पत्रकार, अब सिर्फ पत्रकार नहीं रहे, अधिकांशतः पक्षकार हो गये हैं। पत्रकार पहले दक्षिणपंथी और वामपंथी विचारधाराओं में बंटे और फिर दलों में होते हुए नेताओं के पिछलग्गू होने तक की यात्रा तय कर चुके हैं, ऐसे वातावरण में एक नाम देश भर में जितना सुविख्यात है, उतना ही कुख्यात है “यशवंत”। जी हाँ, यशवंत दुखियों के लिए अवतार पुरुष के समान हैं, तो खून चूसने वाले मालिकों और उनके चमचों के लिए साक्षात् यमराज सरीखे हैं। यशंवत, भड़ास, क्रांति और मददगार, यह शब्द पर्यावाची से बन गये हैं।
खैर, पत्रकार चाहे जितने गर्त में चले गये हों, पर सभी पत्रकार एक बात पर आज भी सहमत हैं कि बात का जवाब बात होना चाहिए। बात का जवाब थप्पड़, लात-घूँसा, लाठी और गोली नहीं होना चाहिए, लेकिन अब इस पर भी न सिर्फ असहमति नजर आ रही है, बल्कि पत्रकार स्वयं ही हमला करने लगे हैं। पिछले दिनों यशवंत सिंह पर दिल्ली स्थित प्रेस क्लब पर भूपेंद्र सिंह “भुप्पी” और अनुराग त्रिपाठी नाम के पत्रकारों ने अचानक हमला बोल दिया, जिसकी देश भर में निंदा की जा रही है। गौतम संदेश भी यशवंत पर हमला करने की कड़े शब्दों में निंदा करता है और अपेक्षा करता है कि पत्रकारिता का एक अंश मात्र भी शेष बचा हो, तो भूपेन्द्र सिंह “भुप्पी” और अनुराग त्रिपाठी अपने कुकृत्य के लिए सार्वजनिक रूप से यशवंत से क्षमा मांगें, क्योंकि पत्रकार के अंदर का पत्रकार मर जाता है, तब उसके अंदर हिंसा का विचार आता है, ऐसे में क्षमा मांगने से भूपेन्द्र सिंह “भुप्पी” और अनुराग त्रिपाठी के अंदर का पत्रकार पुनर्जीवित भी हो सकता है। हालाँकि यशवंत बड़े दिल के व्यक्ति हैं, वे क्षमा मांगने से पहले ही दोनों आरोपियों को सहज भाव से ले रहे हैं और हमले को अपने शब्दों की जीत बता रहे हैं।
यशवंत ने हमले को लेकर अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट शेयर की है एवं अपनी बात वीडियो के द्वारा भी शेयर की है, जिसे उनके समर्थकों द्वारा जमकर सराहा जा रहा है। यशवंत ने लिखा है कि “चश्मा नया बनवा लिया। दो लम्पट और आपराधिक मानसिकता वाले कथित पत्रकारों भुप्पी और अनुराग त्रिपाठी द्वारा धोखे से किए गए हमले में चश्मा शहीद हो गया था, पर मैं ज़िंदा बच गया। सो, नया चश्मा लेना लाजिमी था। वो फिर तोड़ेंगे, हम फिर जोड़ेंगे। वे शैतानी ताकतों के कारकून हैं, हम दुवाओं के दूत। ये ज़ंग भड़ास के जरिए साढ़े नौ साल से चल रही है। वे रूप बदल बदल कर आए, नए नए छल धोखे दिखलाए, पर हौसले तोड़ न पाए।
न जाने क्या मंजूर है नियति को, न जाने क्या योजना है नेचर की। मैं सिर्फ निमित्त मात्र हूं। जेल, मुकदमे, हमले, धमकी, पुलिस, कोर्ट कचहरी, आर्थिक तंगी… पर इरादे हैं कि दिन ब दिन चट्टानी होते गए। हमने सबको क्षमा किया। मेरा निजी बैर किसी से नहीं। पर सच की मशाल तो जलती रहेगी, सरोकार की पत्रकारिता तो होकर रहेगी, कुकर्मों का भाँडा तो फूटेगा। आप सभी साथियों का प्यार और समर्थन मेरे साथ है। वैसे नया वाला चश्मा कैसा है, बताएं तो जरा आप लोग :)।”
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