बदायूं विधान सभा क्षेत्र में विरोधियों द्वारा अफवाह फैलाई गई थी कि कुर्मी समाज महेश चंद्र गुप्ता का जमकर और खुल कर विरोध कर रहा है। दावा किया जा रहा था कि कुर्मी समाज समाजवादी पार्टी के साथ है। तर्क दिया जा रहा था कि कुर्मी समाज के अधिकांश नेता महेश चंद्र गुप्ता का विरोध कर रहे हैं, जिससे कुर्मियों के गढ़ में महेश चंद्र गुप्ता बुरी तरह पिछड़ जायेंगे पर, मतगणना के बाद सभी दावों की पोल खुल गई है। कुर्मी बाहुल्य गांवों में महेश चंद्र गुप्ता आगे रहे हैं।
सदर क्षेत्र में माना जाता है कि समाज के दो-तीन नेता जिसे समर्थन देते हैं, उन्हें ही कुर्मी समाज के वोट मिलते हैं पर, इस बार उल्टा दिखाई दे रहा है। कुर्मी समाज के नेताओं ने महेश चंद्र गुप्ता का जमकर विरोध किया पर, कुर्मी समाज के आम मतदाताओं ने महेश चंद्र गुप्ता को दिल खोल कर वोट दिए हैं। गांववार बात करें तो, आमगांव में महेश चंद्र गुप्ता को 570, सपा को 476, औरामई में महेश चंद्र गुप्ता को 385, सपा को 371, लखनपुर में महेश चंद्र गुप्ता को 745, सपा को 318, वरातेगदार में महेश चंद्र गुप्ता को 736, सपा को 527, गुरपुरी विनायक में महेश चंद्र गुप्ता को 344, सपा को 71, देहमी में महेश चंद्र गुप्ता को 619, सपा को 386, भगवतीपुर में महेश चंद्र गुप्ता को 281, सपा को 161, शिकरापुर में महेश चंद्र गुप्ता को 485, सपा को 168, मोंगर में महेश चंद्र गुप्ता को 556, सपा को 458, सिलहरी में महेश चंद्र गुप्ता को 256, सपा को 347, वावट में महेश चंद्र गुप्ता को 123, सपा को 287 और रायपुर में महेश चंद्र गुप्ता को 359 एवं सपा को 100 वोट मिले हैं, इससे स्पष्ट है कि कुर्मी समाज ने इस चुनाव में समाज के ठेकेदारों को पूरी तरह नकार दिया है और महेश चंद्र गुप्ता को अपना नेता मान लिया है।
महेश चंद्र गुप्ता का सबसे बड़ा गुण यह माना जाता है कि सर्वाधिक शक्तिशाली होने के बावजूद उनमें अहंकार नहीं है, वे ऊपर चढ़ने के बाद भी नीचे की ओर देखते रहते हैं, नीचे के लोगों से जुड़े रहते हैं। राज्यमंत्री होने के बावजूद क्षेत्र से संबंध कम नहीं किये, वे गांवों में लगातार जाते रहे, उनके बेटे विश्वजीत गुप्ता ने क्षेत्र को पूरी तरह संभाले रखा, इसीलिए उनके सामने विपक्ष और विरोधियों के सभी हथकंडे फेल हो गये, जबकि उनके विरुद्ध सपा की ओर से मुख्य रणनीतिकार धर्मेन्द्र यादव थे पर, महेश चंद्र गुप्ता के आम जनता से आत्मीय रिश्तों और उदारता के सामने धर्मेन्द्र यादव भी कुछ न कर पाये।
यह भी बता दें कि जिले में भारतीय जनता पार्टी की हालत बहुत अच्छी नहीं रही है। जिले में भाजपा के पांच और सपा का एक विधायक था पर, अब जिले में भाजपा-सपा के तीन-तीन विधायक हैं। जिला स्तरीय संगठन ने सोशल साइट्स की जगह जमीन पर मेहनत की होती तो, दो और क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशी पुनः जीत सकते थे। संगठन के कुछेक नेताओं द्वारा दावा किया जा रहा है कि हर क्षेत्र में भाजपा का वोट बढ़ा है, जो उनकी सफलता है, पर, वे यह नहीं बता रहे हैं कि हर क्षेत्र में सपा प्रत्याशियों के भी वोट बढ़े हैं, क्योंकि गत विधान सभा चुनाव की तुलना में हर क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या बढ़ी है, जिससे सभी दलों के वोट बढ़ना सामान्य बात है, इसमें किसी व्यक्ति, नेतृत्व और संगठन का कोई विशेष योगदान नहीं है। सदर क्षेत्र की ही बात करें तो, पिछली बार सपा प्रत्याशी के रूप में आबिद रजा को लगभग 70 हजार वोट मिले थे, जबकि इस बार सपा प्रत्याशी रईस अहमद को लगभग 89 हजार वोट मिले हैं, जो पिछली बार की तुलना में ज्यादा हैं।
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