महाराष्ट्र के औरंगाबाद में आयोजित किये गये ऑल इंडिया वैदिक सम्मेलन में पूर्व आईपीएस अफसर एवं केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने कहा कि मानव के क्रमिक विकास का चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से गलत है, उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने कभी किसी कपि के इंसान बनने का उल्लेख नहीं किया है, उन्होंने स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में बदलाव करने की भी बात की। सत्यपाल सिंह का बयान आने के बाद एक अलग ही तरह की बहस शुरू हो गई है। अतिवादी नई पीढ़ी को बहकाने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि यह विषय हास्य, व्यंग्य और निंदा करने का नहीं, बल्कि गंभीरता के साथ चर्चा करने का है।
सत्यपाल सिंह के बयान को समझने से पहले चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत के संबंध में समझना होगा। डार्विन ने क्रमविकास के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। डार्विन की सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक जीवजाति का उद्भव के अनुसार प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा अपना विकास करती है, हम सभी के पूर्वज एक हैं, हर प्रजाति, चाहे वह पेड़ की हो, या फिर जानवर, या मानव की, सभी एक-दूसरे से संबंधित हैं। डार्विन के अनुसार विशेष प्रकार की कई प्रजातियों के पौधे पहले एक ही जैसे थे, लेकिन दुनिया की अलग-अलग भौगोलिक स्थितियों में जीवित बचे रहने के संघर्ष के चलते उनकी रचना में बदलाव होता गया, इस कारण एक ही जाति के पौधे की कई प्रजातियां बन गईं, इसी तरह मानव के पूर्वज भी पहले बंदर हुआ करते थे, लेकिन कुछ बंदर अलग जगह अलग तरह से रहने लगे, इस कारण धीरे-धीरे जरूरतों के अनुसार उनमें बदलाव आना शुरू हो गए, उनमें आए बदलाव उनकी आगे की पीढ़ी में दिखने लगे, जो बदलते वक्त के साथ और बदली, इस तरह क्रमिक विकास होते-होते बंदर की प्रजाति मानव जाति बन गई, अर्थात रीढ़ की हड्डी वाले स्तनधारी जीव जैसे, ओरैंगुटैन का एक बेटा पेड़ पर, तो दूसरा जमीन पर रहने लगा। जमीन पर रहने वाले बेटे ने खुद को जिंदा रखने के लिए नई कलायें सीखीं, उसने खड़ा होना, दो पैरों पर चलना, दो हाथों का उपयोग करना सीखा, उसने पेट भरने के लिए शिकार करना और खेती करना शुरू किया, इस तरह वह ओरैंगुटैन से मानव बन गया। इंसान और ओरैंगुटैन का डीएनए 97 प्रतिशत तक आपस में मिलता है, इसका अर्थ यह नहीं है कि पांच प्रतिशत मानव डीएनए मिलने से ओरैंगुटैन इंसान बन जायेंगे, क्योंकि दोनों में करोड़ों साल के क्रमिक विकास के बाद वर्तमान में दिखने वाले बदलाव आए हैं।
अब सनातनी विद्वानों के मत की बात करते हैं। हर काल की लिखने की एक शैली होती है। सनातनी साहित्य जिस काल में लिखा गया है, उस काल में प्रतीकात्मक शैली में लिखने की परंपरा थी। जैसे पिछली पीढ़ी ने वर्णमाला जिस तरीके से सीखी थी, वैसे आज की पीढ़ी नहीं सीख रही है, अब पढ़ाने के तरीके बदल गये हैं, इसी तरह वाट्सएप पर गुड नाइट को जीएन और गुड मोर्निंग को जीएम लिखा जा रहा है और भाव सहित सबको समझ भी आ रहा है, लेकिन एक पीढ़ी बाद कोई गुड नाइट और गुड मोर्निंग ही लिखेगा, तो आने वाली पीढ़ी उसे पुरातनी सोच वाला कह कर निरस्त कर देगी। सनातनी विद्वानों द्वारा लिखा गया प्रतीकात्मक साहित्य उस काल के आस-पास के लोगों की समझ में आता था एवं आज के जो विद्वान् उस काल में जाकर ही सोचने का सामर्थ्य रखते हैं, वे आज भी शब्दशः समझ सकते हैं।
डार्विन के सिद्धांत और सनातनी साहित्य के बारे में ओशो ने सबसे बेहतर तरीके से समझाया है। डार्विन ने जब कहा कि आदमी विकसित हुआ है जानवरों से, तो उसने एक वैज्ञानिक भाषा में यह बात लिखी, लेकिन हिंदुस्तान में हिंदुओं के अवतारों की अगर हम कहानी पढ़ें, तो हमें पता चलेगा कि वह अवतारों की कहानी डार्विन के बहुत पहले बिल्कुल ठीक प्रतीक कहानी है। पहला अवतार आदमी नहीं है, पहला अवतार मछली है और डार्विन का भी पहला जो रूप है मनुष्य का, वह मछली है। अब यह प्रतीकात्मक लैंग्वेज हुई कि हम कहते हैं, जो पहला अवतार पैदा हुआ, वह मछली था- मत्सावतार, लेकिन यह जो भाषा है, यह वैज्ञानिक नहीं है। अब कहां अवतार और कहां मत्स्य! हम मना करते रहे उसको, लेकिन जब डार्विन ने कहा कि मछली जो है जीवन का पहला तत्व है, पृथ्वी पर पहले मछली ही आई है, इसके बाद ही जीवन की दूसरी बातें आईं!, लेकिन उसका जो ढंग है, उसकी जो खोज है, वह वैज्ञानिक है। अब जिन्होंने विजन में देखा होगा, उन्होंने यह देखा कि पहला जो भगवान है, वह मछली में ही पैदा हुआ है। अब यह विजन जब भाषा बोलेगा, तो वह इस तरह की भाषा बोलेगा, जो पैरेबल की होगी।
