हिंदुस्तान की असंख्य लड़कियां ऐसी हैं, जो किसी तरह पाकिस्तानियों के चंगुल में फंस जाती हैं। शातिर पाकिस्तानियों के जाल में फंसने के बाद लड़कियां हिंदुस्तान की नागरिकता छोड़ कर उनसे निकाह कर लेती हैं, उसके बाद पाकिस्तानी असहाय हो चुकी लड़कियों का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण करना शुरू कर देते हैं। अधिकाँश लड़कियाँ नरकीय जीवन किसी तरह गुजारती रहती हैं, तो कुछ भाग्यशाली लड़कियाँ ऐसी भी होती हैं, जो किसी तरह उस नरकीय जीवन से निकल कर हिंदुस्तान लौट आती हैं, लेकिन हिंदुस्तान लौटने के बाद भी उनकी जिंदगी सहज नहीं हो पाती। उन्हें नागरिकता वापस पाने के लिए कठिन लड़ाई लड़नी पड़ती है, ऐसी ही एक महिला है रेशमा खान, जो घर-परिवार सजाने-संवारने की जगह अफसरों और कार्यालयों में भटकती नजर आती है।
बदायूं जिले में स्थित कस्बा सहसवान के मोहल्ला शहवाजपुर की रहने वाली है रेशमा खान। परिचितों और रिश्तेदारों के बहकावे में आकर वो वर्ष- 1995 में पाकिस्तान चली गई। उसे दिखाये बिना न्यू करांची निवासी एक पान-सुपारी के व्यापारी से उसका वर्ष- 1996 में निकाह कर दिया गया। निकाह के समय रेशमा की उम्र 16 वर्ष थी, जबकि शौहर 47 वर्ष का था, इसके अलावा रेशमा को निकाह के बाद पता चला कि उसका शौहर शादीशुदा है और उसके पत्नी के अलावा दो जवान बेटे व एक जवान बेटी है। यह सब जानने के बाद रेशमा को लगने लगा कि उसके साथ धोखा हुआ है और वह वहां से निकलने की युक्ति खोजने लगी।
रेशमा ने बताया कि वर्ष- 1999 में उसका तलाक हो गया, इस बीच उसके एक बच्ची भी पैदा हुई, जो शौहर के ही पास है, उस वक्त बच्ची की उम्र ढाई माह थी। कहते हैं कि बच्चे माँ के जिगर के टुकड़े होते हैं, लेकिन रेशमा अपने देश में आने को बेचैन थी, उसका एक-एक दिन वहां सजा की तरह गुजर रहा था, इसलिए बच्ची के लिए वो नहीं लड़ी और वर्ष- 2000 में वह अपने वतन हिंदुस्तान लौट आई।
हिंदुस्तान लौटने के बाद रेशमा ने वर्ष- 2003 में टैक्सी चालक मोहम्मद अली से निकाह कर लिया, उसके दो बेटे और दो बेटियां हैं, जिनके साथ वह खुश है और चैन से रहना चाहती है, लेकिन उसे हिंदुस्तान की स्थाई नागरिकता नहीं मिल पा रही है। वर्तमान में वह परिवार के साथ दिल्ली के करदमपुरी इलाके में रहती है। उसके हिंदुस्तान में रहने की तारीख एक-एक वर्ष बढ़ती रहती है, जिससे उसका जीवन सहज नहीं हो पा रहा है। उसे अंतिम तिथि से पूर्व तमाम अफसरों और कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। रेशमा का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण जाने-अनजाने आज भी हो रहा है, जबकि वो इसी मिट्टी का कण है, लेकिन तकनीकी समस्याओं के चलते रेशमा अपनी मिट्टी में घुल-मिल नहीं पा रही है। केंद्र सरकार को ऐसे प्रकरणों में त्वरित निस्तारण की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि पीड़ित महिलायें आगे की जिंदगी आम नागरिक की तरह सहजता के साथ गुजार सकें।