सांसद धर्मेन्द्र यादव के निर्णयों से समर्थकों में पनप रहा है असंतोष

सांसद धर्मेन्द्र यादव के निर्णयों से समर्थकों में पनप रहा है असंतोष

बदायूं लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेन्द्र यादव शुरू से ही बेहद लोकप्रिय रहे हैं, हर आयु वर्ग के लोग उनके समर्थक ही नहीं, बल्कि दीवाने हैं, लेकिन कुछ समय से उनके कुछ निर्णयों को लेकर एक बड़े वर्ग में असंतोष उत्पन्न होने लगा है। आम जनता के बीच अब यह चर्चा आम तौर पर जोर पकड़ने लगी है कि निजी लाभ के लिए सांसद धर्मेन्द्र यादव किसी को भी अपना चहेता बना सकते हैं और किसी चहेते को गोद से उठा कर फेंक भी सकते हैं।

सांसद धर्मेन्द्र यादव की कार्य प्रणाली को लेकर चर्चायें कस्बा सहसवान से शुरू हुई थीं, यहाँ एक माफिया सपा सरकार में ही विधायक व पूर्व राज्यमंत्री ओमकार सिंह यादव को खुलेआम सार्वजनिक मंचों से कोसता रहा, लेकिन सांसद ने उसका न मुंह बंद किया और न ही उसे सिर से नीचे उतारा। ओमकार सिंह यादव का व्यवहार और उनके बेटे ब्रजेश यादव की मेहनत का परिणाम ही कहा जायेगा कि ओमकार सिंह यादव भाजपा की लहर में भी अपनी इज्जत बचा ले गये, वरना सांसद के चहेते माफिया ने चुनाव हरवाने में भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी।

दहगवां विकास क्षेत्र में एक गाँव है नैनोल बागवाला, यहाँ शानू चौधरी नाम का युवा प्रधान है, जो सपा का न सिर्फ जुझारू कार्यकर्ता है, बल्कि युवा वाहिनी का पदाधिकारी भी है, इसके बावजूद वह सांसद धर्मेन्द्र यादव से मिलने को आज तक तरस रहा है, उसका कोई लोभ नहीं है। जुझारू युवा इतनी आकांक्षा तो रखेगा ही कि उसका नेता उसे नाम और चेहरे से पहचाने, पर उसके तमाम प्रयासों के बावजूद सांसद से उसकी मुलाकात तक नहीं हो सकी, यह बात उसके अंदर तक बैठ गई और फिर पिछले दिनों उसने अपना दर्द फेसबुक पर बयाँ भी कर दिया, तो पार्टी कार्यकर्ताओं में हल-चल मच गई।

इससे पहले धर्मेन्द्र यादव पहला चुनाव बदायूं लोकसभा क्षेत्र से हिंदू मतदाताओं के बल पर जीते थे, उस चुनाव में सलीम इक़बाल शेरवानी मुस्लिम मतदाताओं को झटक ले गये थे, पर जीतने के बाद धर्मेन्द्र यादव ने हिंदू मतदाताओं को दोयम दर्जे पर ही रखा। पिछले नगर निकाय चुनाव में सशक्त हिंदू दावेदारों को दरकिनार कर तमाम स्थानों पर मुस्लिमों को टिकट दे दिए, जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि सपा जहां चुनाव जीत सकती थी, वहां भी हार गई, पर इससे उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि वे हार में भी में भी अपनी जीत देख रहे हैं, क्योंकि उन्हें टिकट देने के कारण ही मुस्लिम लोकसभा चुनाव में समर्थन देंगे, यह सब बातें थमतीं, उससे पहले उन्होंने नगर निकायों में प्रतिनिधि नामित कर के तमाम लोगों को नाराज कर दिया है।

नगर पंचायत वजीरगंज में समाजवादी पार्टी ने ताहिरा बेगम को टिकट दिया था, वे चुनाव हार गईं। उमर कुरैशी अपनी पत्नी के लिए बसपा से टिकट मांग रहे थे, पर बसपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तो उन्होंने पत्नी को निर्दलीय चुनाव लड़ाया। भाजपा की ना-समझी में उमर कुरैशी की पत्नी चुनाव जीत गईं, तो धर्मेन्द्र यादव ने ताहिरा बेगम को दरकिनार कर उमर कुरैशी को अपना प्रतिनिधि घोषित कर दिया, जबकि भाजपा विधायक महेश चंद्र गुप्ता ने अपनी हारी हुई प्रत्याशी के पति को ही नामित किया है। शासन-प्रशासन ने अध्यक्षों के परिजनों के हस्तक्षेप पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। उमर कुरैशी पर भी अंकुश लग गया था, जिससे पिछली बैठक उमर कुरैशी ने निरस्त करवा दी। सांसद ने उमर कुरैशी को अपना प्रतिनिधि घोषित कर दिया, तो बैठक बुला ली गई, जिसमें चेयरमैन के बराबर में ही उमर कुरैशी बैठे रहे। प्रतिनिधि बनने के लिए उमर कुरैशी कुछ भी कर सकते थे, इसलिए तमाम तरह की चर्चायें की जा रही हैं। ताहिरा बेगम के बेटे डॉ. सलीम ने भी आपत्ति की है, उन्होंने कहा कि चुनाव हुए अभी ठीक से दो महीने भी नहीं गुजरे हैं, ऐसे में सांसद को यह निर्णय नहीं लेना चाहिए था।

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