भारतीय गणतंत्र दिवस की वर्षगाँठ पर हुए समारोह में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुख्य अतिथि बनने पर विश्व समुदाय की दृष्टि भारत और अमेरिकी संबंधों पर टिकी हुई है। बराक ओबामा की भारत यात्रा के नाभिकीय ऊर्जा, निवेश, आयात-निर्यात, हॉटलाइन, रक्षा व सामरिक मुद्दों के साथ अमेरिका इंटरनेशनल एक्सपोर्ट कंट्रोल रिजिम में भारत की सदस्यता के प्रयास, इंश्योरेंस, मिसाइल संबंधी तकनीक, विदेश नीति, जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन एवं आतंकवाद का मुददा प्रमुख विषय दिख रहे हैं। राजनीति, रक्षा, विदेश, कूटनीतिज्ञ और आर्थिक विशेषज्ञ अमेरिका और भारत को होने वाले हानि-लाभ को लेकर भिन्न-भिन्न संभावनायें जता रहे हैं। भारत के पड़ोसी राष्ट्र दबे व सहमे नजर आ रहे हैं, लेकिन इन सब मुददों के अलावा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एजेंडे में कुछ और भी है, जो सामने स्पष्ट रूप से भले ही नहीं दिख रहे हैं, पर उसे वे अक्षरशः लागू कर चुके हैं एवं भारत के अपने राजनैतिक विरोधियों के साथ विश्व समुदाय को संदेश भी दे चुके हैं। तमाम बिन्दुओं को लेकर भारत को अमेरिका से जो भी लाभ हुए हैं, उन्हें हाल-फिलहाल अतिरिक्त लाभ माना जा सकता है, क्योंकि नरेंद्र मोदी का प्रमुख उददेश्य अपने चरित्र और अपनी छवि को स्पष्ट रूप से मजबूत दर्शाना ही है।
नरेंद्र मोदी का परोक्ष व अपरोक्ष रूप से अमेरिका और बराक ओबामा ने बड़ा अपमान किया है। उस अपमान का उनके विरोधियों ने भी बड़ा राजनैतिक लाभ लेने का प्रयास किया है। देश की एकता को खंड-खंड करते हुए राज्य सभा के 25 सदस्यों और लोकसभा के 40 सांसदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पत्र भेज कर नरेंद्र मोदी को वीजा न देने की अपनी नीति पर अडिग रहने की मांग की थी, जिसे विपक्ष लगातार मुददा बनाता रहा और नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत रूप से अपमानित करता रहा। नरेंद्र मोदी गत वर्ष अमेरिका गये, तो उन्होंने स्वयं को बड़ा नेता दर्शाने का प्रयास किया, लेकिन एक अमेरिकी अदालत ने उनके विरुद्ध सम्मन जारी कर दिया, जिससे स्थिति और खराब हुई। हालांकि बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और नरेंद्र मोदी ने वॉशिंगटन पोस्ट के लिए एक साझा संपादकीय भी लिखा, इसके बावजूद नरेंद्र मोदी का वो दौरा विश्व स्तर पर यही संदेश छोड़ पाया कि अमेरिका में नरेंद्र मोदी को लेकर प्रवासी भारतीय दीवाने रहे, अमेरिकी नहीं। कुल मिला कर वर्षों से जिस अपमान को नरेंद्र मोदी झेल रहे थे, उससे वे पूरी तरह छुटकारा नहीं पा सके, लेकिन अब वे बराक ओबामा और अमेरिका पर भारी नजर आ रहे हैं।
बराक ओबामा के साथ चलते-फिरते, उठते-बैठते नरेंद्र मोदी का बॉडी लैंग्वेज एक अलग तरह के आत्म विश्वास से भरा नजर आया। हर जगह बराक ओबामा का नरेंद्र मोदी की ओर झुक पर खड़ा होना दर्शा रहा है कि व्यक्तिगत तौर पर बराक ओबामा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अधिक सम्मान देने लगे हैं, इसी तरह नरेंद्र मोदी का सार्वजनिक तौर पर बराक ओबामा को बराक कहना दर्शा रहा है कि दोनों के बीच मित्रवत ही नहीं, बल्कि आत्मीय संबंध बन चुके हैं और उन संबधों में भी नरेंद्र मोदी को शीर्ष स्थान प्राप्त है।
इससे पहले भी बराक ओबामा भारत आ चुके हैं, तब उनका संपूर्ण व्यवहार विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति के समान ही रहा, लेकिन इस बार बराक ओबामा सहज और सामान्य व्यवहार करते नजर आ रहे हैं। उन्होंने संबोधन के समय हिंदी में नमस्ते बोल कर दर्शा दिया कि भारत के प्रति उनके हृदय में सम्मान बढ़ा है।
अगर, सिर्फ भारत के हित की ही बात करें, तो परमाणु करार के तहत भारत को आपूर्ति की जाने वाली परमाणु सामग्री के उपयोग पर अमेरिकी अधिकारियों के नजर रखने से संबंधित शर्तों से राष्ट्रपति बराक ओबामा का पीछे हटना भारत का बड़ा लाभ है, लेकिन यह तात्कालिक लाभ कहा जा सकता है। वास्तव में अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि भारत परमाणु शक्ति बने, साथ ही अमेरिका की तुलना में रूस भारत का अधिक विश्वस्त मित्र राष्ट्र है और रूस की कीमत पर भारत को अमेरिका से संबंध नहीं बनाने चाहिए। पाकिस्तान और चीन पर दबाव बनाने के साथ रूस का भी विश्वास बनाये रखने में भारत सफल रहता है, तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी सफलता कही जायेगी। बराक ओबामा की भारत यात्रा की समीक्षा अमेरिका अभी गहनता से करेगा, तब वह भारत से रिश्ते को लेकर एक बार पुनः विचार करेगा और तब भारत और अमेरिकी रिश्ते में स्थायित्व आयेगा। भारत और अमेरिका के रिश्ते को लेकर अभी दूरगामी परिणामों के बारे में कुछ भी कहना अतिशियोक्ति ही कही जायेगी।
इस सब के अलावा नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत एजेंडे में पाकिस्तान और चीन पर दबाव बनाना भी शामिल है और उस दबाव में चीन की सीमा पर शांति स्थापित करना एवं पाकिस्तान से दाउद इब्राहिम को छीन कर आतंकी सरगना हाफिज सईद को कम से कम भूमिगत होने को मजबूर कर देना उनका प्रमुख उददेश्य कहा जा सकता है, क्योंकि नरेंद्र मोदी भारत के साथ विश्व स्तर पर अपनी छवि एक शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में बनाना चाहते हैं और जब तक चीन व पाकिस्तान दबाव में नहीं आयेंगे, तब तक उनकी वो छवि बन नहीं पायेगी, साथ ही वह भारत में भी अलोकप्रिय हो सकते हैं।
नरेंद्र मोदी का तीसरा प्रमुख उददेश्य दिल्ली का विधान सभा चुनाव भी है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की यात्रा से दिल्ली में ही नहीं, बल्कि समूचे भारत में बड़ा राजनैतिक परिवर्तन हुआ है। सरकार और प्रधानमंत्री की गिरती छवि पुनः सही हुई है, जिसका सीधा लाभ दिल्ली विधान सभा के चुनाव में भाजपा को मिलेगा। कुल मिला कर फिलहाल नरेंद्र मोदी बराक ओबामा से भी बड़े कूटनीतिज्ञ सिद्ध हो रहे हैं, जो भारतीयों के लिए फिलहाल हर्ष का विषय कहा जा सकता है।