प्राचीन इतिहास धार्मिक पुस्तकों से ही मिलता है, जो तथ्यपरक भी है। हालाँकि विज्ञान ने शुरुआती चरण में धार्मिक पुस्तकों को नकारा, लेकिन विज्ञान ने प्रगति की, तो खोज धार्मिक पुस्तकों की ओर ही ले गई, जिससे अब विज्ञान भी धार्मिक पुस्तकों के इतिहास को सटीक मानने लगा है। ऐतिहासिक दृष्टि से वर्तमान के भारत गणराज्य की बात करें, तो बड़ी ही रोचक कहानी है। भारत गणराज्य नाम भारतवर्ष से ही लिया गया है, जो राजा भरत के नाम पर पड़ा था।
श्रीमद्भागवत के पंचम स्कंध और जैन ग्रंथों के साथ अन्य तमाम स्थानों पर उल्लेख है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, उनके मानस पुत्र स्वायंभुव मनु के दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद के ध्रुव हुए और ध्रुव के दस पुत्र हुए। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे, इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन में से एक पुत्र का नाम था आग्नीध्र, जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन दिया गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि, जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला, जिसे अजनाभ कहने लगे। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभदेव। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। वानप्रस्थ लेने से पूर्व ऋषभदेव ने ज्येष्ठ पुत्र भरत को शासन सौंप दिया, तो कुछ समय पश्चात अजनाभवर्ष, या अजनाभखंड की जगह भारत वर्ष नाम पड़ गया।
विष्णु पुराण के अनुसार भूगोल संबंधी ज्ञान महर्षि पाराशर ने मैत्रेय ऋषि को दिया था, जिसके अनुसार पृथ्वी जंबूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप और पुष्करद्वीप नाम के साथ द्वीपों में बंटी हुई है और सातों द्वीप खारे पानी, इक्षुरस, मदिरा, घृत, दधि, दुग्ध और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हैं। सभी द्वीप एक-दूसरे को घेरे हुए हैं, जिनके मध्य जम्बूद्वीप स्थित है। जम्बूद्वीप के मध्य में सुवर्णमय मेरु पर्वत स्थित है। मेरु के दक्षिण में हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक वर्षपर्वत हैं, जो भिन्न-भिन्न वर्षों को विभाजित करते हैं। सुमेरु के उत्तर में नील, श्वेत और शृंगी वर्षपर्वत हैं। मेरु पर्वत के दक्षिण में पहला वर्ष भारतवर्ष दूसरा किंपुरुषवर्ष तथा तीसरा हरिवर्ष है। इसके दक्षिण में रम्यकवर्ष, हिरण्यमयवर्ष और तीसरा उत्तरकुरुवर्ष है। इन सब के मध्य में इलावृतवर्ष है, जो कि सुमेरु पर्वत के चारों ओर नौ हजार योजन फैला हुआ है, इस पर्वत को धारण किये हुए ईश्वरीकृत चार कीलियां हैं, जिन्हें पूर्व में मंदराचल, दक्षिण में गंधमादन, पश्चिम में विपुल, उत्तर में सुपार्श्व नाम से जाना जाता है, यह सभी दस-दस हजार योजन ऊंचे हैं, इन पर्वतों पर ध्वजाओं के समान ग्यारह-ग्यारह हजार योजन ऊंचे कदंब, जम्बू, पीपल और वट वृक्ष हैं, जिनमें जम्बू वृक्ष सबसे बड़ा होने के कारण इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा। मेरु पर्वत के पूर्व में भद्राश्ववर्ष, पश्चिम में केतुमालवर्ष, इन दोनों के बीच में इलावृतवर्ष है और पूर्व की ओर चैत्ररथ, दक्षिण की ओर गंधमादन, पश्चिम की ओर वैभ्राज एवं उत्तर की ओर नन्दन नामक वन है, साथ ही यहाँ अरुणोद, महाभद्र, असितोद और मानसये नाम के चार सरोवर हैं।
