रंग लाई जेके-महेश की पहल, जीत में मुस्लिमों की बड़ी भूमिका

रंग लाई जेके-महेश की पहल, जीत में मुस्लिमों की बड़ी भूमिका

बदायूं नगर पालिका परिषद नाम के आबिद रजा के अति-सुरक्षित किले को दीपमाला गोयल ने कैसे ढहा दिया?, इस सवाल का जवाब सभी को चाहिए। चमत्कार जैसी लग रही फात्मा रजा की अप्रत्याशित हार को लेकर हर कोई स्तब्ध नजर आ रहा है, इस हार की तह में हर कोई जाना चाहता है।

पालिकाध्यक्ष पद के अप्रत्याशित परिणामों की गौतम संदेश ने अलग-अलग बिंदुओं पर गहन समीक्षा की, तो कई कारण नजर आये। पहला कारण तो यही है कि विधान सभा और निकाय की मतदाता सूची में हिंदू-मुस्लिम मतों में बड़ा अंतर है। दूसरा कारण यह है कि इस बार के चुनाव में मतदाता धर्म के नाम पर पूरी तरह नहीं बंटे। तीसरा कारण है कि फात्मा रजा और दीपमाला गोयल के अलावा कोई तीसरा सशक्त प्रत्याशी नहीं था, इसलिए दोनों के बीच में ही सीधा चुनाव हुआ। पिछले चुनावों में तीसरा प्रत्याशी किसी एक प्रत्याशी का खेल बिगाड़ देता था।

आबिद रजा के चुनाव की बात करें, तो वर्ष- 2006 के चुनाव में वे राजनीति के पटल पर नायक की तरह निकल कर आये, उस समय समाजवादी पार्टी भी बेहद मजबूत स्थिति में थी, साथ ही मतदाता धार्मिक दृष्टि से विभाजित भी नहीं थे, जिससे वे झटके से पालिकाध्यक्ष बन गये। अगले चुनाव में वसीम अंसारी ने फात्मा रजा का खेल बिगाड़ दिया, जिसकी भरपाई माधवी साहू द्वारा काटे गये वोटों से भी नहीं हुई। उप-चुनाव में सीधा मुकाबला हुआ, पर उस समय तक भाजपा सशक्त स्थिति में नहीं थी, जिससे दीपमाला गोयल न सिर्फ हार गईं, बल्कि फात्मा रजा ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की, पर इस चुनाव में वन-टू-वन और बराबर की भिड़ंत हुई।

हर राजनेता के हर जाति-धर्म में समर्थक होते हैं, वैसे ही हर जाति-धर्म में विरोधी भी होते हैं। भाजपा में टिकट के कई दावेदारों ने टिकट न मिलने पर दीपमाला गोयल का अंदरूनी विरोध किया था, जिसके साक्ष्य भी हैं, साथ ही बड़ी संख्या में हिंदू मतदाताओं ने भी फात्मा रजा को समर्थन दिया था, इसी तरह आबिद रजा के विरोधी होना भी स्वाभाविक ही है, उनकी कार्य प्रणाली, व्यवहार, अथवा विचारों से मेल न खाने वाले लोग मुस्लिम समाज में भी हैं, लेकिन उनके विरोधियों को चुनावों में कोई और विकल्प मिल जाता था। जैसे पिछले विधान सभा चुनाव में उनके विरोधी मुस्लिम मतदाता बसपा प्रत्याशी भूपेन्द्र सिंह “दद्दा” की ओर चले गये, जिससे भाजपा के महेश चंद्र गुप्ता जीते भले ही, पर जीत का अंतर बहुत बड़ा नहीं रहा, पर इस चुनाव में एक तो विरोधी मुस्लिम मतदाताओं के पास सशक्त विकल्प नहीं था, साथ ही भाजपा के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष एवं चुनाव के मुख्य संयोजक जितेन्द्र सक्सेना एवं विधायक महेश चंद्र गुप्ता ने उनकी ओर हाथ भी बढ़ा दिया।

जितेन्द्र सक्सेना ने मुस्लिम समाज के तमाम लोगों को हाई-कमान से बात कर भाजपा में ले लिया। इस्लामिया इंटर कॉलेज के सामने बड़ी सभा आयोजित कर अल्वी समाज के तमाम लोगों ने खुलेआम दीपमाला को समर्थन दिया, साथ ही भाजपा विधायक महेश चंद्र गुप्ता ने अपने आवास पर मुस्लिम समाज के चुनिंदा प्रभावशाली लोगों की गोपनीय बैठक कर समर्थन देने का आह्वान किया था। जेके और महेश की यह पहल रंग लाई, जिसका परिणाम मतगणना में स्पष्ट दिखाई दिया। किसी की जीत में हर एक मतदाता की बराबर की भागीदारी होती है। दीपमाला गोयल डेढ़ दशक से भी अधिक समय से नगर पालिका परिषद में घुसने का प्रयास कर रही थीं, उनकी भागीरथी तपस्या के फली-भूत होने में जेके-महेश की रणनीति और मुस्लिम मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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