बदायूं जिले में हो रहीं हत्या, लूट, राहजनी, अपहरण और बलात्कार की घटनाओं की तो बात ही छोड़िये, बर्बाद हो चुके किसान लगातार आत्म हत्या कर रहे हैं, ऐसी दुःख की घड़ी में जिला प्रशासन महोत्सव की तैयारियों में व्यस्त है और स्तब्ध कर देने वाली बात यह है कि धनपति और नेता पूर्ण सहयोग कर रहे हैं, जबकि महोत्सव पर बर्बाद होने वाली रकम से आत्म हत्या करने को मजबूर कई किसानों की जिंदगी खुशहाल हो सकती है।
उल्लेखनीय है कि अंग्रेजों द्वारा स्थापित बदायूं क्लब के अध्यक्ष डीएम होते हैं। राजनैतिक वातावरण अनुकूल होने पर कुछ लोग स्वयं की ब्रांडिंग करने के उददेश्य से बदायूं महोत्सव का आयोजन करते हैं, जिसमें शासन-प्रशासन की मदद रहती हैं। अफसरों और कर्मचारियों के साथ जिले भर के धनपतियों से उगाही होती है और फिर उस पैसे से दो-तीन दिन चंद लोग मौज लेते हैं। इस बार भी आयोजन किया जा रहा है, जो 11 अप्रैल से 14 अप्रैल तक चलेगा। बताया जा रहा है कि उद्घाटन सांसद धर्मेन्द्र यादव करेंगे। खेल-कूद, कुश्ती, निशानेबाजी, रंगोली और साईकिल मैराथन के अलावा मुशायरा, कवि सम्मेलन के साथ अंतिम दिन म्यूजिकल नाइट का भी आयोजन किया जायेगा, जिसमें बड़े और चुनिंदा परिवारों के सदस्य धमाल मचायेंगे। महोत्सव पर होने वाले खर्च को लेकर प्रति वर्ष विरोध होता है और प्रशासन द्वारा निगरानी करने का भरोसा भी दिया जाता है, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि खर्च का ब्यौरा जनता के समक्ष रखा गया हो।
सवाल यह भी है कि यह सब करने की आवश्यकता क्या है? बसपा सरकार के पांच वर्ष के कार्यकाल में एक बार भी महोत्सव का आयोजन नहीं किया गया। प्रति वर्ष आयोजन करने का न नियम है, न कानून है और न ऐसी कोई परंपरा है। हाल-फिलहाल तो हालात भी ऐसे नहीं हैं। जिले में हत्या, लूट, बलात्कार जैसी जघन्य वारदातों की बाढ़ सी आई हुई है। कटरा सआदतगंज की घटना ने बदायूं और प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश की छवि विश्व पटल पर खराब कर दी, इसके बाद थाना मूसाझाग और कोतवाली उझानी की घटनाओं ने भी जिले को काफी बदनाम श्रेणी में पहुँचाने का काम किया, इस सब के बीच दुःखद और भयवाह स्थिति यह है कि जिले के बर्बाद हुए किसान लगातार आत्म हत्या कर रहे हैं। उनके परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहराया हुआ है। बर्बाद किसान जंगल में खेत देख कर चीख पड़ते हैं और घर आकर जवान बेटी की चिंता में रात भर सो नहीं पाते, ऐसे माहौल में कोई जश्न मनाने की सोच भी कैसे सकता है। महोत्सव पर खर्च होने वाला धन अगर, बर्बाद किसानों के परिवारों में बाँट दिया जाये, तो बदायूं जिले की छवि ही नहीं सुधरेगी, बल्कि कई परिवारों का जीवन संवर जायेगा। चीखते, कराहते और सिसकते बर्बाद किसानों के परिवारों की आह के बीच अफसर, नेता और चंद धनाढ्य जश्न कैसे मना पाते हैं, यह भी देखने वाली अहम बात है।
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