बदायूं लोकसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी की संघमित्रा मौर्य भले ही विजयी घोषित हुई हों लेकिन, जीत का श्रेय हाईकमान की रणनीति और संगठन को ही जाता है। संघमित्रा मौर्य को जिले का नक्शा कागज पर भी पता नहीं था, वे गाँवों में पहुंच नहीं पाईं, कार्यकर्ताओं से मिल नहीं पाईं, ऐसे में उन्हें जीत का श्रेय नहीं दिया जा सकता। हालाँकि वे बधाई स्वीकार करते हुए फूल-मालायें गले में डलवाने में संकोच नहीं कर रही थीं।
भारतीय जनता पार्टी से टिकट की घोषणा होने के बाद संघमित्रा मौर्य 24 मार्च को बदायूं पहुंची थीं। 23 अप्रैल को चुनाव हो गया था, इस बीच वे लखनऊ भी चली गई थीं। संघमित्रा मौर्य ने लोकसभा क्षेत्र में बमुश्किल 25 दिन चुनाव प्रचार किया था, फिर भी वे चुनाव जीत गईं, इससे स्पष्ट है कि जीत में उनकी स्वयं की कोई बहुत बड़ी भूमिका नहीं रही है लेकिन, वे पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को बहुत अधिक श्रेय देते नजर नहीं आ रही हैं। पदाधिकारी और कार्यकर्ता जिताने के बाद भी लाइन में लग कर बधाई और मालायें ही पहनाते नजर आ रहे थे। एक बात की क्षेत्र में व्यापक चर्चा है। संघमित्रा मौर्य बौद्ध हैं लेकिन, वे जब बदायूं में पहली बार आईं तो, चुनाव के कारण सबसे पहले मन्दिर जाकर रुद्राभिषेक किया लेकिन, चुनाव जीतने के बाद मन्दिर नहीं गईं मतलब, चुनाव जीतते ही बौद्ध हो गईं, साथ ही न प्रेस वार्ता की और न ही कार्यकर्ताओं से भेंट की। लग्जरी होटल में रात्रि विश्राम कर शुक्रवार को लखनऊ चली गईं, जिससे कार्यकर्ता मायूस नजर आ रहे हैं।
खैर, बात थी जीत के श्रेय की तो, वह भाजपा हाईकमान की रणनीति को ही जाता है। हाईकमान ने बेहद शानदार नीति तैयार की थी, जिसके अनुसार प्रत्येक लाभान्वित परिवार को प्रभावित करना था और उसके लिए कार्यकर्ताओं को लगातार ट्रेनिंग भी दी गई। सबसे पहले प्रमुख संगठन मंत्री सुनील बंसल स्वयं ही आये और एक-एक विन्दु समझा गये, इसके बाद जिला प्रभारी महाराज सिंह निरंतर जुटे रहे पर, स्थानीय स्तर पर संगठन मजबूत नहीं होता और सक्रिय टीम नहीं होती तो, हाईकमान की नीति को जमीन पर लागू कर पाना मुश्किल हो जाता।
भाजपा ने लोकसभा क्षेत्र का सम्मेलन किया, युवा मोर्चा का सम्मेलन हुआ, महिला मोर्चा का सम्मेलन हुआ, अनुसूचित मोर्चा का सम्मेलन हुआ, पिछड़ा वर्ग का सम्मेलन हुआ, किसान मोर्चा का सम्मेलन हुआ, अल्पसंख्यक मोर्चा का सम्मेलन हुआ, इनमें कार्यकर्ताओं को एक-बात विद्यार्थी की तरह समझाई गई, इसके अलावा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, केशव प्रसाद मौर्य की जनसभायें हुईं, अंत में बरेली जिले के देवचरा में नरेंद्र मोदी की जनसभा हुई, इससे प्रत्येक कार्यकर्ता और समर्थक के मन में भाजपा और नरेंद्र मोदी का नाम रमने लगा।
