भाजपा जिलाध्यक्ष का चुनाव नहीं हो सका, चापलूस सक्रिय

भाजपा जिलाध्यक्ष का चुनाव नहीं हो सका, चापलूस सक्रिय
गौरी शंकर मंदिर के प्रांगण में उपस्थित भाजपा नेता।
गौरी शंकर मंदिर के प्रांगण में उपस्थित भाजपा नेता।

बदायूं जिले में आज भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष का चुनाव नहीं हो सका। हालांकि पांच लोगों ने नामांकन पत्र भरे, लेकिन चुनाव अधिकारी ने चुनाव नहीं कराया। अब जिलाध्यक्ष का चुनाव प्रदेश स्तर से किया जायेगा, जिससे जनाधार विहीन नेता बेहद खुश नजर आ रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान जिलाध्यक्ष प्रेम स्वरूप पाठक का कार्यकाल पूर्ण हो चुका है। नये जिलाध्यक्ष का आज चुनाव होना था। चुनाव अधिकारी अनिल तिवारी आये, उन्होंने गौरी शंकर मंदिर के प्रांगण में सर्वसम्मति से नये जिलाध्यक्ष का चुनाव कराने का प्रयास किया, लेकिन आम सहमति नहीं बन पाई। सशक्त दावेदार हरीश शाक्य के विरुद्ध अधिकांश नेता एकजुट हो गये और हरीश शाक्य के साथ पूर्व राज्यमंत्री भगवान सिंह शाक्य, पूर्व विधायक दयासिन्धु शंखधार, अशोक भारती और राणा प्रताप सिंह ने नामांकन पत्र भर दिए, साथ ही कुछ और नेता भी नामांकन पत्र भरना चाहते थे, लेकिन उन्हें प्रस्तावक नहीं मिले, जिससे नामांकन पत्र खरीदने के बावजूद वे जमा नहीं करा पाये।

हरीश शाक्य के नाम पर जब आम सहमति नहीं बन पाई, तो चुनाव प्रक्रिया शुरू की गई, जिससे अब सवाल उठ रहा है कि नामांकन पत्र भरवाने के बावजूद चुनाव क्यूं नहीं कराया गया?, इस सवाल को लेकर चुनाव अधिकारी अनिल तिवारी की मंशा पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। सशक्त दावेदार माने जा रहे हरीश शाक्य के बारे में अब कहा जा रहा है कि उनके संगठन प्रमुख रहते हुए जिले के 22 मंडलों में सिर्फ 16 मंडलों की कार्यकारणी ही बन सकी है, जिससे उनके नंबर कम हो गये। बताया यह भी जा रहा है कि तीन वर्ष सक्रिय कार्यकर्ता रहा व्यक्ति ही जिलाध्यक्ष बन सकता है, जिससे पूर्व राज्यमंत्री भगवान सिंह शाक्य और पूर्व विधायक दयासिन्धु शंखधार भी दावेदारी से बाहर माने जा रहे हैं, क्योंकि यह दोनों नेता पार्टी में लोकसभा चुनाव के समय आये थे। अब अशोक भारती और राणा प्रताप सिंह दावेदार बचे हैं, लेकिन सूत्रों का कहना है प्रदेश नेतृत्व किसी अन्य नाम पर विचार कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि शातिर किस्म के नेताओं ने इरादे से ऐसे दावेदार आगे किये, जिनके नाम पर आम सहमति न बन सके और बवाल होने के बाद वे प्रदेश नेतृत्व से अपने परिवार के ही किसी व्यक्ति को जिलाध्यक्ष नियुक्त कराने में सफल हो जायें। खैर, अब जो भी सही, पर अब सबकी नजरें प्रदेश नेतृत्व की ओर टिक गई हैं, साथ ही असमंजस की स्थिति बनी हुई है, क्योंकि अभी यह कोई भी बताने को तैयार नहीं है कि प्रदेश नेतृत्व जनाधार वाले नेता को अहमियत देगा, या चापलूस को।

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