऐसा ही हुआ है, तो यह गलत निर्णय कहा जायेगा, क्योंकि अखिलेश यादव मुख्यमंत्री के अलावा समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। उत्तर प्रदेश में किसी भी नेता के विरुद्ध किसी भी तरह की कार्रवाई प्रदेश अध्यक्ष से छुपा कर नहीं की जानी चाहिए, ऐसा करना बेहद आवश्यक भी था, तो कार्रवाई की सूचना सार्वजनिक करने से पहले अखिलेश यादव को बताना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, तभी अखिलेश यादव नाराज बताये जा रहे हैं।
कहा जा रहा है कि नाराजगी के चलते ही अखिलेश यादव सैफई महोत्सव में नहीं जा रहे हैं, वे उदघाटन के अवसर पर नहीं पहुंचे और न ही पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के बावजूद वे आईजीसीएल का उदघाटन करने पहुंचे, जिससे आईजीसीएल का उद्घाटन सांसद धर्मेन्द्र यादव ने किया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सरकारी कार्यक्रम के अंतर्गत 29 दिसंबर को आगरा पहुंचे, तो यह कयास लगाये जाने लगे कि मुख्यमंत्री आगरा से सैफई चले जायेंगे, पर वे आगरा से लखनऊ लौट गये, जिससे अफवाह सच में बदल गई कि मुख्यमंत्री वास्तव में आहत हैं। यह भी बताया जा रहा है कि सांसद धर्मेन्द्र यादव और सांसद तेज प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मनाने के भी प्रयास किये, पर वे अपने चहेतों के अपमान से समझौता करने को तैयार नहीं बताये जा रहे हैं।
खैर, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज नाराज हैं, तो कल खुश हो ही जायेंगे, लेकिन सवाल यह है कि जब वे प्रदेश के मुख्यमंत्री और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, तो इस सच्चाई को परिवार स्वीकार क्यूं नहीं कर पा रहा। जो भी नीतियाँ और निर्णय हैं, उन पर अखिलेश यादव से चर्चा क्यूं नहीं की जा रही। परिवार के बड़े सदस्यों के लिए ज्यादा सम्मान की बात तो यह है कि सरकार और पार्टी से संबंधित निर्णय के संबंध में अखिलेश यादव को आदेश दें और उस आदेश को अखिलेश यादव लागू करें, ऐसा करने से अखिलेश यादव के साथ बाकी सबका भी सम्मान बढ़ेगा, वरना बर्चस्व की जंग में साईकिल के पुर्जे विखर जायेंगे। साईकिल को अभी बहुत लंबी यात्रा तय करनी है, इसलिए सर्वप्रथम परिवार का एकजुट रहना बेहद आवश्यक है। परिवार एकजुट तभी रह सकेगा, जब सभी अखिलेश यादव को सम्मान देंगे। अखिलेश यादव वर्तमान में मुख्यमंत्री और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, इस सच को आंख बंद कर सभी को स्वीकार करना चाहिए, साथ ही उनके अधिकार क्षेत्र में दखल देने से भी बचना चाहिए, क्योंकि दखल करने से स्वार्थी होने के संकेत जाते हैं, जिसके परिणाम विपरीत ही आयेंगे।