बदायूं जिले का स्वास्थ्य विभाग गंभीर हालत में पहुंच गया है। दवा से ठीक होने का समय गुजर गया है। आईसीयू में पड़े विभाग को सर्जरी की आवश्यकता है, जिसके बाद ही सुधार हो सकता है। भ्रष्टाचार के चलते विभाग के कर्मचारी ही नहीं, बल्कि स्वयं सीएमओ भी हड़बड़ाहट में नजर आ रहे हैं, जिसके चलते निरंतर गलतियाँ हो रही हैं, इसके बावजूद प्रशासनिक अफसर और शासन कार्रवाई नहीं कर रहे।
उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार और माफियाराज खत्म करने के उद्देश्य से सरकार ने ई-टेंडरिंग की व्यवस्था की है, लेकिन भ्रष्ट कर्मचारी और अफसर ई-टेंडर में भी बेईमानी के रास्ते निकाल ले रहे हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय की बात करें, तो यहाँ सिर्फ उल्टा-पुल्टा ही हो रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा संचालित जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत टेंडर जारी किया गया, जिसमें फर्मों से टेंडर आमंत्रित किये गये। टेंडर जमा करने की अंतिम तिथि 28 दिसंबर दोपहर 3 बजे तक थी, इससे पहले 27 दिसंबर को टेंडर के नियम और शर्तों में परिवर्तन कर तिथि आगे बढ़ा दी गई। तीन वर्ष का अनुभव होने की महत्वपूर्ण शर्त थी, जिसे पूरी तरह समाप्त कर दिया गया एवं टर्नओवर की शर्त में भी संशोधन किया गया, साथ ही टेंडर जमा करने की अंतिम तिथि 3 जनवरी कर दी गई।
उक्त प्रकरण को लेकर गौतम संदेश ने खबर प्रकाशित की, तो सीएमओ ने यू-टर्न ले लिया। नियम और शर्तों में परिवर्तन कर सीएमओ चहेती फर्म को टेंडर देने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन शर्तें नहीं बदल पाये, तो 3 जनवरी को समस्त टेंडर ही निरस्त कर दिए, इसी तरह राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम फ्लॉप हो गया है।
बताते हैं कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की मॉनिटरिंग के लिए प्रत्येक विकास क्षेत्र में दो-दो एवं प्रत्येक सीएचसी और पीएचसी पर एक-एक गाड़ी रहती है, कुल 47 गाड़ियाँ थीं, जिनका कार्यकाल 31 दिसंबर को समाप्त हो गया। विभागीय कर्मचारियों और अफसरों की मंशा थी कि गोपनीय तरीके से तिथि आगे बढ़ा दी जायेगी, इस बीच शासन से नई नीति के अंतर्गत टेंडर जारी करने का निर्देश आ गया, तो आनन-फानन में टेंडर की विज्ञप्ति जारी की गई, लेकिन टेंडर मात्र एक फर्म ने ही डाला, जिससे टेंडर निरस्त कर दिया गया। भ्रष्टाचार और लापरवाही के चलते अहम कार्यक्रम जिले में फ्लॉप हो गया है।
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