केरोसिन माफिया रुपया पानी की तरह बहा रहा है। केरोसिन माफिया ने दो और कथित क्षत्रिय नेताओं को खरीद कर अपने पक्ष में कर लिया, लेकिन आम लोगों ने संजरपुर कांड उछाल दिया है, जिससे चुनाव के समय एक बार फिर गुस्सा चरम सीमा पर पहुंच गया है, जिसका नुकसान सीधा केरोसिन माफिया को ही होगा।
उल्लेखनीय है कि बदायूं जिले के बिल्सी विधान सभा क्षेत्र से उमेश कुमार सिंह राठोर और राजेश कुमार सिंह भाजपा में टिकट के सशक्त दावेदार थे, लेकिन हाईकमान ने आंवला क्षेत्र से विधायक रह चुके आरके शर्मा को प्रत्याशी घोषित कर दिया, जिससे क्षेत्र में घोषणा के दिन स्वाभाविक जातिगत रोष फैल गया, लेकिन नामांकन पत्र जमा होने के बाद लोग शांत हो गये और आरके शर्मा को पसंद करने लगे, जिससे कुख्यात केरोसिन माफिया घबरा गया, उसने आनन-फानन में एक कथित क्षत्रिय नेता को दस रूपये में खरीद लिया, जिसका खुलासा होने से कथित क्षत्रिय नेता भूमिगत हो गया।
अब सूत्रों का कहना है कि केरोसिन माफिया ने क्षेत्र के दो और कथित क्षत्रिय नेताओं को मोटी रकम देकर अपनी ओर कर लिया है, जो जाति को बरगला कर उसके पक्ष में एकजुट करने में जुट गये हैं। गाँव-गाँव ठाकुरों के व्यक्तिगत कार्यालय खुलवा रहे हैं, प्रधान पद के और बीडीसी पद के विजेताओं व उप-विजेताओं को 25-25 हजार रूपये दिलवा रहे हैं, जिसका आम ठाकुरों को पता चल गया है, साथ ही ठाकुरों ने संजरपुर कांड को लेकर सवाल-जवाब करने शुरू कर दिए हैं, जिससे कथित क्षत्रिय नेता और केरोसिन माफिया भागते नजर आ रहे हैं।
चुनाव के समय संजरपुर कांड उछाल दिया गया है, जिसको लेकर समूचे विधान सभा क्षेत्र के ठाकुर लामबंद होने लगे हैं और केरोसिन माफिया का विरोध करने का संकल्प लेने लगे हैं। हालात ऐसे ही बने रहे, तो केरोसिन माफिया क्षेत्र में भ्रमण भी नहीं कर पायेगा। यहाँ बता दें कि उझानी कोतवाली में तैनात दारोगा अशोक कुमार यादव ने गाँव संजरपुर बालजीत निवासी नन्हें सिंह को बेवजह हिरासत में ले लिया था और उसकी जमकर मार लगाई थी, जिससे उसका हाथ तक टूट गया था। दारोगा का कहना था कि उसके लाइन हाजिर होने पर नन्हें ने मिठाई बांटी थी, इसलिए पीटा, इस घटना को लेकर पीड़ित नन्हें के पक्ष में सैकड़ों ग्रामीण लामबंद हो गये थे और 12 सितंबर को सभी ने अशोक के विरुद्ध एसएसपी से कार्रवाई करने की मांग की थी, इस पर एसएसपी ने सीओ को प्रकरण की जाँच दी, जिसमें दारोगा दोषी पाया गया और उसके विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ, साथ ही उसका पीलीभीत तबादला हुआ, लेकिन यह सब सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहा, दारोगा के विरुद्ध वास्तव में कोई कार्रवाई नहीं हुई।
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