बदायूं जिले की राजनीति में बड़ा परिवर्तन होने की संभावना गौतम संदेश ने सुबह ही जता दी थी। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान देर रात आये और फिर उन्होंने मशवराती काउंसिल की औपचरिकता पूरी कर धर्मेन्द्र यादव और आबिद रजा को मिला दिया। पत्रकारों के सवालों को टालते हुए आजम खान ने कहा कि आप सब भी अब खाना खा लें लेकिन, पत्रकार चले गये और फिर आजम खान, धर्मेन्द्र यादव और आबिद रजा एक साथ खाने बैठ गये।
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कद्दावर नेता आबिद रजा और धर्मेन्द्र यादव के बीच शीत युद्ध जैसा माहौल था। बात बढ़ती चली गई, जिससे आबिद रजा मुस्लिम जागरूकता अभियान चलाने लगे। अभियान आजम खान और मशवराती काउंसिल के बहाने जिले से बाहर प्रदेश तक में फैल गया। अपरोक्ष रूप से समाजवादी पार्टी को भी कठघरे में खड़ा किया जाने लगा। अंत में पिछले दिन लखनऊ में अखिलेश यादव के हस्तक्षेप से आजम खान की मौजूदगी में धर्मेन्द्र यादव और आबिद रजा के बीच चल रही तनातनी को शांत कर दिया गया। संवाद तो कायम हो गया लेकिन, सार्वजनिक रूप से जिले में आकर दोनों एक-साथ आने से बच रहे थे।
राजनैतिक रूप से धर्मेन्द्र यादव को लाभ हो और दोनों में से किसी की छवि खराब न हो, इसलिए मंगलवार देर रात आजम खान ही स्वयं आये और मशवराती काउंसिल के बहाने दोनों को मिला दिया। हालाँकि आजम खान आबिद रजा के आवास पर ही आते हैं और इस बार भी वहीं आये, इसलिए धर्मेन्द्र यादव को भी आना पड़ा, इस दृष्टि से धर्मेन्द्र यादव के स्वाभिमान का कम होना स्वाभाविक ही है।
आबिद रजा द्वारा बताया कि मशवराती काउंसिल द्वारा निर्णय लिया गया है कि सच्चर कमेटी की सिफारिशें लागू की जायें एवं मुस्लिमों को अनुपात के अनुसार बिना ब्याज के कर्ज दिया जाये। दोनों निर्णय के अलावा यह भी निर्णय लिया गया कि सांप्रदायिक शक्तियों को हराने के लिए, लोकतंत्र को बचाने के लिए, इंसानियत को बचाने के लिए और तिरंगे को बचाने के लिए समाजवादी पार्टी और धर्मेन्द्र यादव को समर्थन दिया जाता है।
इसके अलावा पत्रकारों ने सवाल किये तो, आबिद रजा ने जवाब देने के लिए जैसे ही मुंह खोला, वैसे ही आजम खान ने हाथ दबा कर उन्हें रोक दिया और यह कह कर सवाल टाल दिए गये कि देर हो चुकी है खाना खा लीजिये। पत्रकारों तो खाना नहीं खाया लेकिन, आजम खान, धर्मेन्द्र यादव और आबिद रजा एक-साथ खाना खाने के लिए अंदर चले गये मतलब, अब तीनों मिल कर ही खायेंगे, सब शिकवे दूर हो गये हैं।
खैर, मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। मुस्लिम समाज के एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि मशराती काउंसिल खुरापाती काउंसिल निकली। उन्होंने कहा कि आजम खान के टिकट के लिए दबाव बनाया जा रहा था। धर्मेन्द्र यादव पर हमला करना आसान था, सो उनका विरोध कर के टिकट ले लिया। टिकट के मिलते ही मूल मुद्दे दबा दिए गये और अब फिर नरेंद्र मोदी, अमित शाह और आरएसएस का डर ऊपर कर दिया गया, इस राजनीति को अब आम मुसलमान समझ गये हैं।
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