अखिलेश और धर्मेन्द्र के सहारे पुनः जीतना चाहते हैं विधायक

अखिलेश और धर्मेन्द्र के सहारे पुनः जीतना चाहते हैं विधायक
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ खड़े सांसद धर्मेन्द्र यादव का पुराना फोटो।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ खड़े सांसद धर्मेन्द्र यादव का पुराना फोटो।

उत्तर प्रदेश विधान सभा का कार्यकाल पूरा होने में अभी पूरा एक वर्ष शेष है, लेकिन प्रदेश में चुनावी माहौल बनने लगा है। बात बदायूं जिले की करें, तो यहाँ भी चुनावी गतिविधियाँ नजर आने लगी हैं। चुनाव लड़ने के इच्छुक व्यक्ति संबंधित दलों में पैठ बनाने में जुटे हुए नजर आ रहे हैं। हाल-फिलहाल बसपा के ही प्रत्याशी घोषित हुए हैं, जो एकतरफा भारी नजर आ रहे हैं, लेकिन सपा के मौजूदा विधायक ही अगले चुनाव के प्रत्याशी माने जायें, तो इनमें से अधिकाँश की हालत दयनीय नजर आ रही है। सरकार की जनहितकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के साथ सांसद धर्मेन्द्र यादव द्वारा जिले में कराये गये अभूतपूर्व विकास कार्यों के अलावा व्यक्तिगत तौर पर विधायकों के हाथ खाली ही नजर आते हैं। स्तब्ध कर देने वाली बात यह है कि चार वर्ष अपने विकास को महत्व देने वाले विधायक चुनावी वर्ष में भी कार्यप्रणाली बदलते नजर नहीं आ रहे।

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि ईमानदार व्यक्ति के रूप में बरकरार है। जिन योजनाओं पर मुख्यमंत्री की सीधी नजर है, वे योजनायें भी सफल कही जा सकती हैं। कृषक दुर्घटना बीमा, मुफ्त चिकित्सा योजना सफल कही जा सकती हैं। आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे, मेट्रो रेल परियोजना, चकगंजरिया फार्म को सीजी सिटी के रूप में विकसित करना और हेरिटेज आर्क के साथ मुख्यमंत्री ने अन्य कई सराहनीय कार्य किये हैं, जिनकी देश भर में चर्चा की जा रही है, लेकिन इन अप्रत्याशित विकास कार्यों पर सत्तापक्ष के विधायकों ने ही झाड़ू फेर दी है। प्रदेश की जनता जाति और धर्म से ऊपर उठ कर अखिलेश यादव की प्रशंसा करती नजर आती है, लेकिन सपा के विधायकों का नाम सुनते ही अधिकांश लोगों का पारा चढ़ जाता है।

बदायूं जिले में अभूतपूर्व विकास कार्य हुए हैं, लेकिन सांसद धर्मेन्द्र यादव के प्रयास को अलग कर दिया जाये, तो सत्ता पक्ष के विधायकों की झोली शून्य है। शासन स्तर पर प्रयास कर अतिरिक्त विकास कार्य कराने की तो बात ही छोड़िये, शासन द्वारा क्षेत्र के विकास के लिए दी जाने वाली निधि को लेकर ही तमाम आरोप लगते रहे हैं। निधि से सिर्फ स्वयं का विकास किया गया है। जनता से संवाद और व्यवहार की स्थिति यह है कि अधिकाँश विधायक स्वयं को जनप्रतिनिधि कम, शहंशाह अधिक समझते हैं। समाजवादी पार्टी का सहारा न मिले, तो छोटे से गाँव के प्रधान नहीं बन पायेंगे, लेकिन अहंकार इस हद तक भर गया है कि भाषण देते समय देश के ही नहीं, बल्कि सीरिया, पाकिस्तान, इंग्लैण्ड, रूस और अमेरिका के मुददों पर बोलते नजर आते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि स्थानीय मुददों पर बोलने लायक उनका कद नहीं है, वे बड़े नेता हैं।

सहसवान विधान सभा क्षेत्र से ओमकार सिंह यादव ग्राम्य विकास राज्यमंत्री हैं, वे मंत्री बनने से पूर्व क्षेत्र में ही ज्यादातर रहते थे, अब उनके बेटे डीसीबी के चेयरमैन ब्रजेश यादव क्षेत्र की कमान संभाले हुए हैं और अधिकांशतः क्षेत्र में ही रहते हैं। अन्य विधायकों की बात करें, तो सांसद धर्मेन्द्र यादव दिल्ली से आकर क्षेत्र में उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं, पर यहीं रहने वाले विधायकों के दर्शन को जनता तरस गई है। आम समस्या है कि मोबाइल फोन कभी नहीं उठाते। अपने आवास पर शहंशाहों की तरह दरबार लगाते हैं, लेकिन दरबार के लगने का कोई समय निश्चित नहीं है। कुछ विधायकों का दरबार तो रात में 11 बजे लगता है, जो रात के 1 बजे तक चलता है, जिससे इस वीवीआईपी दरबार में आम जनता कभी उपस्थित नहीं हो पाती।

भ्रष्टाचार, लापरवाही और मनमानी का अहसास विधायकों को भी है, तभी वे सिर्फ मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सांसद धर्मेन्द्र यादव की बात करते हैं, उनके द्वारा कराये गये विकास कार्यों के नाम पर स्वयं को पुनः जिताने की बात करते हैं। भाषण सुनते समय ही सामने बैठी जनता धीरे से बोलती रहती है कि धर्मेन्द्र यादव को जिता दिया, फिर जितायेंगे और बार-बार जितायेंगे, लेकिन तुम्हें वोट नहीं देंगे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी आम जनता खुश है, लेकिन मौजूदा विधायक ही प्रत्याशी बने, तो बड़ी संख्या में जनता इन्हें वोट नहीं देने वाली। अखिलेश यादव को मौजूदा विधायकों की आम जनता के बीच छवि का पता लगाने के लिए ईमानदारी पूर्वक सर्वे कराना चाहिए और जिनकी छवि बेहद खराब है, उन्हें किसी कीमत पर टिकट नहीं देना चाहिए, तभी समाजवादी पार्टी की सत्ता में वापसी हो सकती है, वरना चुनाव बाद अप्रत्याशित परिणाम आ सकते हैं।

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