भारतवर्ष के संबंध में उल्लेख है कि समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में भारतवर्ष स्थित है। इसका विस्तार नौ हजार योजन है, यह स्वर्ग अपवर्ग प्राप्त कराने वाली कर्मभूमि है, यहाँ महेंद्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान, ऋक्ष, विंध्य और पारियात्र नाम के सात कुलपर्वत हैं। भारत वर्ष में इंद्रद्वीप, कसेरु, ताम्रपर्ण, गभस्तिमान, नागद्वीप, सौम्य, गंधर्व और वारुण, तथा एक समुद्र से घिरा हुआ द्वीप है, यह द्वीप उत्तर से दक्षिण तक सहस्र योजन है, इसके पूर्वी भाग में किरात और पश्चिमी भाग में यवन बसे हुए हैं। चारों वर्णों के लोग मध्य में रहते हैं। नदियों के संबंध में लिखा है कि शतद्रू और चंद्रभागा नदियां हिमालय से, वेद और स्मृति पारियात्र से, नर्मदा और सुरसा विंध्याचल से, तापी, पयोष्णी और निर्विन्ध्या ऋक्ष्यगिरि से निकली हैं। गोदावरी, भीमरथी, कृष्णवेणी, सह्य पर्वत से, कृतमाला और ताम्रपर्णी मलयाचल से, त्रिसामा और आर्यकुल्या महेंद्रगिरि से तथा ऋषिकुल्या एवं कुमारी नदियां शुक्तिमान पर्वत से निकली हैं। इनकी और सहस्रों शाखाएं और उपनदियां हैं, इन नदियों के तटों पर कुरु, पांचाल, कामरूप, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, अपरांतदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहाशूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव और पारियात्र निवासी, सौवीर, सैंधव, हूण, शाल्व, कौशलदेश के निवासी तथा मद्र, अंबष्ठ और पारसी गण रहते हैं। जम्बूद्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने घेरा हुआ है।
विज्ञान के अनुसार भी भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ में 7000 ईसा पूर्व के अवशेष शुरूआती चरण में ही मिले थे। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300 ईसा पूर्व का मानते हुए मिस्र और सुमेर सभ्यता की तरह प्राचीन ही माना जाता है। 1900 ईसा पूर्व इस सभ्यता का पतन हो गया, जिससे इस सभ्यता की गुत्थी अभी तक सुलझ नहीं पाई है। कुछ विद्वानों ने आर्यों के बाहर से आने की बात कही है, जो तथ्यहीन है, क्योंकि आर्यों के बाहरी होने का न कोई पुरातत्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डीएनए अनुसंधानों से कोई प्रमाण मिल सका है। सरस्वती नाम की एक विशाल नदी थी, जो पहाड़ों को तोड़ती हुई मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है, जो आज से 4000 साल पूर्व भू-गर्भी बदलाव के कारण सूख गयी, इस नदी का उल्लेख वैदिक साहित्य में विभिन्न स्थानों पर मिलता है, जो इस बात का प्रमाण है कि आर्य पहले से ही थे।
खैर, भारतवर्ष को पहले हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, या अजनाभखंड के नाम से जानते थे। आठवीं सदी में सिंध पर अरबी अधिकार हो गया, जिसे इस्लाम का प्रवेश काल माना जाता है। बारहवीं सदी के अंत तक दिल्ली पर तुर्क दासों का कब्जा हो गया, इन लोगों ने हिमालय और सिंधु नदी से जोड़ कर भारतवर्ष को नया नाम दिया हिंदुस्तान। सिंधु नदी को अंग्रेजी में इंडस कहते हैं, जिससे अंग्रेजों ने भारतवर्ष का एक और नाम इंडिया रख दिया, लेकिन 26 जनवरी 1950 को भारतवर्ष को आधिकारिक नाम मिला भारत गणराज्य, जिसे अंग्रेजी में रिपब्लिक ऑफ इंडिया कहते हैं।