सावधान: दिमागी बुखार ने दी दस्तक, एक बच्चे की मौत

सावधान: दिमागी बुखार ने दी दस्तक, एक बच्चे की मौत
रोते-विलखते मृतक बच्चे के परिजन।
रोते-विलखते मृतक बच्चे के परिजन।

बदायूं के लोगों के लिए बड़ी ही भयावह खबर है। बदायूं जिले में दिमागी बुखार (जापानी बुखार) फैल रहा है। दिमागी बुखार की चपेट में आकर एक बच्चा दम तोड़ चुका है एवं मृतक का जुड़वाँ भाई मौत से जूझ रहा है।

उसहैत थाना क्षेत्र के गाँव कोन का नगला निवासी हरीचन्द्र के जुड़वाँ बेटे हैं, जिन्हें बुखार आ गया। गाँव और आसपास के डॉक्टर की दवा से हालत में सुधार नहीं हुआ, तो बच्चों को जिला अस्पताल लाया गया। मुख्यालय पर आने के बाद ज्ञात हुआ कि बच्चे दिमागी बुखार की चपेट में हैं।

डॉक्टर बच्चों का उपचार करने में जुट गये, लेकिन पांच वर्षीय गौरव ने दम तोड़ दिया। मृतक का जुड़वाँ भाई सौरभ अब भी बीमार है, इससे भी बड़ी दुःखद बात यह है कि एक बच्चे की मौत के बाद भी प्रशासन ने अलर्ट जारी नहीं किया है, जबकि तत्काल बड़े पैमाने पर प्रबंध करने होंगे, क्योंकि प्रचंड गर्मी के मौसम में वायरस फैल गया, तो हालात और भी भयानक हो सकते हैं।

इन्सेफेलाइटिस के कारक: वायरल इन्सेफेलाइटिस विभिन्न प्रकार के विषाणुओं जैसे रेबिज वायरस, हरपीज सिंप्लेक्स पोलियो वायरस, खसरे के विषाणु, छोटी चेचक विषाणु आदि के कारण होता है। मस्तिष्क में सूजन किसी तीव्र विषाणु के संक्रमण से या अव्यस्क संक्रमण के कारण भी हो सकती है। विभिन्न प्रकार के विषाणुओं जैसे जापानी इन्सेफेलाइटिस विषाणु, सेंट लुइस विषाणु, पश्चिमी नील विषाणु, शीतला मानइर विषाणु और शीतला मेजर विषाणु आदि वायरल इन्सेफेलाइटिस के मुख्य कारण हैं। कुछ परजीवी या मलेरिया जैसे प्रोटोजोआ संक्रमण भी मस्तिष्क सूजन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। जीवाणु इन्सेफेलाइटिस सिफलिस जैसे तीव्र जीवाणु संक्रमण के कारण होता है। इन्सेफेलाइटिस को मुख्य तौर पर दो नामों प्राथमिक और द्वितीयक के रूप में जाना जाता है। प्राथमिक इन्सेफेलाइटिस तब होता है, जब विषाणु या अन्य संक्रामक वाहक सीधे मस्तिष्क को प्रभावित करता है। इसमें संक्रमण एक क्षेत्र में केंद्रित होता है, जबकि द्वितीयक इन्सेफेलाइटिस तब होता है, जब हमारा प्रतिरक्षक तंत्र दोष पूर्ण हो जाता है और गलती से मस्तिष्क की स्वस्थ्य कोशिकाओं पर हमला कर देता है।

इन्सेफेलाइटिस के लक्षण: मच्छर और चिचड़ी जैसे कीट अनेक प्रकार के इन्सेफेलाइटिस के विषाणुओं के वाहक होते हैं। इन्सेफेलाइटिस अक्सर अन्य विषाणु संक्रमणों के साथ होता है, जिससे इसके लक्षण को पहचान पाना और सूजन का उपचार कर पाना कठिन होता है । हालांकि इसके सामान्य लक्षणों की बात करें, तो इनमें बुखार, सिर दर्द, भूख न लगना, कमजोरी लगना और बीमारी जैसे अनुभव होना आदि शामिल हैं। इन्सेफेलाइटिस के विभिन्न मामले में व्यक्ति को बहुत तेज बुखार और केंद्रीय तंत्रिका सिस्टम में संक्रमण से सम्बंधित लक्षणों का अनुभव होता है, जैसे कि तेज दर्द, उल्टी एवं घबराहट, गर्दन में दर्द, भटकाव, व्यक्तित्व में बदलाव, दौरा, बोलने या सुनने में समस्या होना, जले हुए मांस या सड़े हुए अंडे की बदबू का आना, याददाश्त कम होना, उनींदापन होना एवं कोमा आदि शामिल हैं। बच्चों और शि‍शुओं में देखे जाने वाले लक्षणों में खोपड़ी में एक पूरा या उभरी हुई चित्ती, शरीर की जकड़न, कम दूध पीना, चिड़चिड़ापन एवं चुप कराने पर भी चुप न होना आदि शामिल है।
इन्सेफेलाइटिस का इलाज: इन्सेफेलाइटिस के अधिकतर प्रकार में लक्षण लगभग एक सप्ताह में उभरते हैं, जबकि पूरी तरह से ठीक होने में अनेक सप्ताह या महीने लग सकते हैं। लेकिन गंभीर मामलों में ध्यान नहीं दिया जाए, तो स्थायी रूप से मस्तिष्क की क्षति और विकलांगता जैसे सीखने की क्षमता का कम होना, बोलने में समस्या, याददाश्त कम होना, मांसपेशि‍यों को नियंत्रित करने की क्षमता में कमी आना, और कुछ मामलों में तो मौत भी हो सकती है। इसीलिए इसके लक्षणों के आरंभ होने पर ही चिकित्सक की सलाह ले लेनी चाहिए। इन्सेफेलाइटिस बीमारी के निदान में इमेजिंग परीक्षण जैसे कम्प्यूटेड टोमोग्राफी यानी सीटी स्कैन, मस्तिष्क की एमआरआई एवं ईसीजी, रक्त परिक्षण, आदि शामिल हैं, जो कि संक्रमण के लिए मस्तिष्कमेरू द्रव का परीक्षण करते हैं। इन्सेफेलाइटिस में प्रतिजैविक दवाओं का उपयोग किया जाता है।
इन्सेफेलाइटिस से बचाव के उपाय: बच्चों को यह रोग अधिक सताता है, इसीलिए बच्चों को पूरे कपड़े पहचाएं, ताकि उनकी त्वचा ढकी रहे। साथ ही कीट प्रतिकर्षकों का उपयोग करें, ताकि उसे मच्छर और अन्य कीट काट न पाएं। शाम के समय जब मच्छर जैसे काटने वाले कीट अधिक सक्रिय होते हैं, तब बाहर कम रहें। नवजात शिशु के बचाव के लिए मां के जननांग पथ में सक्रिय दादों का सीज़ेरियन किया जा सकता है। पोलियो, खसरा, कण्डमाल आदि विषाणुओं के कारण होने वाले इन्सेफेलाइटिस को बच्चों में टीकाकरण से रोका जा सकता है। टीके के तीन डोज से जापानी इन्सेफेलाइटिस की रोकथाम की जा सकती है। जहां ऐसी बीमारी फैली हो, वहां जाने से बचें।

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