दुःख-दर्द की अनुभूति व्यक्ति को स्वतः होती है। अगर, व्यक्ति को दुःख और दर्द है, तो किसी और के कहने भर से उसके दुःख-दर्द का नाश नहीं होगा और अगर, दुःख-दर्द नहीं है, तो किसी और के कहने से दुःख-दर्द की अनुभूति भी नहीं हो सकती। विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंध में निरंतर कह रहे हैं कि उनकी कार्य प्रणाली से जनता बेहद दुखी है, परेशान है, वह बदलाव चाहती है, इस सबको सच साबित करने के लिए विपक्ष निरंतर जघन्य वारदातों का स्वयं ही सृजन कर रहा है और फिर वारदातों को बड़े स्तर पर उछाल रहा है। कभी भगवा आतंकवाद जैसा नाम गढ़ा जाता है, कभी हिंदू राष्ट्र बनाने की बात उछाली जाती है, कभी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन लेने की बात कही जाती है, इसी तरह जुनैद कांड को धर्म का चश्मा पहना दिया गया, इस सब पर आम जनता विपक्ष के साथ खड़ी नहीं हुई, तो अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी के माध्यम से भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार का भी आरोप मढ़ दिया गया, पर वह भी शिगूफा ही साबित हुआ।
परंपरागत आरोप और मुद्दे आम जनता के बीच नहीं ठहर पाये, तो विपक्ष ने भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सिर्फ बदनाम करने भर के उद्देश्य से न्यायालय को हथियार बना लिया। सुनियोजित तरीके से उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठम न्यायाधीशों से पत्रकार वार्ता आयोजित करा दी, जिस पर आम जनता ने उल्टा जजों की ही फजीहत की, इसी तरह जस्टिस ब्रजगोपाल लोया की मृत्यु को भी मुद्दा बनाने का प्रयास किया जा रहा है, राहुल गाँधी भी विचार किये बिना कूद पड़े। विपक्ष सफल होता, उससे पहले दिवंगत जस्टिस ब्रजगोपाल लोया का बेटा अनुज मीडिया के सामने आ गया और उसने स्पष्ट कर दिया कि “पिछले कुछ दिनों से आ रहीं खबरों को देखते हुए मैं ये साफ करना चाहता हूँ कि परिवार को इन सब चीजों से बहुत तकलीफ हो रही है, हमारा किसी पर कोई आरोप नहीं है, हम काफी दर्द में हैं और इन सब चीजों से बाहर आना चाहते हैं, मैं आप लोगों से अनुरोध करता हूँ कि कृपया हमें परेशान करने की कोशिश नहीं कीजिए, यह भी कहा कि हम इस मुद्दे पर किसी भी राजनीति के शिकार नहीं होना चाहते हैं, हम नहीं चाहते कि कोई भी इसका फायदा ले। दिवंगत जज के बेटे ने यह भी स्पष्ट किया कि भावनात्मक बहाव के चलते शुरुआत में उन्होंने कुछ कहा था, पर अब सब कुछ साफ है, कोई संदेह नहीं है।“ दिवंगत जज ब्रजगोपाल लोया के बेटे अनुज के बयान के बाद विपक्ष और राहुल गाँधी द्वारा उछाले गये इस मुद्दे की भी अकाल मौत हो गई। शर्मिंदा होने की जगह अब कहा जा रहा है कि दिवंगत जस्टिस का परिवार डरा-सहमा है, इसलिए वह विरोध नहीं कर पा रहा। जस्टिस के बच्चे जन्म से ही साहसी होते हैं, ऐसे में परिवार के डरने की बात निराधार ही कही जायेगी और अगर, नरेंद्र मोदी-अमिता शाह किसी की भी हत्या कराने में सक्षम हैं, तो फिर राहुल गाँधी, अखिलेश यादव, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी सहित संपूर्ण विपक्षी नेताओं को को भी डरना चाहिए।
असलियत में अपरिपक्वता और परिपक्वता के बीच मुकाबला हो रहा है, उतावले और गंभीर व्यक्तित्व के बीच की प्रतियोगिता है, जिसमें अपरिपक्वता और उतावलापन निरंतर मात खा रहा है। नरेंद्र मोदी की नकल कर मंदिर-मंदिर जाने की जगह राहुल गाँधी कांग्रेस की कार्य प्रणाली पर ही मंथन कर लेते, तो वे नरेंद्र मोदी को चिंता में डाल सकते थे। राहुल गाँधी उस कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, जिसने जन-जन के बीच जड़ें जमा चुके जेपी आंदोलन को राजनैतिक रूप से सफल नहीं होने