अखिलेश यादव की तरह ही धर्मेन्द्र यादव की राजनीति नहीं समझ पा रहे कार्यकर्ता

अखिलेश यादव की तरह ही धर्मेन्द्र यादव की राजनीति नहीं समझ पा रहे कार्यकर्ता

बदायूं जिले की समाजवादी पार्टी को लोकसभा चुनाव से पहले स्लो प्वाइजन देना शुरू किया गया था, जिसका दुष्परिणाम लोकसभा चुनाव में हार के रूप में सामने आ गया लेकिन, समाजवादी पार्टी के शक्तिशाली नेताओं ने हार से सबक नहीं लिया। जिन कारणों से कार्यकर्ता मायूस थे, उन कारणों को समाप्त करने की जगह कार्यकर्ताओं को और दुःख-दर्द देने वाली हरकतें लगातार की जा रही हैं। कभी अखिलेश यादव कुछ ऐसा कर देते हैं कि कार्यकर्ता आशंकित हो उठते हैं तो, कभी धर्मेन्द्र यादव। आम कार्यकर्ता नेतृत्व कर्ताओं की राजनीति समझ ही नहीं पा रहा है।

उल्लेखनीय है कि पिछ्ला लोकसभा चुनाव सलीम इकबाल शेरवानी कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे, साथ ही सदर क्षेत्र के निवर्तमान विधायक व पूर्व दर्जा राज्यमंत्री आबिद रजा भी कांग्रेस में शामिल हो गये थे, उन्हें कांग्रेस का प्रांतीय उपाध्यक्ष व प्रांतीय प्रवक्ता बनाया गया था। समाजवादी पार्टी के धर्मेन्द्र यादव अप्रत्याशित तरीके से लोकसभा चुनाव हार गये, जबकि कांग्रेस व सपा ने एक-दूसरे के बड़े नेताओं के सामने प्रत्याशी नहीं उतारे थे। सिर्फ बदायूं लोकसभा क्षेत्र में भिड़ंत हुई थी, जिससे यह अफवाह फैल गई कि अखिलेश यादव ही धर्मेन्द्र यादव को कमजोर करना चाहते हैं, जिसका धर्मेन्द्र यादव को नुकसान होना स्वाभाविक ही था।

उक्त अफवाह पिछले दिनों वायरल हुए एक फोटो के कारण और मजबूत हो गई। फोटो में अखिलेश यादव, सलीम इकबाल शेरवानी, आबिद रजा एक साथ नजर आ रहे थे, इस फोटो के सामने आते ही एक नई अफवाह फैली कि आबिद रजा सदर क्षेत्र में और सलीम इकबाल शेरवानी लोकसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी का नेतृत्व करेंगे और धर्मेन्द्र यादव को कोई और लोकसभा क्षेत्र दिया जायेगा। हालाँकि सलीम इकबाल शेरवानी ने बदायूं आकर अफवाह का खंडन कर दिया। आबिद रजा के साथ पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे कांग्रेस में हैं और समाजवादी पार्टी में नहीं जा रहे हैं, यह बात तो थी अखिलेश यादव के स्तर की, जिसके चलते कार्यकर्ता असमंजस की अवस्था में पड़े रहते हैं।

अब बात करते हैं धर्मेन्द्र यादव की तो, वे भी अखिलेश यादव के पदचिन्हों पर ही चल रहे हैं। दातागंज विधान सभा क्षेत्र के पूर्व विधायक प्रेमपाल सिंह यादव विधान सभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में शामिल हो गये थे, वे अभी भी कांग्रेस में ही हैं लेकिन, धर्मेन्द्र यादव के लगातार साथ दिखाई देते हैं। धर्मेन्द्र यादव आते हैं तो, उनकी कोठी पर भी उपस्थित रहते हैं, इसी तरह बिल्सी विधान सभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के विधायक रहे हैं मसर्रत अली “बिट्टन”, वे हाल-फिलहाल भी बसपा में ही हैं, उनके दूसरे भाई अरशद अली सहसवान विधान सभा क्षेत्र से बसपा के टिकट पर ही चुनाव लड़े थे, उनके तीसरे भाई की पत्नी बसपा के टिकट पर इस्लामनगर की चेयरमैन चुनी गई हैं लेकिन, मसर्रत अली धर्मेन्द्र यादव के चहेते हैं।

बताया जाता हैं कि समाजवादी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व दीवाली मनाने को सैफई में जमा हुआ तो, वहां प्रदेश के अन्य तमाम नेता भी पहुंच गये। अखिलेश यादव, प्रो. रामगोपाल यादव और धर्मेन्द्र यादव के पीछे प्रेमपाल सिंह यादव और मसर्रत अली भी बैठे दिखाई दे रहे हैं। फोटो वायरल होते ही जिले में एक बार फिर राजनैतिक गतिविधियाँ तेज हो गईं और लोग तमाम तरह की प्रतिक्रिया देने लगे।

समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता ही कहने लगे हैं कि धर्मेन्द्र यादव की राजनीति समझ से परे हैं। राजनीति में कुछ भी तय नहीं किया जा सकता लेकिन, इतना भी असमंजस नहीं होना चाहिए कि कार्यकर्ता के अंदर स्थाई भाव ही उत्पन्न न हो सके। कार्यकर्ता पार्टी के साथ स्थानीय नेतृत्व को भी प्राथमिकता देता है, कार्यकर्ता को यह पता ही नहीं होगा कि उसका स्थानीय नेता कौन रहेगा तो, वह निश्चित ही मायूस होकर निष्क्रिय हो जायेगा, जिसका  दुष्परिणाम समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में झेल चुकी है।

चौंकाने वाली बात यह है कि समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष आशीष यादव को भी अस्थिर करने के षड्यंत्र किये जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी के एक गुट ने जिला सचिव बलवीर सिंह यादव से जिलाध्यक्ष पद के लिए आवेदन करा दिया है, इस आवेदन के पीछे की और आगे की कहानी कार्यकर्ता नहीं समझ पा रहे हैं। समाजवादी पार्टी के अधिकांश नेताओं के बीच आत्मीयता का भाव खत्म हो गया है, सब एक-दूसरे को बर्बाद करने के षड्यंत्र कर रहे हैं, जिसका एक मात्र दोष धर्मेन्द्र यादव का ही माना जायेगा, क्योंकि उनकी स्वयं की राजनैतिक गतिविधियाँ स्पष्ट नहीं हैं।

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