फिर कछुआ है। अब कछुआ जो है, वह जमीन और पानी दोनों का प्राणी है। निश्चित ही, मछली के बाद एक दम से कोई प्राणी पृथ्वी पर नहीं आ सकता, जो भी प्राणी आया होगा, वह अर्ध जल और अर्ध थल का रहा होगा, तो दूसरा जो विकास हुआ होगा, वह कछुए जैसे प्राणी का ही हो सकता है, जो जमीन पर भी रहता हो और पानी में भी रहता हो और फिर धीरे-धीरे कछुओं के कुछ वंशज जमीन पर ही रहने लगे होंगे और कुछ पानी में ही रहने लगे होंगे, और तब विभाजन हुआ होगा।
अगर, हम हिंदुओं के चौबीस अवतारों की कहानी पढ़ें, तो हमें इतनी हैरानी होगी इस बात को जानकर कि जिसको डार्विन हजारों साल बाद पकड़ पाया, ठीक वही विकास क्रम हमने पकड़ लिया! फिर जब मनुष्य अवतार पैदा हुआ, उसके पहले आधा मनुष्य और आधा सिंह का नरसिंह अवतार है। आखिर जानवर भी एक दम से आदमी नहीं बन सकते, जानवरों को भी आदमी बनने में एक बीच की कड़ी पार करनी पड़ी होगी। निश्चित ही कोई आदमी आधा आदमी और आधा जानवर रहा होगा, यह असंभव है कि छलांग सीधी लग गई हो कि एक जानवर को एक बच्चा पैदा हुआ हो, जो आदमी का हो। जानवर से आदमी के बीच की एक कड़ी खो गई है, जो नरसिंह की ही होगी, जिसमें आधा जानवर होगा और आधा आदमी होगा। अगर, हम यह सारी बात समझें, तो हमें पता चलेगा कि जिसको डार्विन बहुत बाद में विज्ञान की भाषा में कह सका, चौथे शरीर को उपलब्ध लोगों ने उसे पुराण की भाषा में बहुत पहले कहा है, लेकिन आज भी, अभी भी पुराण की ठीक-ठीक व्याख्या नहीं हो पाती है, उसकी वजह यह है कि पुराण बिलकुल ना-समझ लोगों के हाथ में पड़ गया है, वह वैज्ञानिक के हाथ में नहीं है। ओशो आगे कहते हैं कि महाभारत ने इस देश के पास साइकिक माइंड से जो-जो उपलब्ध ज्ञान था, वह सब नष्ट कर दिया, सिर्फ कहानी रह गई। अब हमें शक आता है कि राम जो हैं, वे हवाई जहाज पर बैठकर लंका से आए हों, यह शक की बात है, क्योंकि एक साइकिल भी तो नहीं छूट गई उस जमाने की, हवाई जहाज तो बहुत दूर की बात है। और किसी ग्रंथ में कोई एक सूत्र भी तो नहीं छूट गया। असल में महाभारत के बाद उसके पहले का समस्त ज्ञान नष्ट हो गया, स्मृति के द्वारा जो याद रखा जा सका, वह रखा गया, इसलिए पुराने ग्रंथ का नाम स्मृति है, वह मेमोरी है, सुनी हुई बात है, वह देखी हुई बात नहीं है, इसलिए पुराने ग्रंथ को हम कहते हैं स्मृति। श्रुति, सुनी हुई और स्मरण रखी गई, वह देखी हुई बात नहीं है। किसी ने किसी को कही थी, किसी ने किसी को कही थी, किसी ने किसी को कही थी, वह हम बचाकर रख लिए हैं, ऐसा हुआ था, लेकिन अब हम कुछ भी नहीं कह सकते कि वह हुआ था, क्योंकि उस समाज का जो श्रेष्ठतम बुद्धिमान वर्ग था… और ध्यान रहे, दुनिया की जो बुद्धिमत्ता है, वह दस-पच्चीस लोगों के पास होती है। अगर, एक आइंस्टीन मर जाए, तो रिलेटिविटी की थ्योरी बताने वाला दूसरा आदमी खोजना मुश्किल हो जाता है। आइंस्टीन खुद कहता था अपनी जिंदगी में कि दस-बारह आदमी ही हैं केवल, जो मेरी बात समझ सकते हैं पूरी पृथ्वी पर। अगर, ये बारह आदमी मर जाएं, तो हमारे पास किताब तो होगी, जिसमें लिखा है कि रिलेटिविटी की एक थ्योरी होती है, लेकिन एक आदमी समझने वाला, एक समझाने वाला नहीं होगा। महाभारत ने श्रेष्ठतम व्यक्तियों को नष्ट कर दिया, उसके बाद जो बातें रह गईं, वे कहानी की रह गईं, लेकिन अब प्रमाण खोजे जा रहे हैं।
ऑल इंडिया वैदिक सम्मेलन में पूर्व आईपीएस अफसर एवं केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह द्वारा दिया गया बयान हास्य-परिहास और निंदा का नहीं, बल्कि गंभीर चर्चा का विषय होना चाहिए। सत्यपाल सिंह द्वारा कही गई बात न माननी चाहिए और न ही नकारनी चाहिए, इस विषय पर वैज्ञानिक तरीके से शोध होना चाहिए, क्योंकि डार्विन की जगह दुनिया में जब यह संदेश जायेगा कि क्रमविकास का सिद्धांत भी भारत का ही है, तो भारत का गौरव बढ़ेगा, इसलिए बहस भारत का गौरव बढ़ाने की दिशा में होना चाहिए।
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