आम जनता की दृष्टि में कवि सम्मेलन की अपनी एक अलग तरह की गरिमा है, इसीलिए जब और जहाँ कवि सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं, उस ओर जनता के कदम स्वतः खिंचे चले जाते हैं। कवि सम्मेलनों की उस गरिमा को कुमार विश्वास ने बड़ा आघात पहुंचाया है, इसीलिए सीधे-सच्चे साहित्यकार कुमार विश्वास को साहित्यकार ही नहीं मानते। स्तरहीन व्यंग्य, तथ्यहीन कटाक्ष और भड़ास निकालने के लिए कुमार विश्वास कुख्यात हो चले हैं। हांलाकि वे स्वयं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का गीतकार दर्शाते रहे हैं। कवि सम्मेलनों में स्वयं को हरिवंश राय बच्चन की परंपरा का बताते हुए अमिताभ बच्चन पर अपमानजनक टिप्पणी करते रहे हैं, लेकिन समय ने आज कुमार विश्वास को अमिताभ बच्चन नहीं, बल्कि हनी सिंह की परंपरा से जोड़ दिया है। कुमार विश्वास अतीत की अपनी टिप्पणियों को भूल जाते हैं शायद, तभी वह सब भी करने लगते हैं, जिसकी मंच पर खुली आलोचना कर के तालियाँ बटोरते रहे हैं।
बदायूं शहर में कुमार विश्वास का कार्यक्रम चल रहा है। बौद्धिक दृष्टि से कार्यक्रम शब्द ही अपने में सब कुछ स्पष्ट बयान कर रहा है, फिर भी बता दें कि कुमार विश्वास ऑर्केस्ट्रा पार्टी के साथ नजर आ रहे हैं। वाद्य यंत्रों की धुन पर गाते हुए हनी सिंह जैसी ही अनुभूति करा रहे हैं, उनके ही शब्दों में कहा जाये, तो अमिताभ बच्चन से भी बहुत नीचे जा चुके हैं। कवि सम्मेलन के मंच पर कवियों के बीच भड़ास निकालने के बावजूद काव्य की अपनी गरिमा बनी हुई थी, लेकिन कुमार विश्वास के इस स्तर पर पहुंचने से साहित्य की दुर्गति सी होती नजर आ रही है। हांलाकि युवाओं को जैसे हनी सिंह के असामाजिक गाने लुभा रहे हैं, वैसे ही आज के युवा कुमार विश्वास को भी सुनते रहे हैं, लेकिन साहित्य जगत में इस तरह की हरकतों को कोई स्थान नहीं है और न ही कोई साहित्यकार सहन कर सकेगा, वैसे साहित्य, या काव्य की समझ रखने वाले श्रोता कुमार विश्वास को सुनते भी नहीं हैं।
खैर, परंपरागत तरीके से आयोजित होने वाले कवि सम्मेलनों में परिवर्तन होना चाहिए। समय के साथ कवि सम्मेलनों में भी कुछ नया जुड़ना चाहिए, लेकिन परिवर्तन साहित्य की सीमाओं के अंदर ही रहना चाहिए। माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना और प्रार्थना से शुभारंभ होने वाले काव्य सम्मेलन को नौटंकी नहीं बनाया जा सकता। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाये, तो अर्थ और अहंकार के वशीभूत कुमार विश्वास ने काव्य और गरिमामयी मंच को नौटंकी से भी नीचे पहुंचा दिया है, क्योंकि उनके साथ लड़कियाँ भी नजर आ रही हैं। आवश्यकता न होने के बाद भी वस्तु की ओर उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के उददेश्य से विज्ञापन में अर्धनग्न लड़कियाँ दिखती हैं, ठीक वैसे ही कुमार विश्वास के मंच पर लड़कियाँ नजर आ रही हैं, जो गुणवत्ता विहीन होने का स्वयं में ही बड़ा प्रतीक कही जा सकती हैं।
कोई एक अवगुण व्यक्ति को हीन बना देता है, तो एक ही गुण व्यक्ति को महान बना देता है। कोई एक अच्छाई व्यक्ति को उच्चतम शिखर पर ले जाकर स्थापित कर देती है और कोई एक बुराई व्यक्ति को रसातल में पहुंचा देती है, लेकिन अतिमहत्वकांक्षी कुमार विश्वास को महान बनने की इतनी शीघ्रता है कि वे सही से कुछ नहीं बन पा रहे हैं। एक शिक्षक अपने कर्तव्य का निर्वहन ईमानदारी से करता रहे, तो वह विश्व विख्यात हो सकता है, लेकिन कुमार विश्वास शिक्षक की भूमिका में असफल साबित हो चुके हैं। राजनीति भी व्यक्ति को उच्चतम शिखर पर स्थापित कर सकती है, लेकिन कुमार विश्वास की बातों और हरकतों ने राजनीति को भी और गर्त में ले जाने का काम किया है, वे राजनेता के तौर पर भी अब तक असफल साबित हुए हैं। कुछेक लोगों को अभी तक यह आशा थी कि कुमार विश्वास साहित्य में ही कुछ अच्छा करेंगे, लेकिन हनी सिंह की राह पर जाकर कुमार विश्वास ने स्वयं ही स्पष्ट कर दिया कि वे कवि भी नहीं हैं। अब तक की हर भूमिका में वे न सिर्फ नाकाम, बल्कि अराजक तत्व से साबित हुए हैं।
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