बदायूं जिले में समाजवादी पार्टी सिमटती जा रही है। जमीनी कार्यकर्ताओं को निरंतर पीछे धकेला जा रहा है। चापलूसों को वरीयता दी जा रही है। निजी स्वार्थ को सर्वोपरि रखा जा रहा है, जिससे समाजवादी पार्टी दयनीय अवस्था में पहुंच गई है। समर्पित कार्यकर्ता त्रस्त है, जो ताकत के सामने बेबस हो चुका है, इसलिए किनारा करने का मन बना रहा है।
बदायूं जिले के लोग स्वभाव से समाजवादी विचारधारा के हैं। हिंदू-मुस्लिम मिल कर रहने में विश्वास रखते हैं, इसीलिए कट्टरपंथी सोच जिले भर में पैदा नहीं हो पाई। कट्टरपंथी उभर कर सामने आये भी पर, उन्हें आम जनता ने बहुत दिनों तक स्वीकार नहीं किया। आम जनता समाजवादी विचारधारा की है, जिससे स्थापना होते ही समाजवादी विचारधारा वाली समाजवादी पार्टी से जुड़ गई। आम जनता समाजवादी पार्टी की समर्थक न थी, न है पर, विचारधारा मेल खाती रही, सो बदायूं जिला प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाने लगा।
समाजवादी पार्टी के पक्ष में स्वर्गीय बनवारी सिंह यादव ने कड़ी मेहनत की, वे गाँव-गाँव तक पैठ बनाने में कामयाब हो गये तो, लोग स्वयं को समाजवादी पार्टी का समर्थक कहने में भी बुरा नहीं समझते थे। स्वर्गीय बनवारी सिंह यादव हितों की रक्षा भी करते थे। क्षेत्रीय विधायक शोषण करने का प्रयास करते थे तो, स्वर्गीय बनवारी सिंह यादव आड़े आ जाते थे, जिससे आम जनता समाजवादी पार्टी से जुड़ी रही।
वर्ष- 2009 में मैनपुरी से पलायन कर धर्मेन्द्र यादव बदायूं आ गये। मुलायम सिंह यादव के भतीजे होने और बनवारी सिंह यादव की कड़ी मेहनत से धर्मेन्द्र यादव जम गये लेकिन, जमते ही अपने समर्थक बनाने में जुट गये। बनवारी सिंह यादव के रहते पूरी तरह हावी नहीं हो पाये पर, उनके निधन के बाद हालात तेजी से बदल गये। अब जिले में धर्मेन्द्र यादव का मतलब ही समाजवादी पार्टी है, उनके पीआरओ विपिन यादव और अवधेश यादव जिसकी संस्तुति कर दें, वही समाजवादी है, उसके अलावा कोई कुछ नहीं है।
बनवारी सिंह यादव के प्रयासों से विशाल जिला कार्यालय बनाया गया था लेकिन, अब समाजवादी पार्टी की राजनीति का केंद्र कार्यालय नहीं बल्कि, धर्मेन्द्र यादव की कोठी है। पार्टी में पदाधिकारी मनोनीत किये जाते हैं पर, उन्हें मनोनयन पत्र कार्यालय की जगह कोठी से दिया जाता है। किसी भी तरह का प्रेस नोट कार्यालय की जगह कोठी से ही जारी होता है। पार्टी का बड़ा नेता आता है, वह भी कार्यालय की जगह कोठी पर ही जाता है। जिस प्रकरण से धर्मेन्द्र यादव संबंध नहीं रखना चाहते, उस प्रकरण में कार्यालय की याद आती है और फिर कोठी की जगह कार्यालय से बयान जारी कराया जाता है, लेकिन, ऐसा भी उनके ही आदेश पर होता है।