हाईकमान की रणनीति को लोकसभा क्षेत्र प्रभारी हर्ष वर्धन, लोकसभा क्षेत्र संयोजक अशोक भारती जमीन पर उतरवाने की लगातार पहल करते रहे। युवा और जुझारू जिलाध्यक्ष हरीश शाक्य की टीम बेहद मजबूत है। मंडल और बूथ अध्यक्षों ने हर बूथ पर कमाल कर दिया। विधायक महेश चंद्र गुप्ता और उनके बेटे विश्वजीत गुप्ता ने सदर क्षेत्र से भाजपा को जिताने को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया। जिला मंत्री शरदाकांत मिश्र “सीकू भैया”, महामंत्री सुधीर श्रीवास्तव, जिला महामंत्री राजेश्वर सिंह पटेल “बेबी”, जिला मंत्री अंकित मौर्य, जिला मंत्री प्रभाशंकर वर्मा रात-दिन बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखने का काम करते थे। कार्यालय में बैठ कर कार्यालय मंत्री आशीष शाक्य निरंतर फोन पर अपडेट लेते थे। युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष अनुज माहेश्वरी, महिला मोर्चा की क्षेत्रीय उपाध्यक्ष पूनम गुप्ता, जिलाध्यक्ष आशा राठौर, पूर्व प्रत्याशी आशुतोष वार्ष्णेय “भोला भैया” और पूर्व क्षेत्रीय उपाध्यक्ष जितेन्द्र सक्सेना भी लगातार जुटे रहे।
कुछेक क्षेत्रों में विधायक निष्क्रिय दिखे, वहां विधान सभा क्षेत्र संयोजकों और प्रभारियों ने विधायकों की कमी को पूरा कर दिया। बिल्सी विधान सभा क्षेत्र में प्रभारी राजीव कुमार गुप्ता की हर कोई दाद देता नजर आ रहा है लेकिन, पैसे के बल पर जीत का श्रेय लेने एक माननीय सबसे आगे आ गये हैं, उन्होंने आज एक बड़े होटल में क्षेत्र के पदाधिकारियों को भोजन कराया, जबकि हर पदाधिकारी उनका सच जानता है। सहसवान विधान सभा क्षेत्र में प्रभारी अवनीश सिसौदिया ने कड़ी मेहनत की। बिसौली क्षेत्र में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने स्वयं मोर्चा संभाला।
इस सबके अलावा भाजपा के साथ सबसे अच्छी बात यह रही कि प्रांतीय उपाध्यक्ष और दर्जा राज्यमंत्री वीएल वर्मा एवं कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के डर के कारण कोई खुल कर गद्दारी नहीं कर पाया। हालाँकि कुछेक विधायकों ने गद्दारी करने का प्रयास किया, जिसका अहसास होते ही उन्हें क्षेत्र से दूर हटा दिया गया, साथ ही संगठन मंत्री भवानी सिंह छापामार कार्रवाई निरंतर करते रहे, संघ के बड़े पदाधिकारी पूर्व प्रांत प्रचारक ख्यालीराम, प्रान्त प्रचारक हरीश, सह-प्रांत प्रचारक कर्मवीर तक आये और सफलता का मंत्र देकर गये, जिससे मजबूत टीम ने एकजुटता के साथ चुनाव लड़ाया।
ऊपर दर्शाए गये वो नाम हैं, जिनका उल्लेख किया जा सकता है लेकिन, ऐसे भी सैकड़ों लोग हैं, जिन्होंने निःस्वार्थ भाव से रात-दिन भाजपा के हित में कार्य किया, इसका परिणाम यह हुआ कि अजेय माने जाने वाले बेहद अच्छी छवि के विकास पुरुष की उपाधि वाले धर्मेन्द्र यादव चुनाव हार गये। धर्मेन्द्र यादव संघमित्रा मौर्य से नहीं बल्कि, संगठन से चुनाव हारे हैं, जिसका तोड़ उनके पास नहीं था।
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