दिया। स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े आंदोलन को कांग्रेस ने लक्ष्य पर पहुंचने से पहले ही धराशाई कर दिया था। यूपीए सरकार के समय का घटनाक्रम राहुल गाँधी को भी याद होगा। दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित किये गये रामदेव के कथित आंदोलन को सहज अंदाज में समाप्त कर दिया था और इस तरह खत्म किया कि सलवार-सूट पहन कर भागे रामदेव स्वयं जनता के बीच हास्य का पात्र बन कर रह गये, ऐसी रणनीति बनाने वाली कांग्रेस के अध्यक्ष को समय का इंतजार करना चाहिए और सही समय आने पर सही जगह चोट करने को तैयार भी रहना चाहिए।
पाशा उल्टा-सीधा फेंक कर प्रधानमंत्री नहीं बने हैं नरेंद्र मोदी, उन्हें भारत की आम जनता ने प्रचंड बहुमत दिया है। जनता मूर्ख नहीं है, उसने सोच-विचार कर वोट दिया है। निर्णय लेने वाला अपने निर्णय पर और के निर्णय से अधिक देर तक टिकता है। जनता ने भी निर्णय लिया है, तो उसका स्वयं मोह भंग होने का इंतजार करना चाहिए। नोटबंदी के समय विपक्ष के पास अवसर था, लेकिन उतावलेपन में विपक्ष ने नरेंद्र मोदी को अलोकप्रिय नहीं होने दिया। नोटबंदी से आम जनता प्रभावित हुई, वह आक्रोश व्यक्त करती, उससे पहले विपक्ष ने उतावलेपन में इस तरह हमला बोला कि जनता को लगा कि सत्ता में सर्वाधिक समय कांग्रेस ने ही बिताया है, इनका ही काला धन डूब गया, तभी यह ज्यादा तड़प रहे हैं, विपक्ष की तड़प से जनता खुश हो गई और नरेंद्र मोदी अलोकप्रिय होने से बच गये।
हाल-फिलहाल अपरिपक्वता और उतावले की दो और घटनायें सामने आई हैं। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गले मिल कर गर्मजोशी से स्वागत किया, तो कांग्रेस ने वीडियो जारी कर उनका मजाक उड़ाया, इससे उल्टा कांग्रेस की ही फजीहत हो रही है, क्योंकि आम जनता मेहमान का गर्मजोशी से स्वागत करने को सही मानती है।
जिस प्रकार देश की सत्ता शीर्ष पर बैठी भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी को कांग्रेस स्वीकार नहीं कर पा रही है, ठीक उसी प्रकार समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। पिछले दिनों लखनऊ स्थित विधान भवन के सामने आलू फेंकने की घटना हुई, जिसके बारे में कहा गया था कि आक्रोशित आलू किसानों ने आलू फेंके हैं, इस प्रकरण की पुलिस ने जाँच की, तो किसानों की जगह सपा कार्यकर्ता निकले, जिन्होंने सरकार और मुख्यमंत्री को बदनाम करने को आलू फेंकने की वारदात को अंजाम दिया था, इस खुलासे के बाद अब समाजवादी पार्टी की ही फजीहत हो रही है। अखिलेश यादव भी उस समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं, जिसके संस्थापक मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक कौशल के देश के अधिकांश नेता कायल हैं। अखिलेश यादव को भी मुलायम सिंह यादव के दांव-पेंच सीखने में समय गुजारना चाहिए।
फर्जी घटनाओं का सृजन करने से विपक्ष के प्रति आम जनता में अविश्वास बढ़ रहा है। विपक्ष के प्रति अविश्वास बढ़ने से सरकार निरंकुश हो सकती है, जिसका दुष्परिणाम आम जनता और देश को ही भुगतना पड़ेगा। उतावलापन और अपरिपक्वता को त्याग कर कुछ दिन विपक्ष मौन धारण करे। मौन भी विरोध का एक तरीका होता है। दुःख-दर्द की आम जनता को अनुभूति होने दें। मुद्दे जनता के बीच से उठने दें और जब जनता मुद्दे उठाने लगे, तब जनता के साथ आकर खड़े हों। मुद्दे बना कर जनता को अपने साथ लाने का इरादा कभी सफल नहीं हो सकता।
(गौतम संदेश की खबरों से अपडेट रहने के लिए एंड्राइड एप अपने मोबाईल में इन्स्टॉल कर सकते हैं एवं गौतम संदेश को फेसबुक और ट्वीटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं, साथ ही वीडियो देखने के लिए गौतम संदेश चैनल को सबस्क्राइब कर सकते हैं)