बनवारी सिंह यादव के निधन के बाद उनके बेटे पूर्व विधायक आशीष यादव को जिलाध्यक्ष मनोनीत किया गया। आशीष यादव को अपनी टीम बनानी थी पर, उन्हें अपनी टीम बनाने की भी स्वतंत्रता नहीं है। हालाँकि वे सार्वजनिक रूप से इसको स्वीकार नहीं करेंगे पर, सच्चाई यही है। अब सूत्रों का कहना है कि प्रदेश कार्यालय के निर्देश पर टीम बना ली गई है, जिस पर प्रदेश कार्यालय द्वारा संस्तुति भी प्रदान कर दी गई है लेकिन, कार्यकारिणी घोषित नहीं की जा रही है, क्योंकि कार्यकारिणी में विपिन यादव और अवधेश यादव द्वारा सुझाए गये लोगों को वरीयता दी गई है। जमीनी कार्यकर्ताओं को जगह नहीं मिली है, जिससे आक्रोश पनप सकता है पर, ऐसा कब तक किया जा सकता है। अंततः टीम घोषित ही करना पड़ेगी और घोषणा होते ही स्वाभिमानी कार्यकर्ता किनारा भी कर सकता है। समाजवादी विचारधारा के लोग भारतीय जनता पार्टी में नहीं जा सकते थे, इसलिए मन न होते हुए भी पार्टी में बने रहे पर, अब समाजवादी सोच के लोगों के पास विकल्प हैं, वे प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का हिस्सा बन सकते हैं।
कुल मिला कर जिले में समाजवादी पार्टी धर्मेन्द्र यादव और उनके प्रतिनिधियों के आस-पास ही सिमट कर रह गई है। समाजवादी पार्टी की सरकार में भारतीय जनता पार्टी के चेयरमैन मस्त रहे, क्योंकि धर्मेन्द्र यादव और उनके प्रतिनिधियों को वे खुश रखते थे, समय पूरा होने के बाद एक ने भी समाजवादी पार्टी से टिकट नहीं माँगा और सरकार बदलते ही सबके सब भाजपाई हो गये, क्योंकि उन्हें कभी सपा में आने को नहीं कहा गया, उनकी मदद भाजपाई के रूप में ही की जाती रही, जबकि उनमें से किसी ने भी विधान सभा चुनाव में सपा प्रत्याशी का चुनाव नहीं लड़ाया।
गुन्नौर विधान सभा क्षेत्र की बात करें तो, यह क्षेत्र यादव बाहुल्य है और पूरी तरह समाजवादी पार्टी से जुड़ा रहा है। टिकट को लेकर एक बार मारा-मारी ज्यादा हो गई तो, मुलायम सिंह यादव ने साधारण से टीचर गैर राजनैतिक व्यक्ति को टिकट थमा दिया था, जिसे आम जनता ने बंपर मतों से जिता दिया था पर, उनके सगे भतीजे धर्मेन्द्र यादव से 70 हजार से ज्यादा लोग नाराज बताये जाते हैं। पिछला लोकसभा चुनाव सपा सरकार में हुआ था, इसके बावजूद गुन्नौर विधान सभा क्षेत्र से उन्हें अपेक्षा के अनुरूप मत नहीं मिले थे, उसका कारण सिर्फ यही है कि वे पार्टी और क्षेत्रीय विधायकों से अलग टीम बनाते हैं और उस टीम के आगे किसी की नहीं सुनते। समाजवादी पार्टी की सरकार में सीधे तौर पर जिन लोगों के स्वार्थ पूरे किये गये थे, उनमें से आधे भाजपा में जा चुके हैं और आधे उनके नाम का जयकारा लगा रहे हैं, इस सबके बीच समाजवादी पार्टी का मूल कार्यकर्ता मौन है। धर्मेन्द्र यादव लोकसभा क्षेत्र में साईकिल यात्रा पर निकलने वाले हैं, इस यात्रा से स्पष्ट हो जायेगा कि वे सोये हुए कार्यकर्ताओं को जगा पायेंगे या, नहीं।
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