बदायूं जिले को लेकर भारतीय जनता पार्टी में राजनैतिक सरगर्मियां काफी दिनों से चल रही हैं। विरोध करने की अवस्था में कोई नहीं है लेकिन, जिलाध्यक्ष का महत्वपूर्ण दायित्व हथियाने में कई चापलूस भी जुटे नजर आ रहे हैं। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बेहद गंभीर और बुद्धिमान के साथ जमीनी समझ रखने वाला है, जिससे चापलूसों की दाल भाजपा में नहीं गलने वाली।
भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में हरीश शाक्य ने बेहतरीन पारी खेली है, उनके नेतृत्व में भाजपा ने लगातार तरक्की की है। हालाँकि उन्हें टीम भी बेहतर मिली है। कभी न कभी परिवर्तन होना ही है, सो भाजपा के संगठन में भी परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है। मंडल स्तरीय चुनाव निपट चुके हैं, अब जिलाध्यक्ष चुनने की बारी है। राम मंदिर को लेकर आने वाले आदेश के चलते जिलाध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया एक-दो सप्ताह टल सकती है लेकिन, सूत्रों का कहना है कि नये जिलाध्यक्ष का चुनना तय है। हरीश शाक्य को और बेहतर दायित्व दिया जा सकता है।
भाजपा के नये जिलाध्यक्ष को लेकर कई तरह की सरगर्मियां चल रही हैं। कई चापलूस भी जुटे हुए हैं, जो किसी बड़े नेता और पदाधिकारी के बल पर दायित्व हथियाना चाहते हैं लेकिन, शीर्ष नेतृत्व जमीन से जुड़े गंभीर स्वभाव के व्यक्ति को ही जिलाध्यक्ष बनायेगा। सूत्रों का कहना है कि भवानी सिंह लंबे समय से संगठन मंत्री हैं, वे एक-एक गाँव तक की जानकारी रखते हैं, कार्यकर्ताओं की मंशा भी समझते हैं, इसके अलावा ब्रज क्षेत्र का सबसे बड़ा दायित्व ठाकुर जाति के पास है, इसलिए यहाँ ठाकुर जिलाध्यक्ष नहीं बन सकेगा। मुख्यमंत्री को जातिगत दृष्टि से देखा जाये तो, वे भी ठाकुर ही हैं, इसीलिए अन्य जातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर बल दिया जा रहा है।
लोधी राजपूतों में वीएल वर्मा भाजपा में न सिर्फ प्रांतीय उपाध्यक्ष हैं बल्कि, उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा भी प्राप्त है, ऐसे में लोधी राजपूत भी दौड़ से बाहर बताये जा रहे हैं। हरीश शाक्य को बदलने के पीछे एक बड़ा कारण उनकी जाति की संघमित्रा मौर्य का सांसद चुना जाना भी माना जा रहा है। मौर्य, शाक्य, कुशवाह और सैनी समाज का प्रतिनिधित्व करने को संघमित्रा मौर्य हैं ही अब। ब्रज क्षेत्र में अध्यक्ष का दायित्व वैश्य वर्ग के पास है, लोकसभा क्षेत्र के संयोजक का दायित्व भी वैश्य वर्ग के पास है, साथ ही हाल ही में सदर विधायक महेश चंद्र गुप्ता को राज्यमंत्री का दायित्व मिला है, ऐसे में जिलाध्यक्ष वैश्य वर्ग के पास भी नहीं जा सकता।
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अब जिलाध्यक्ष के दायित्व पर सबसे मजबूत दावेदारी ब्राह्मण वर्ग की ही नजर आ रही है। ब्राह्मण नेताओं में लोकप्रिय, जनप्रिय और मृदुभाषी बहुत कम लोग हैं लेकिन, जो हैं, वे शीर्ष नेतृत्व के संज्ञान में हैं। सूत्रों का कहना है कि नया जिलाध्यक्ष ब्राह्मण वर्ग से ही होगा, जिसकी घोषणा राम मंदिर को लेकर आने वाले आदेश के तत्काल बाद की जा सकती है।
यह भी बता दें कि पिछले दिनों आंवला जिला बना कर उधर अलग कार्यकारिणी बनाने की बात चली थी पर, उसे हाल-फिलहाल टाल दिया गया है। अब जिले के अनुसार ही कार्यकारिणी गठित की जायेगी। दलाली और ठेकेदारी करने वालों से शीर्ष नेतृत्व अब भी दूरी बना कर रखेगा।
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