बिहार में जन अधिकार पार्टी के प्रमुख और पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव अपनी गिरफ्तारी पर राजनैतिक लाभ लेने का प्रयास कर रहे हैं, वे भाजपा के दबाव में गिरफ्तार करने का आरोप लगाते नजर आये लेकिन, पप्पू यादव की गिरफ्तारी न्यायालय के आदेश पर पुलिस को मजबूरी में करना पड़ी है, क्योंकि पुलिस उनकी गिरफ्तारी को लंबे समय से टालती आ रही थी।
पप्पू यादव नेता हैं, वे विधायक और सांसद चुने जाते रहे हैं, इस सच के साथ यह भी उतना ही बड़ा सच है कि वे अपराधी भी रहे हैं और तमाम गंभीर आरोपों के चलते जीवन का लंबा समय जेल की सलाखों के पीछे गुजार चुके हैं। बात ताजा प्रकरण की करें तो, घटना 29 जनवरी 1989 की है। पप्पू यादव पर आरोप है कि अपने तीन-चार साथियों के संग मिलकर मधेपुरा जिला के मुरलीगंज थाना क्षेत्र में मिडिल चौक से रामकुमार यादव और उमा यादव का अपहरण किया, जिसकी शिकायत शैलेन्द्र यादव ने की थी। कुछ दिनों के बाद दोनों अपहृत स-कुशल वापस लौट आये थे। उक्त वारदात में 3 महीने बाद पप्पू यादव की गिरफ्तारी भी हुई थी लेकिन, जमानत मिलने पर पप्पू यादव जेल से बाहर आ गये थे, जिसके बाद वे विधायक और सांसद चुने जाते रहे, इससे उनका राजनैतिक कद और दखल लगातार बढ़ता रहा।
राजनैतिक कद बढ़ने से पप्पू यादव से पुलिस न सिर्फ कतराने लगी बल्कि, प्रोटोकॉल के चलते उन्हें सम्मान भी देने लगी। न्यायालय में विचाराधीन मुकदमे की पप्पू यादव ने पैरवी बंद कर दी, साथ ही न्यायालय से आने वाले सम्मन-वारंट भी पुलिस पप्पू यादव तक पहुँचाने का साहस न जुटा पाई, जिससे प्रकरण गंभीर होता चला गया। वर्ष- 1996 में राजनीति के अपराधीकरण पर एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिस पर सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने एमपी और एमएलए पर दर्ज मुकदमों की त्वरित सुनवाई का आदेश दिया था। प्रत्येक जिले में स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट गठित किये गये। पप्पू यादव का मुकदमा भी स्पेशल कोर्ट में चलने लगा। मधेपुरा में एसीजेएम प्रथम के स्पेशल कोर्ट में सुनवाई चलती रही। 10 फरवरी 2020 को कोर्ट ने पप्पू यादव के विरुद्ध गैर जमानती वारंट जारी किया था लेकिन, यह वारंट पप्पू यादव को रिसीव नहीं कराया जा सका और न ही उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट लाया गया, क्योंकि पुलिस में इतना साहस नहीं बचा था।
विधानसभा चुनाव के दौरान पप्पू यादव बिहार में जमकर प्रचार कर रहे थे। न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए पुलिस को नोटिस जारी किया था और पूछा था कि जब पप्पू यादव का गिरफ्तारी वारंट जारी है तो, वे चुनाव-प्रचार कैसे कर रहे हैं? इस पर न्यायालय में 17 सितंबर 2020 को पुलिस द्वारा बताया कि वारंट की कॉपी चौकीदार के द्वारा खो दी गई, जिससे वारंट तामील नहीं हो पाया। पुलिस ने आग्रह किया कि वारंट की दूसरी प्रति दी जाये। दूसरी कॉपी लेने के बाद भी मधेपुरा पुलिस ने पप्पू यादव को गिरफ्तार नहीं किया, साथ ही मधेपुरा पुलिस ने उन्हें फरार बता दिया, जिसके बाद धारा- 83 के अंतर्गत पप्पू यादव के घर की कुर्की करने का वारंट मांगा। 22 मार्च को न्यायालय ने पप्पू यादव के घर की कुर्की करने का वारंट जारी कर दिया, इसके बाद भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, इसी प्रकरण में न्यायालय ने दबाव बनाया है, जिस पर पुलिस ने पप्पू यादव को गिरफ्तार किया है।
पप्पू यादव 32 साल पुराने कुकर्म से ध्यान हटाने को कह रहे हैं कि भाजपा के दबाव में नितीश कुमार ने उन्हें गिरफ्तार कराया है, जबकि उन पर अपहरण का आरोप न होता तो, न्यायालय उनके विरुद्ध वारंट जारी नहीं कर पाता। राजनैतिक दुश्मनी के चलते सरकार उन्हें गिरफ्तारी करवाती तो, उसके लिए कोई कारण दिखाना पड़ता, जो आम जनता को फर्जी ही लगता। फिलहाल वह जिस प्रकरण में जेल गये हैं, उससे सरकार या, भाजपा का कोई संबंध नहीं है। फिलहाल वे न्यायालय के आदेश पर गिरफ्तार हुए हैं, इसलिए उनका राजनैतिक स्टंट काम नहीं आने वाला। अब जेल से बाहर आने के लिए पप्पू यादव को न्यायालय में ही गुहार लगाना होगी। सरकार चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती।
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