बदायूं लोकसभा क्षेत्र के एक संभावित प्रत्याशी की आम जनता के बीच पोल पूरी तरह खुल गई है, जिससे वे अब जाति और धर्म का सहारा लेने का प्रयास करते हुए दिखाई दे रहे हैं। विधानसभा वार विशेष जाति और विशेष पंथ के लोगों के सम्मेलन कराने को रुपया पानी की तरह बहाया जा रहा है, इसके बावजूद संबंधित जाति और पंथ से जुड़े लोग दस लोगों को भी सम्मेलन में लाने का वादा करने को तैयार नहीं हैं, जिससे राहू-केतु की नींद उड़ी हुई बताई जा रही है एवं ब्लड प्रेशर भी बढ़ा हुआ बताया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि संभावित प्रत्याशी पहला चुनाव ग्लैमर में जीत गये लेकिन, जीतने के बाद लोगों को अहसास हुआ कि यह तो झूठ की मशीन है। कभी किसी व्यक्ति से सच बोलते ही नहीं हैं, साथ ही सबको आपस में लड़ाने का काम करते हैं। गली-मोहल्ला स्तर के कार्यकर्ताओं से विधायकों का अपमान करवाने लगे। राहू-केतु खुल कर कहते थे कि विधायक कौन होता है, आप भैया जी के राइट हैंड हैं, जो करना है, सो करो, इस सबसे विधायकों का स्तर खराब हो गया। अगले चुनाव में कोई रूचि नहीं लेना चाहता था पर, उस समय भैया जी की सरकार थी, सो किसी में विरोध करने का साहस नहीं था। प्रधान से लेकर विधायक तक, सिपाही से लेकर एसएसपी तक और लेखपाल से लेकर डीएम तक दहशत में थे, ऐसे वातावरण में चुनाव हारने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, फिर विधान सभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आ गई, जिसके बाद हालात बदल गये। हर कोई झूठ की मशीन से बदला लेने को आतुर दिखाई देने लगा।
झूठ की मशीन और राहू-केतु 2019 का चुनाव गठबंधन के अहंकार में लड़ रहे थे, उन्हें यह अहसास ही नहीं था कि उनके पैरों के नीचे जमीन ही न है पर, मतगणना हुई तब पिछले कुकर्मों का अहसास करने की जगह बेईमानी करने का झूठ फैलाने का प्रयास किया गया, जबकि गठबंधन ने लाज बचा ली थी वरना, डेढ़ लाख से अधिक वोट नहीं निकलते, इस बार गठबंधन भी न है, सो झूठ की मशीन द्वारा एक नई चाल चली जा रही है। अपनी जाति के साथ सवर्ण और मुस्लिम मतदाताओं के सामने चरित्र का खुलासा हो चुका है, वे अब पद और धन पैदा कराने के लालच में फंसने को तैयार नहीं हैं, साथ ही भैया जी को लगता है कि पिछले चुनाव में डॉ. संघमित्रा मौर्य को भगवान बुद्ध के अनुयायियों ने खुल कर चुनाव लड़ाया था, जिससे वे जीत गईं, इस बात को ही सत्य माना जाये तो, असली बौद्धिष्ट डॉ. संघमित्रा मौर्य का कोई विरोध क्यों करेगा। डॉ. संघमित्रा मौर्य देशभर में भगवान बुद्ध का प्रचार-प्रसार करने वालों में से हैं।
खैर, भैया जी का विश्वास अपनी लकीर बड़ी करने में कभी रहा ही नहीं है, वे सामने वाले की लकीर छोटी करने में विश्वास करते हैं, वे विधायकों के बड़े नेता और बड़े भाई बनने की जगह विधायकों को समाप्त करने में विश्वास करते हैं, जबकि यह बात अनपढ़ व्यक्ति भी जानता है कि प्रदेश की सरकार विधायकों से बनती है, जिसके बनने से उनकी स्वयं की भी तूती बोलती है, फिर भी वे विधायकों की जमीनी स्तर पर छवि खराब करने में ही रात-दिन जुटे रहते हैं लेकिन, आम जनता के बीच विधायक रहते हैं, वे आम जनता के सुख-दुःख में साथ खड़े होते हैं, इसलिए आम जनता के बीच विधायक ही सशक्त हैं। विधायकों को सम्मान न देने के कारण ही आम कार्यकर्ता राहू-केतु की कॉल तक रिसीव करने को तैयार नहीं हैं, इसीलिए वोट बढ़वाने को और नुक्कड़ सभायें कराने लेकर पैसे देने का ऑफर देना पड़ा।
पहली बार बदायूं में घुसने से पहले छोटे-बड़े सरकार से दुआ मांगी थी, इसके बाद हुए चुनाव में अहंकार लड़ा, सो किसी से मदद तक न मांगी लेकिन, अब सूत्रों का कहना है कि इस बार भैया जी भगवान बुद्ध की शरण में जा रहे हैं तभी विधानसभा वार भगवान बुद्ध के अनुयायियों और दलित समाज के लोगों के सम्मेलन कराने की योजना है पर, कार्यकर्ताओं ने हाथ खड़े कर दिए हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनसे हम किसी तरह का कोई वादा करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि झूठ की मशीन चुनाव बाद मुकर जायेगी। राहू-केतु के अहंकार में कोई कमी नहीं आई है, जिससे उन लोगों को संतुष्ट कौन करेगा, उनके नेताओं को बाद में कौन जवाब देगा। सूत्रों का यह भी कहना है कि पिछली बार गठबंधन हुआ था तब से कुछ भ्रष्ट बदनाम नेता झूठ की मशीन के संपर्क में हैं, जिन्हें गोपनीय तरीके से रूपये देकर दलितों को सम्मेलनों में लाने का दायित्व दिया गया है पर, लोगों का मानना है कि बदनाम नेता दलित समाज के बीच जा भी नहीं सकते, ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि मंच को चुनिंदा चमचों से ही भर कर सम्मान बचाने का प्रयास किया जायेगा। भाजपा की ओर से अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं है, फिर भी सांसद डॉ. संघमित्रा मौर्य को ही अगला प्रत्याशी मान लिया जाये तो, अब देखने वाली बात यह है कि डॉ. संघमित्रा मौर्य के क्षेत्र में बाहर से आये भगवान बुद्ध के प्रचारक क्या असर छोड़ पायेंगे?
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